22 सितम्बर 2015
जैसा कि तय था नेपाल में नया संविधान 20 सितम्बर को लागू हो गया। नेपाल सरकार ने इस अवसर पर दो दिनों - 20 और 21 सितम्बर - को छुट्टी की घोषणा की थी और राजधानी काठमांडू सहित देश के अधिकांश भागों में और देश के बाहर नेपाली नागरिकों ने खुशियां मनायीं। यहां कोलकाता में नेपाल कौंसुलेट में कौंसुल जनरल श्री चंद्र कुमार घिमिरे ने समारोह का आयोजन किया जिसमें कोलकाता के निवासी नेपालियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कहने का आशय है कि नेपालियों ने सर्वत्र इस नये संविधान का स्वागत किया है। लेकिन दक्षिणी नेपाल के तराई क्षेत्र के निवासी मधेशियों और कई अन्य जनजातियों ने इसका विरोध किया है। संविधान लागू होने के ठीक दो दिन पहले भारत के गृह सचिव एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यक्तिगत संदेश लेकर नेपाल गए। वहां पर उन्होंने ना सिर्फ अलग-अलग पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की बल्कि प्रधानमंत्री सुशील कोइराला से भी मुलाकात की। जयशंकर ने कहा कि भारत नए संविधान के हक में है और उम्मीद करता है कि नेपाल के नेता इस मामले में इतना लचीलापन और परिपक्वता दिखाएंगे कि संविधान सबको साथ लेकर चलने वाला और सबको मान्य होगा। ये भी कहा कि भारत चाहता है कि नया संविधान लागू होने का मौका खुशी और संतोष का हो ना कि विरोध और हिंसा का। लेकिन हुआ वही जिसकी आशंका थी। जहां अधिकतर नेपाल में जश्न का माहौल रहा, तराई के हिस्सों में कर्फ्यू लागू करना पड़ा, सेना लगानी पड़ी। भारत इससे काफी चिंतित है। भारतीय समय के मुताबिक शाम करीब पांच बजे एक समारोह में राष्ट्रपति रामबरन यादव ने नए संविधान के लागू किये जाने का ऐलान किया। उसके कुछ ही देर बाद, 6 बजकर 10 मिनट पर हालात पर लागातार नजर रखे भारतीय विदेश मंत्रालय का बयान आया कि हमने देखा है कि नया संविधान लागू हो गया है लेकिन देश के कई हिस्सों में हिंसा से हम चिंतित हैं। उम्मीद करते हैं कि हिंसा और दबाव मुक्त माहौल में बातचीत से समस्या सुलझेगी और शांति और विकास की नींव पड़ेगी। तराई में लोगों को उम्मीद थी कि भारत इन हालात में हस्तक्षेप करेगा लेकिन इतना साफ है कि बदले हुए वक्त में भारत सीधे तौर पर इस मामले में शायद ना पड़े। संविधान के लागू होने के लगभग एक सप्ताह पहले नेपाल के राष्ट्रपति के प्रेस सलाहकार ने रिपब्लिका पत्रिका में एक लम्बा लेख लिखा था जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि ‘नेपाल को अपने संविधान और अपने नेताओं पर गर्व है और वह बेकार के विचारों से गुमराह नहीं हो सकता है।’ बेशक इशारा भारत की ओर ही था। यह लेख नेपाल के प्रधानमंत्री की इजाजत के बिना नहीं भेजा गया होगा। वैसे इसमें कोई शक नहीं कि भारत की जिस तरह की नीति अब तक नेपाल में रही है उसकी छवि बिग ब्रदर वाली बनी जिससे वो काफी अलोकप्रिय हो चुका है। मोदी सरकार के आने के बाद अब ये छवि सुधारने की कोशिश की जा रही है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी दो-दो बार नेपाल का दौरा कर चुके हैं। राजनीतिक अस्थिरता और माओवादी हिंसा ने उसे विकास की पटरी से ही नहीं उतार दिया, बल्कि अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गयी है। नये संविधान के तहत नयी बननेवाली सरकार को सही मायने में नेपाल का पुनर्निर्माण ही करना होगा। यह आसान काम नहीं है, जिसे अपने ही देशवासियों का असंतोष और भी दुष्कर बना देगा। इसलिए आंतरिक असंतोष से देश को बचाने की जिम्मेदारी सभी को समझनी चाहिए। संविधान सभा में अधिक संख्या वाले दलों की यह जिम्मेदारी अधिक बनती है कि देश के किसी भी समूह को उपेक्षा या अलगाव का अहसास न हो, क्योंकि उससे उपजा असंतोष नये नेपाल के निर्माण की राह में रोड़े ही अटकायेगा। वैसे अच्छी बात यह है कि नये संविधान के मुताबिक नेपाल में संसद के दो सदन तो होंगे ही, समानुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए कुछ सीटें भी आरक्षित रखी जाएंगी, ताकि चुनावी जंग में पिछड़ जानेवाले समूहों को भी प्रतिनिधित्व दिया जा सके। इसलिए जरूरत इस बात की है कि मधेशियों समेत जिन भी समूहों की जो भी आशंकाएं हैं, सरकार और राजनीतिक दल उनका तर्कसम्मत निराकरण करें, क्योंकि फिलहाल जनमत से हार गये राजशाही और हिंदू राष्ट्र के पैरोकार उनका अनुचित लाभ उठा कर अपनी मुहिम फिर शुरू कर सकते हैं। इसमें भारत अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। यही नहीं नेपाल की भौगोलिक और समरनीतिक स्थिति को देखते हुए भारत को फूंक फूंक कर कदम उठाने होंगे। इसकी ,एक वजह ये भी है कि नेपाल चीन के काफी करीब आ गया है। चीन ना सिर्फ नेपाल में निवेश कर रहा है बल्कि वहां से सीधे काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने की प्रक्रिया भी चल रही है। भारत नहीं चाहता कि एक और सरहद उसके लिए सिरदर्द बन जाए। इसलिए इस पूरे मामले में भारत काफी सोच-समझ कर कदम रखेगा ताकि नेपाल से बेहतर होते रिश्तों पर भी आंच ना आए और मधेशियों की समस्या सुलझाने की तरफ भी नेपाल सरकार कदम उठाए।
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