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Saturday, September 19, 2015

आत्ममुग्ध सत्ता पक्ष और बेअसर विपक्ष

 इन दिनों भारत की मुख्यधारा की सियासत में दो शब्दों का जलवा है। एक है हवाबाजी और दूसरा हवालाबाजी। दोनों शब्द हिंदी के हैं और यह संभवत:पहला अवसर है जब भारत और विदेशों के अंग्रेजी अखबारों ने भी इन शब्दों के प्रयोग से गुरेज नहीं किया। मजे की बात है कि इन दोनों शब्दों का प्रयोग भारत के दो बड़े राजनीतिज्ञों ने किया। वे दोनों ही हिंदीभाषी नहीं हैं। एक इतालवी हैं और दूसरे गुजराती। इतालवी महिला को दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने भारत में आने के बाद हिंदी बोलना, लिखना और पढ़ना सीखा और गुजराती नेता की पीठ ठोकनी पड़ेगी कि प्रधानमंत्री बनते ही उन पर अंग्रेजी का जो नशा सवार हो गया था, वह अब उतार पर है। सोनिया ने कहा, आप हवाबाजी कर रहे हैं तो मोदी ने कह दिया कि आप तो हवालाबाजी करती रही हैं। जुबानी जमा−खर्च करने में मोदी का कोई जवाब नहीं है। जाहिर है, बयानों की यह जंग बराबरी की थी। विपक्ष की ओर से तीखा हमला हुआ, तो सत्ता ने उसी तल्खी में जवाब भी दिया। शब्दों के स्तर पर भी अनुप्रास अलंकार को ध्यान में रखा गया।

सोनिया ने हवा का नाम लिया, तो जवाब में मोदी ने हवाला का उल्लेख किया। कुछ भी हो 'हवाबाज' और 'हवालाबाज' मात्र शब्द नहीं हैं। इन दोनों के गहरे निहितार्थ हैं। पहले सोनिया गांधी के हवाबाज शब्द पर विचार कीजिए। इस शब्द के माध्यम से वह कहना चाहती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने हवाई वादे किए हैं, उनकी सरकार उन वादों को पूरा करने में विफल है। यह भी संयोग है कि जिस समय सोनिया सरकार पर हमला बोल रही थीं, लगभग उसी समय राहुल गांधी ओडिशा में लगभग ऐसी ही बातें कर रहे थे। वह पूछ रहे थे- कहां हैं अच्छे दिन, सरकार ने किसानों के लिए क्या किया, कोई वादा पूरा नहीं हुआ.. वगैरह। यही नहीं विख्यात पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने अपने एक लेख में भी लगभग यही आरोप लगाया है कि मोदी बातें बहुत करते हैं लेकिन जब उन बातों को अमल में लाना होता है तो उन्हें ताक पर रख देते हैं। क्या सोनिया और राहुल की बातों से ऐसा नहीं लगता कि वह निष्कर्ष निकालने में बहुत जल्दीबाजी कर रहे हैं? क्या साठ महीने के लिए बनी सरकार के बारे में अंतिम निष्कर्ष केवल पंद्रह महीने में निकाला जा सकता है? क्या संप्रग की पहली और दूसरी सरकार बनने के प्रारंभिक पंद्रह महीने में राहुल गांधी आज की तरह किसानों की दशा देखने निकलते थे। क्या उस अवधि में संप्रग की तत्कालीन प्रमुख सोनिया गांधी वादों के क्रियान्वयन की समीक्षा करती थीं ? यह ठीक है कि वह आज विपक्ष में हैं, लेकिन सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाकर उसे जीरो अंक देना भी हास्यास्पद है। जहां तक मोदी के हवालेबाज शब्द की बात है तो ध्यान दें कि कांग्रेस पार्टी तो नेहरू और इंदिरा के हवाले से ही जिंदा है। यदि इंदिराजी का हवाला होता तो क्या सोनिया गांधी की कोई कीमत होती? बेचारे राहुलजी अभी पता नहीं कहां होते? राजीवजी भी प्रधानमंत्री बने, शहीद इंदिरा गांधी को मिले वोटों से। इस हवालाबाजी ने कांग्रेस को हवाबाजी बना दिया है। नेतृत्व विहीन कर दिया है। नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को हवालेबाज कहा, और यह जोड़ा कि ये लोग अड़ंगेबाजी कर रहे हैं। इन दोनों शब्दों के भी व्यापक अर्थ हैं। यहां हवाला भ्रष्टाचार और घोटालों से संबंधित है। देश यह बात भूल नहीं सकता कि संप्रग सरकार रिकार्ड घोटालों के कारण बदनाम हुई थी। शीर्ष नेतृत्व इस जवाबदेही से बच नहीं सकता। दूसरा शब्द बाधा या अड़ंगेबाजी है। यह भी गलत नहीं लगता। देश ने नरेंद्र मोदी को भारी जनादेश दिया, लेकिन यह सरकार अपने ढंग से काम नहीं कर पा रही है, क्योंकि राज्यसभा में विपक्ष का बहुमत है। अनेक महत्वपूर्ण विधेयक, जिनमें आर्थिक सुधार के विधेयक भी शामिल हैं, लंबित हैं। नरेंद्र मोदी के प्रयासों से मेकइन इंडिया आगे बढ़ा, वैश्विक रेटिंग एजेंसियों में भारत का दर्जा बढ़ा, लेकिन विपक्ष का असहयोग बाधक बन रहा है। ऐसे में हवाला और अड़ंगा दोनों आरोपों का आधार तो बनता ही है। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह बड़ा खतरा है। भारत में नरेंद्र मोदी जैसा आदमी प्रधानमंत्री बन जाए और विपक्ष प्रभावहीन रहे तो यह देश के लिए या यों कहें कि लोकतंत्र के लिये चिंता का विषय है। आज सत्तारूढ़ नेता अनुभवहीन व आत्ममुग्ध हैं और विपक्ष प्रभावहीन। मीडिया और न्यायपालिका अपना कर्तव्य छोड़ कर कुछ ऐसे कामों में लगे हैं कि पता नहीं चलता वे लोग करना या कहना क्या चाहते हैं। देश भर में गंभीर विभ्रम की ​स्थिति है और करोड़ों लोग इस विभ्रम में फंसे हैं।

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