6 सितम्बर 2015
वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) के लिए बीते करीब चार दशकों से जोर दे रहे पूर्व सैन्यकर्मियों ने शनिवार को उस वक्त आंशिक विजय हासिल की जब सरकार ने ऐलान किया कि वह इस योजना का कार्यान्वयन करेगी। दूसरी तरफ, पूर्व सैन्यकर्मियों ने इस फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि उनका 84 दिनों से चला आ रहा आंदोलन जारी रहेगा। सरकार ने ओआरओपी के क्रियान्वयन का फैसला किया है जिसके तहत हर पांच साल पर पेंशन में संशोधन किया जायेगा, लेकिन इसके दायरे में वे सैन्यकर्मी नहीं आएंगे जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले रखी है। पूर्व सैन्यकर्मी दो साल के अंतराल पर पेंशन की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। सरकार ओआरओपी के क्रियान्वयन के विवरण पर काम करने के लिए एक सदस्यीय न्यायिक समिति का गठन कर रही है जो इस ‘जटिल मुद्दे’ के कई पहलुओं की पड़ताल करने के बाद छह महीने में रिपोर्ट देगी। सरकार द्वारा विस्तृत ब्योरा दिये बगैर पूर्व सैनिकों की लंबित मांग को पूरा करने के लिए केवल 500 करोड़ रुपये के आवंटन पर पिछली सरकार पर निशाना साधने के बाद पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने ओआरओपी से जुड़ी जानकारियों पर सरकार पर कटाक्ष किये। एंटनी और एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल का कहना है कि , ‘ओआरओपी घोषणा बहुत बड़ी निराशा है क्योंकि पूर्व सैनिकों के लाभ के प्रावधानों को बहुत हल्का कर दिया गया है। यह उनके हितों के साथ धोखा है।’ विपक्ष पर वार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि , "जिन्होंने 40-42 साल तक काम नहीं किया, उन्हें बोलने का क्या हक है?फैशन चल पड़ा है कि जब सरकार कोई भी बड़ा काम करती है तो कुछ लोग उसका विरोध करते हैं। जिन्हें जनता ने रिजेक्ट कर दिया, वो लोग देश को आगे बढ़ने नहीं देना चाहते।’’ हालांकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी नेताओं ने ‘ऐतिहासिक’ फैसले का श्रेय लिया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान पूर्व सैनिकों से किया वादा पूरा किया। इसके तहत समान रैंक पर रिटायर हुए सभी सैनिकों और सैन्य अधिकारियों को समान पेंशन मिलेगी। उदाहरण के तौर पर 1996 में रिटायर हुए सैन्य अधिकारी को 2006 में उसी रैंक पर रिटायर हुए अधिकारी के बराबर पेंशन मिलेगी। सरकार का फ़ैसला जो मुख्य है वह है ओआरओपी का फायदा एक जुलाई 2014 से लागू किया जाएगा। ओ आरओपी साल 2013 के आधार पर निर्धारित की जाएगी। रक्षा मंत्री के मुताबिक वन रैंक वन पेंशन यानी ओआरओपी लागू करने से 9000-10,000 करोड़ रुपए ख़र्च होंगे। यह ख़र्च भविष्य में और भी बढ़ेगा।
पेंशन हर पांच साल में निर्धारित की जाएगी। पूर्व सैनिकों का कहना है कि वन रैंक वन पेंशन उनका अधिकार है। जो सैनिक स्वेच्छा से रिटायरमेंट (वीआरएस) लेते हैं उन्हें ओआरओपी नहीं मिलेगा। इनमें युद्ध में घायल होने के कारण रिटायर होने वाले सैनिक शामिल नहीं।
लेकिन रविवार को प्रधानमंत्री ने हरियाणा के फरीदाबाद में दिए एक भाषण में कहा कि वन रैंक वन पेंशन लागू करने में वीआरएस कोई मुद्दा नहीं है, पेंशन सभी को मिलेगी। इससे पहले पूर्व सैनिकों के नेता मेजर जनरल (रिटायर) सतबीर सिंह का कहना है, "सरकार ने एक ही मांग मानी है और छह मांगे नकार दी हैं। प्रदर्शन जारी रखने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है।" बढ़ी हुई पेंशन चार अर्धवार्षिक किस्तों में अदा की जाएगी। सैनिकों की विधवाओं को बढ़ी हुई पेंशन एक किस्त में ही दी जाएगी। सरकार के मुताबिक सिर्फ एरियर देने पर ही 10-12 हजार करोड़ खर्च होंगे। रिटायर होने वाले कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखने के लिए एक सदस्य न्यायिक आयोग गठित किया जाएगा। ओआरओपी लागू होने से करीब 25 लाख पूर्व सैनिकों और सैनिकों की छह लाख विधवाओं को फायदा होगा। लेकिन इस फैसले को लेकर काफी विभ्रम है। हालांकि सरकार के पास अब इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था कि वह इसे किसी नतीजे पर पहुंचाए। वे सरकार में हैं। उन्हें तय करना चाहिए कि क्या सबसे अच्छा है और अपने नागरिकों को क्या देना देश के लिए मुमकिन है। फैसले से कई लोग नाखुश हैं पर हर वेतन आयोग की सिफारिशों पर भी बहुत से लोग नाखुश होते हैं। इसके बाद सरकार को मीडिया के माध्यम से जल्द से जल्द सैन्य समुदाय को पेंशन के नए नियमों के ब्योरे समझाने चाहिए। साफगोई से बातें न रखना सबसे खतरनाक तरीका है। और याद रखें, देश ने नरेंद्र मोदी को जबर्दस्त समर्थन इसलिए दिया, क्योंकि उन्होंने निर्णायक सरकार का वादा किया था।
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