हरिराम पाण्डेय
क्रिकेट वल्र्ड कप में भारत की विजय दुनिया भर में भारत की बदनामी से राहत के एक टुकड़े के रूप में हमारे समाज को मिली। हालांकि खबरें आयीं कि वह सोने का चमचमाता कप भी नकली है। असली इनकम टैक्स वालों ने जब्त कर रखा है लेकिन बाद में अन्तरराष्टï्रीय क्रिकेट परिषद ने इन खबरों का खण्डन करते हुए कहा कि शनिवार को वानखेड़े स्टेडियम में जो ट्राफी भारत को दी गयी वह असली आईसीसी क्रिकेट विश्व कप 2011 ट्राफी थी और यह वही थी जिसे हमेशा से प्रतियोगिता के विजेता को दिया गया। हाल के महीनों में देश में घोटाला, संसद में सरकार का अपमान, विदेशी निवेश में तेज गिरावट, 2 जी घोटाला और कामनवेल्थ खेलों में घोटाले वगैरह को लेकर वैश्विक स्तर पर देश का भारी अपमान हुआ था। शनिवार की रात को भारत को वल्र्ड कप क्रिकेट में विजय मिली। क्रिकेट भारतीय जीवन में ठीक उसी तरह ऊपर से नीचे उतरा है जैसे वर्षा का पानी जमीन में रिस कर नीचे चला जाता है और मिट्टïी को गीला कर देता है। मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम में जब भारतीय टीम के कप्तान एम एस धोनी ने विजयदायी छक्का मारा तो भारतीय सड़कों पर खुशी से मतवाले लोग निकल आये। पूरा माहौल जश्न का हो गया। विख्यात उद्योगपति हर्षवद्र्धन नेवटिया ने इस विजय पर अपनी टिप्पणी में कहा कि 'इसने हमें गर्वित किया है।Ó इस विजय पर जाहिर की जा रही खुशियों और जलसों के बारे में एक सज्जन ने सवाल किया था कि इसका कारण क्या है, लोग इतने खुश आखिर क्यों हैं, आखिर आम आदमी को क्या मिला? इस विजय ने कई महीनों से पददलित भारतीय सामूहिक इगो को सहला दिया और उसे अनुपात से बड़ा बना दिया। दुनिया के बहुत से देशों में अभी भी नहीं खेले जाने वाले इस खेल ने कम से कम आम आदमी को देश में लगातार कायम घोटाले के माहौल से छुटकारा दिला दिया। सवा सौ करोड़ के इस देश में क्रिकेट को राष्टï्र का रूपक समझा जाता है। हमारे देश के लोग इस विजय से इसलिये भी इतने ज्यादा खुश हैं कि 1983 के बाद देश को किसी भी खेल में इतनी बड़ी विजय नहीं मिली थी। क्रिकेट के भारत में असंख्य फैन्स हैं। इसके अलावा इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और वेस्ट इंडीज में भी यह अतिलोकप्रिय है। रविवार को इस मैच पर टेलीविजन को देखने वालों के आंकड़े तो नहीं उपलब्ध हैं पर उसके पहले के खेलों के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 14 अरब लोगों ने टी वी पर इस मैच को देखा जिनमें विदेशों में देखने वालों की संख्या भी लाखों में थी। देश के कई बड़े राजनीतिज्ञों ने भी खिलाडिय़ों और टीम को बधाइयां दी हैं तथा खुशी का सार्वजनिक इजहार किया है। ऐसा हो भी क्यों नहीं। हाल की घटनाओं ने पूरे देश को बेईमानों के देश के रूप में दुनिया के सामने पेश किया था। कम से कम इस खेल ने एक ईमानदार उपलब्धि का नमूना तो पेश किया। यह छोटी बात थोड़े ही थी। क्रिकेट भारत में अब बड़े लोगों का आरामदायक खेल नहीं रहा। अब यह बाजार में बिकने वाली एक सामग्री हो गयी जिसे बहुराष्टï्रीय कम्पनियों की जिन्सों को बेचने का माध्यम बनाया गया है।
Wednesday, April 6, 2011
विश्वविजय: चलो अपमान से थोड़ी राहत तो मिली
Posted by pandeyhariram at 9:08 PM
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