28 सितम्बर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैलिफोर्निया में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी की बड़ी कंपनियों के प्रमुख कार्यकारी अधिकारियों से कहा कि उनके लिए भारत में काफ़ी संभावनाएं हैं और वे इसका पूरा फ़ायदा उठा सकते हैं। डिजिटल डिवाइड के इस दौर में मोदी जी ने इसके अगुवा अमरीका में इस तरह की गुहार की जो अपने आप में काफी बड़ी बात है। माेदी जी ने डिजिटल इंडिया का जो सपना देखा है उसकी प्रमुख बातें हैं कि डिजिटल तकनीक लोगों को बेहतर मौके दे सकती है और सोशल मीडिया लोगों को मानवीय मूल्यों के आधार पर जोड़ता है। मादी जी का मानना है कि यह तकनीक लोकतंत्र को मजबूत करती है और जनता का काम करने के लिए सरकारों को मजबूर करती है। उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर सरकार मोबाइल गवर्नेंस को पूरी तरह लागू करेगी। डिजिटल इंडिया की मूल धारणा यह है कि सरकारी दफ्तरों में कागज का इस्तेमाल खत्म कर दिया जाए। इसके तहत देश के सभी कॉलेजों को इससे जोड़ा जाएगा। सरकार जल्द ही सार्वजनिक वाई फ़ाई व्यवस्था शुरू करेगी। 500 रेलवे स्टेशनों में वाई फ़ाई शुरू किया जाएगा। स्मार्ट सिटी बनाई जाएंगी और इससे किसानों को भी जोड़ा जाएगा ताकि उन्हें अपने उत्पादों की अच्छी क़ीमत मिल सके। बेशक इस क्षेत्र में अमरीकी तकनीकी कंपनियों के लिए अपार संभावनाएं हैं। डिजिटल इंडिया के दौर में देशवासियों को इंटरनेट, मोबाइल और बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। आईटी का इस्तेमाल गवर्नेंस में पूरी तरह से होगा। सभी सरकारी सेवाएं ऑनलाइन की जाएंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट मोबाइल फोन के जरिए लागू होगा। मसलन बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, एग्री सेवाएं सब मोबाइल फोन से दी जाएंगी। सरकार को उम्मीद है कि जल्द सबके पास स्मार्टफोन होंगे और फोन सस्ते होंगे, इसके लिए देश में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। डिजिटल इंडिया प्रोग्राम का फायदा सभी तक पहुंचाने के लिए मोबाइल सिग्नल से दूर करीब 42,000 गांवों को मोबाइल सर्विस से जोड़ा जाएगा।
डिजिटल इंडिया में सरकार की सब्सिडी स्कीम समेत दूसरी सभी स्कीमों का फायदा लोगों तक पहुंचाने के लिए मोबाइल फोन ही बैकबोन होगा। मोबाइल के जरिए हर तरह की फाइनेंशियल सर्विस पहुंचाने की कोशिश होगी। सरकार की जन-धन योजना के मुताबिक हर घर में बैंक अकाउंट होगा और लोग मोबाइल बैंकिंग के जरिए बैंकिंग ट्रांजेक्शन कर सकेंगे। साथ ही डेबिट कार्ड भी दिया जाएगा। लेकिन जानकारों का कहना है कि मोबाइल बैंकिंग के साथ डेबिट कार्ड की जरूरत नहीं है। संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी इस पहलू पर विचार करने की जरूरत महसूस की है। मालूम हो कि सरकार डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट पर 1.13 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी। इससे अगले पांच सालों में आईटी से जुड़ी एक करोड़ से ज्यादा नौकरियां मिलने की उम्मीद की जा रही है। इस प्रोजेक्ट के तहत पूरे देश को टेक्नोलॉजी और इंटरनेट से जोड़ा जाएगा। सभी ऑफिसों के कागजात ऑनलाइन होंगे और सभी सरकारी सेवाएं ऑनलाइन मिल सकेंगी। लोगों तक हर सर्विस पहुंचाने के लिए सरकार ने अगले तीन साल में सभी 2.5 लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। पीसीओ के तर्ज पर 2.5 लाख नए कॉमन सर्विस सेंटर खोले जाएंगे। सभी पंचायतों में सरकारी सेवाएं इन सेंटर के जरिए दी जाएंगी। उम्मीद है कि इन प्रयासों के बाद गांवों में ई-कॉमर्स को भी बढ़ावा मिलेगा। लेकिन ये सारे सपने तब पूरे होगे जब तीसरी दुनिया को डिजिटल अछूत ना माना जाय। इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए एकदम मिशन मोड में काम करना होगा। गांव-गांव, कस्बे-कस्बे नेट पहुंचाने के लिए व्यापक स्तर पर आधारभूत ढांचे का निर्माण करना होगा। इसमें भारी खर्च की आवश्यकता है। इस समय डिजीटल फाइबर केबल ही पूरे देश में नहीं है। पूरे देश में केबल बिछाना होगा। पहाड़ों, नदियों, जंगलों से होकर दूरस्थ गांवों तक केबल ले जाना कितना कठिन काम है इसका अनुमान स्वयं लगाइए। इसी तरह इसके अन्य उपादान हैं। जगह-जगह एक्सचेंज की आवश्यकता होगी। अनुमान है कि इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र काफी निवेश करेंगे। निजी क्षेत्र की कम्पनियां अगर आएंगी तो फिर सेवा भी वैसी सस्ती नहीं हो सकती जितनी आम आदमी को इस सेवा के उपयोग के लिए चाहिए। यही नहीं जितनी स्पीड बताते हैं उसकी आधी भी नहीं देते। यह स्थिति कोलकाता , दिल्ली, मुंबई जैसे मेट्रों शहरों की हैं। गांवों तक उनकी स्पीड की क्या दशा होगी? कैसे स्पीड बढ़ाई जाएगी? आप अगर सेवा दे भी दें तो उसका उपयोग करने का ज्ञान भी तो लोगों को चाहिए। यह कैसे होगा। अगर हम इसे नई सोच के तहत करना चाहते हैं तो इसके लिए हमें पूरी तरह से नया रवैया अपनाना पड़ेगा। गांव में डिजिटल तकनीक को लेकर काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है यदि डिजिटल डिवाइड खत्म हो जाय(जो एक दिवास्वप्न लगता है) और अगर सब-कुछ सटीक उस तरह हो जाए जैसा कागजों पर दिखता है तब भारतीय परिस्थितियों में इन लक्ष्यों को पूरा होने में कम से कम दस साल लगेंगे।
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