CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, April 22, 2011

भूषण कहीं दूषण न बन जाएं


हरिराम पाण्डेय
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार एक चुनौती है और हमें इसका सामना पूरी ताकत के साथ करना होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार को संसद के मानसून सत्र में लोकपाल विधेयक पेश करने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मौजूदा हालात में लोगों की बर्दाश्त करने की ताकत कम हो गयी है- लोग तत्काल और एक ऐसी कार्रवाई चाहते हैं जिससे दूसरों को सबक मिले। सब ठीक है। प्रधानमंत्री जी ने लोकपाल बिल के समर्थन में अपना मत दे दिया, सोनिया जी ने भी अण्णा हजारे को लिख कर अपना समर्थन भेज दिया था। देश की जनता भी कमोबेश उस बिल के साथ है या यों कहें कि सब लोग चाहते हैं कि भ्रष्टïाचार को मिटाने के लिये कोई ठोस व्यवस्था हो। पर यदि सरसों में ही भूत हो तो क्या होगा। अण्णा हजारे ने जिस टीम को विधेयक का मसौदा बनाने के लिये चुना वह टीम ही दुनिया को ईमानदार नहीं दिख रही है। उस टीम के दो सबसे प्रबुद्ध और कानून के जानकार सदस्य शांतिभूषण तथा प्रशांत भूषण रोज- रोज नये स्कैंडल्स में फंसते दिखायी पड़ रहे हैं। अब वे सही हैं या गलतन इसका फैसला समय करेगा, लेकिन फिलहाल तो लांछन लग ही गया। जन लोकपाल बिल ड्राफ्ट करने के लिए बनी समिति के सह अध्यक्ष शांति भूषण के पाक - साफ होने पर उठ रहे सवाल और गहरा गये हैं। वह चौतरफा घिर रहे हैं और समिति से उनके इस्तीफे की मांग उठने लगी है। शांति भूषण पर इलाहाबाद में करोड़ों के प्लॉट की खरीद में स्टांप ड्यूटी चोरी का आरोप है और इस मामले में उन्हें नोटिस भी जारी की गयी है। हालांकि अब तक प्रशांत भूषण इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं कि उन्होंने स्टांप ड्यूटी की चोरी की है। लेकिन स्टांप ड्यूटी चोरी के आरोप में जारी हुई नोटिस की कॉपी मीडिया में आने के बाद इनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चरित्र हनन अभियान के तहत जिस तरह कांग्रेस के कुछ हलकों से शान्ति भूषण की सम्पत्ति संबंधी बयान आ रहे हैं वे निराधार नहीं हैं। ऐसे बयानों की वजह कमिटी के गैर सरकारी सदस्यों या अण्णा-टोली की वह पहलकदमी है जिसके तहत उन्होंने पहली मीटिंग में जाने से पहले ही अपनी सम्पत्ति की घोषणा कर दी। कांग्रेस के किसी सदस्य ने न तो अब तक अपनी सम्पत्ति की घोषणा की और न ही उनका घोषणा करने का कोई विचार है। बेचारे करें भी तो कैसे, अण्णा ने सम्पत्ति घोषणा रूपी ट्रंप कार्ड इतनी जल्दी चल दिया कि उन्हें हिसाब-किताब लगाने का मौका ही नहीं मिल पाया। कैसे बताएं कि कितनी दौलत सफेद है और कितनी काली। कितनी भारत में है और कितनी की स्विस बैंक करता है रखवाली। लोग सोचते हैं कि आ गया लोकपाल बिल और अब हो गया भ्रष्टाचार दूर। लेकिन क्या यह संभव है? पैनल के लिए नामित पांच सिविल सोसायटी सदस्यों पर भी विचार किया जाना चाहिए। इस तरह का पैनल सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। ऐसा क्यों है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे भारत में एक भी ऐसा आदिवासी कानूनविद् या शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता या विद्वान नहीं मिला, जो पैनल में अपनी सेवाएं दे सके? यही वह वर्ग है, जिससे उसकी जमीन, जंगल और आजीविका छीन ली गयी है। पैनल में कोई महिला प्रतिनिधि भी नहीं है। पुरुष बहुल सवर्ण मध्यवर्ग अन्य योग्य नागरिकों की अनदेखी कर देश की आवाज बन सकता है? वर्ष 1952 से हर वयस्क भारतीय को वोट देने का अधिकार है। आज भारत में लगभग 30 लाख निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं, जिनमें से एक-तिहाई महिलाएं हैं। यह चिंताजनक स्थिति है कि मध्यवर्ग के बहुतेरे लोग राजनीति में तब कम दिलचस्पी ले रहे हैं, जब देश में राजनीतिक प्रक्रिया संभ्रांत वर्ग के दायरे से बाहर निकल रही है और निचले तबके से भी नये नेता उभर रहे हैं। आज मध्यवर्ग और कस्बों के दायरे से बाहर भी निचले स्तर पर एक नयी जमीन तैयार हो रही है।
ऐसे में हमारे सामने चुनौती इन संस्थाओं को सशक्त बनाने की है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि मसौदा लोकपाल विधेयक सभी सवालों का समाधान कर देगा। निश्चित ही विचार - विमर्श के लिए एक से अधिक मसौदे भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। जो आंदोलन सरकार से पारदर्शिता की मांग करता हो, वह स्वयं पारदर्शिता से नहीं बच सकता।
सामाजिक आंदोलन जनता और सरकार के बीच की कड़ी बन सकते हैं। लोकतंत्र का संचालन सुगठित संस्थाओं और स्पष्ट प्रक्रियाओं से ही संभव है। इसलिये बिल और कानून की सियासत को छोड़ संस्थाओं के सशक्त बनाने की दिशा में काम हो और उस पर जनता की निगरानी हो।

0 comments: