हरिराम पाण्डेय
भ्रष्टïाचार के खिलाफ अण्णा हजारे का धर्मयुद्ध समाप्त हो गया और उनके द्वारा स्वीकृत कमेटी के सदस्यों ने मंत्रिसमूह के साथ बैठ कर जन लोकपाल विधेयक का मसौदा बनाने की तैयारी में जुट गये। मसौदा तैयार होने के बाद संसद के सामने पेश होगा और वहां की मुहर लगने के बाद वह कानून का रूप लेगा। इस सत्याग्रह को जितना प्रबल समर्थन मिला उसे देख कर यह महसूस होता है कि विपक्षी दल किसी न किसी प्रकार इस विधेयक को संसद से पारित भी करवा देंगे। बस!
अब विचार करें कि इतना शोर और प्रदर्शन, मोमबत्तियों की कांपती लौ और देश भर की उम्मीदों के बाद मिली विजय से हमें क्या मिला। एक दम सकारात्मक हो और बेहतरीन का ख्याल सामने हो तब भी क्या मिला हमें- एक लोकपाल कानून। जिस कानून के माध्यम से बड़े- बड़े घोटाले जैसे हाल का 2 जी घोटाला या फिर कामनवेल्थ घोटाला। ये घोटाले चाहे जितने भी खराब हों लेकिन ये बिल्कुल न्यून हैं। गैर कानूनी अर्थ व्यवस्था में इनका कोई स्थान नहीं है। धूसर अर्थ व्यवस्था (ब्लैक इकॉनमी)के ये मामूली हिस्से हैं। इसके साथ एक और सवाल उठता है कि यदि सिविल सोसायटी के सदस्यों को इतने अधिकार दे दिये जाते हैं तो वे एक समानांतर व्यवस्था चलायेंगे जिनके पास असीमित अधिकार होंगे। चलिये इसे भी मान लेगी इस देश की जनता तो क्या गारंटी है कि नया लोकपाल आगे चल कर भ्रष्टï नहीं होगा। जिस देश में और जिस वातावरण में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर भी भ्रष्टïाचार में शामिल होने का आरोप लग सकता है वहां और उस वातावरण में एक और सर्वोच्च संस्था - राम बचाये! दुनिया में बहुत से स्थापित लोकतंत्र हैं जहां भ्रष्टïाचार का स्तर हमारे देश से बहुत कम है। फिर क्या कारण है कि हम अपने देश में ऐसा नहीं कर सकते। यहां सामान्य बुद्धि से यह समझा जा सकता है कि सरकार गैर कानूनी कामों में नागरिकों की संलग्नता को कम करे या ऐसी व्यवस्था करे कि इस तरह की संलग्नता से आय के अवसर नहीं हों। ऐसी बात नहीं कि सरकार ने कोई व्यवस्था नहीं की है। मसलन बड़ी खरीद- बिक्री अथवा लेन- देन में पैन कार्ड को अनिवार्य बनाया जाना या फिर आयकर विभाग द्वारा कम्प्यूटर का उपयोग किये जाने से टैक्स की चोरी में थोड़ी कमी आयी है जरूर पर अभी भी कई ऐसे चोर दरवाजे हैं जिन्हें बंद किया जाना जरूरी है। कई मामलों में देखा गया है कि अफसरशाही के कारण ही भ्रष्टïाचार को बढ़ावा मिलता है। सरकारी अफसरों के दबाव के कारण आम जनता को अपना काम करवाने के लिये घूस देना मजबूरी बन जाती है। इसे रोकने के लिये सरकार को चाहिये कि वह सारी सेवाओं के विहित समय सीमा की इंटरनेट पर घोषणा कर दे तथा उस माध्यम से आवेदन एवं कार्य निष्पादन की सुविधा दे दे। हर आदमी को यह दीखता रहेगा कि एक खास समय में उसके आवेदन की स्थिति क्या है। साथ ही उसमें देरी को रोकने के लिये शिकायत की भी व्यवस्था हो जो साफ सबको दिखे। साथ ही सरकार ऐसी व्यवस्था करे जिससे यह भाव प्रदर्शित हो कि भ्रष्टïाचार से लाभ नहीं है। दूसरे सरकार को कालेधन की उपयोगिता को व्यर्थ करना भी जरूरी है। मसलन यदि सारी खरीद बिक्री चेक से या क्रेडिट कार्ड से के माध्यम से हो तो घर में काले धन का खजाना रखने से क्या लाभ होगा। लोग खुद ब खुद हतोत्साहित होने लगेंगे। यह बात दूसरी है कि भ्रष्टïाचार मुक्त देश एक कल्पना है पर इसे रोकने के लिये एक और सत्याग्रह तो जरूरी है।
Friday, April 22, 2011
एक और सत्याग्रह जरूरी
Posted by pandeyhariram at 12:20 AM
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