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Tuesday, September 1, 2015

पाक की ‘परमाणु भभकी’

पाक की ‘परमाणु भभकी’

24 सितम्बर 2015

भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) की बैठक रद्द होने के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में कटुता बढ़ गई है। पाकिस्तानी एनएसए सरताज अजीज ने भारत को धमकाया है। उन्होंने कहा है, ''मोदी सरकार ऐसे बर्ताव कर रही है जैसे कि वह क्षेत्रीय महाशक्ति हो। लेकिन हम खुद परमाणु क्षमता वाले देश हैं। हम जानते हैं कि खुद की हिफाजत कैसे करनी है।'' अजीज ने कहा कि पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के शामिल होने के सबूत हमारे पास हैं। पाकिस्तानी अखबार द डॉन की सोमवार की खबर के मुताबिक, अजीज ने भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ प्रौपेगेंडा करने का आरोप लगाया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार अजीज ने कहा, ''हमें सबूत देने के बदले पाकिस्तान के खिलाफ प्रौपेगेंडा करना भारतीयों का काम हो गया है।'' अजीज ने कहा कि भले ही एनएसए स्तर की मीटिंग नहीं हुई लेकिन बाकी मीटिंग्स होंगी। उन्होंने कहा, ''रेंजर्स और बीएसएफ के बीच मीटिंग होगी। डीजीएमओ भी मिलेंगे ताकि तनाव कम करने को लेकर कोई मैकेनिज्म बनाया जा सके। पाकिस्तानी रेंजर्स-बीएसएफ के बीच बातचीत 6 सितंबर को होनी है। डायरेक्टर्स जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन (डीजीएमओ) भी जहां चाहेंगे मिल सकेंगे।'' आंकड़ों के मुताबिक तीन साल पहले पाकिस्तान के पास भारत से 10 न्यूक्लियर बम ज्यादा थे। बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट ने मार्च में जारी अपनी एक रिपोर्ट में बताया था किन देशों के पास कितने न्यूक्लियर बम हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के पास 110 न्यूक्लियर बम हैं, जबकि भारत के पास 100 बम हैं। हालांकि, ये आंकड़े 2012 की स्थिति के मुताबिक बताए गए थे। तीन साल में हालात कितने बदले हैं, इस बारे में कोई आंकड़ा नहीं है। एनएसए मीटिंग होती तो भारत पर पाकिस्तान उन्हीं आरोपों को दोहराने वाला था जो 2012 में लगा चुका है। जानकारी के मुताबिक, 'बलूचिस्तान में टेरर बढ़ाने के लिए राजस्थान में कैंप', 'लाहौर में लश्कर-ए-तायबा के नेतृत्व को मदद', 'सिंध में मोहाजिर कौमी मूवमेंट को आर्थिक सहायता ' और 'कश्मीर घाटी में जनसंख्या के अनुपात में बदलाव की कोशिश' जैसे आरोप लगाए जाने वाले थे। इस्लामाबाद में 2012 में हुई होम सेक्रेटरी लेवल मीटिंग में भी पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाते हुए तीन डोजियर सौंपे थे। उस वक्त यह भी आरोप लगाया गया था कि भारत समझौता एक्सप्रेस बम धमाकों के आरोपियों को बचा रहा है। सोमवार को अजीज ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगले महीने अमरीका के न्यूयॉर्क में जब दोनों देशों के नेता (नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ) मौजूद होंगे तो वह बातचीत की पहल नहीं करेगा। अजीज ने कहा कि यह भारत पर है कि वह बातचीत की पहल करे। भारत और पाकिस्तान के बीच नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइजर्स (एनएसए) की मीटिंग रद्द होने से पड़ोसी देश को ज्यादा फिक्र है। पाकिस्तानी विशेषज्ञों का मानना है कि इस गतिरोध की वजह से दोनों देशों को नुकसान होगा, लेकिन पाकिस्तान पर इसका असर ज्यादा पड़ेगा। उनका मानना है कि दोनों देशों के बीच बातचीत न होना क्षेत्रीय शांति के लिए भी अच्छी बात नहीं है। अमरीकी प्रेसिडेंट ओबामा की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच कुछ दूरियां कम करने की कोशिश हुई थी, जिसका नतीजा निकला दोनों प्रधानमंत्रियों की ऊफा में मुलाकात। लेकिन सुरक्षा सलाहकार स्तर की बातचीत रद्द होने के बाद एक बार फिर दोनों देश वहीं पहुंच गए हैं, जहां से शुरुआत हुई थी। जब रूस के उफा में दोनों देशों के बीच यह सहमति बन गई थी कि आतंकवाद और सीमा पर शांति के मुद्दे पर बातचीत होगी तो कश्मीर और हुर्रियत का मुद्दा उठना बिल्कुल गैरजरूरी था। दरअसल पाकिस्तान शुरू से बातचीत से पीछे हटने के लिए बहाने ढूंढ़ रहा था। पाकिस्तान की सेना बिल्कुल नहीं चाहती है कि शांति बहाल हो।

भारत और पाकिस्तान के बीच गतिरोध को लेकर पाकिस्तान पर अमरीका और यूरोपियन यूनियन का दबाव बढ़ेगा। भारत पर भी दबाव होगा, लेकिन पाकिस्तान की तुलना में काफी कम। पाकिस्तान पर ज्यादा दबाव इसलिए होगा क्योंकि वह अमरीका से भारी पैमाने पर फौजी साज-ओ-सामान और आर्थिक मदद हासिल करता है, लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं है। अगर अमरीका सैन्य और आर्थिक सहायता पर रोक लगा दे तो पाकिस्तान की स्थिति खराब होनी शुरू हो जाएगी। अमरीका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए, जिससे उनकी स्थिति काफी खराब हो गई। लेकिन ईरान से ज्यादा मजूबत मामला पाकिस्तान का है। पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने की बात अमरीका खुद मान चुका है। ऐसे में पाकिस्तान पर भारी दबाव है। पाकिस्तान की सरकार मुश्किल हालात में है और उन पर बाहरी के साथ-साथ आंतरिक दबाव काफी ज्यादा है। इसी के कारण पाक ऐसी हरकतें कर रहा है। क्योंकि पाकिस्तान को पूरा भरोसा है कि भारत आर्थिक वृद्धि और विकास पर इतना केंद्रित है कि वह युद्ध का जोखिम नहीं लेगा। वह भारत के बर्दाश्त करने की सीमा का सावधानी से आकलन कर अपनी चालें चल रहा है। ऐसे सोच के कारण वह जम्मू-कश्मीर कार्ड खेलने का दुस्साहस कर रहा है, जबकि वह खुद घरेलू आतंकवाद के कारण हिंसा से खदबदा रहा है। उसे लगा कि जम्मू-कश्मीर उसकी पहुंच से बाहर होता जा रहा है, इसलिए वह ज्यादा दुस्साहस में लग गया। जहां तक परमाणु क्षमता का सवाल है वह कृत्रिम संरक्षण है, जिसे पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व अपना तुरुप का इक्का समझती है।

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