CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, September 2, 2015

हड़ताल की प्रासंगिकता



2 सितम्बर 2015

आज वामपंथी यूनियनों सहित देश की अन्य ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल है। हालांकि , भारतीय मजदूर संघ ने इस हड़ताल से खुद को अलग कर लिया है। बीएमएस ने हड़ताल में शामिल नहीं होने की घोषणा करते हुए अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी इससे अलग रहने की अपील की है। आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के महासचिव गुरुदास दाससगुप्ता ने कहा कि विनिवेश और श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करेंगी यूनियनें। दासगुप्ता ने कहा कि ‘इस मुद्दे पर सभी यूनियनें एकमत हैं और वे एकजुट बनी रहेंगी।’ उन्होंने कहा कि यूनियनें विनिवेश कार्यक्रम और श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करेंगी, क्योंकि इससे श्रमिकों के हित प्रभावित होंगे। सीटू के महासचिव तपन सेन ने भी इसी तरह की राय जाहिर की। उन्होंने कहा कि श्रम कानूनों में सुधार ‘श्रमिकों पर गुलामी’ थोपने जैसा होगा। इसके पूर्व सरकार के साथ हुई बैठक में आल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर, आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल आफ ट्रेड यूनियन्स, भारतीय मजदूर संघ, हिंद मजदूर सभा, हिंद मजदूर संघ, इंटक, लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन, नेशनल फ्रंट आफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स, सेल्फ इंप्लायड वुमेन्स एसोसिएशन, ट्रेड यूनियन कोर्डिनेशन सेंटर और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रतिनिधि भी शामिल थे। ट्रेड यूनियनों की ओर से सरकार को 12 सूत्रीय मांग पेश की गई जिसमें बढ़ती कीमत से बचाव, श्रम कानून प्रवर्तन, ठेका श्रम, न्यूनतम वेतन तथा सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी मांगें शामिल हैं। ट्रेड यूनियन नियमित कर्मचारियों के लिए उपलब्ध वेतन और सेवा शर्तों के समान अनुबंध पर काम कर रहे कर्मचारियों के लिए वेतन और सेवा शर्त की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी इस मांग को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है, ट्रेड यूनियनों की मांग है कि न्यूनतम वेतन को देश भर में 15,000 रु महीना किया जाए, जो फिलहाल अभी विभिन्न राज्यों में 5,000 से लेकर 9,000 रु तक है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि प्रधानमंत्री ने श्रम मुद्दों को सुलझाने के लिए जेटली की अध्यक्षता में अंतर-मंत्रालयी समिति गठित की है। ‘केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ औपचारिक और अनौपचारिक बैठकें हुई हैं। उन्होंने 12 सूत्रीय मांग पत्र सौंपा।’

इस ट्रेड यूनियन हड़ताल में , जैसा कि सभी ट्रेड यूनियन हड़तालों में हुआ करता है , वामपंथी ट्रेड यूनियनों का वर्चस्व है। वर्तमान हालात और अर्थव्यवस्था में हड़ताल का रुख कुछ अजीब सा लगता है लेकिन इस व्यावहारिकता से वाम पंथ का कभी वास्ता नहीं रहा। बंगाल के उद्योगों का खात्मा का भी यही कारण था। वामपंथी विचार इन दिनों अव्यावहारिक हो चुके हैं या फिर उन्हें दूसरे दलों ने अपना लिया है। कम्पीटेटिव रेडिकलिज्म जैसा जुमला अब केवल वामपंथी नहीं रहा, दूसरे दल भी उसकी वकालत करने लगे हैं। नरेंद्र मोदी द्वारा इस्पात संयंत्रों को चलाये रखने के लिए उनमें निवेश का निर्णय तो वामपंथी विचार के अनुरूप है। एफ डी आई का वामपंथियों द्वारा विरोध किया जाना एक तरह से विदेशनीति है और इससे स्वदेशी जागरण मंच की नीतियों की महक आती है। वामपंथ इन दिनों अजीब संकट में है। इसके नेता एेसे बेवजह के आंदोलनों में जुड़े दिखते हैं जिनकी कोई व्यावहारिकता नहीं है। पिछले हफ्ते वामपंथी दलों की रैली इसी का उदाहरण थी। रैली में शामिल लोगों को और कुछ ना दिखा तो बेचारे पुलिस वालों पर लगे पत्थर फेंकने। वे इसकी व्यर्थता समझ नहीं पाये। वामपंथी दलों के बुढ़ाते नेता और जंग लगे अप्रयोजनीय संगठन ,जो इसके मंद पड़ने का मुख्य कारण है, आज भी उसी अवस्था में हैं। ये लोग आधुनिक समाज की अपेक्षाओं तथा अर्थव्यवस्था के दबावों के बारे में कुछ भी जानने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं। कहने को तो वामपंथी दलों तथा विचारधाराओं की ग्लोबल अपील है पर बमुश्किल यह आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था के अनुरूप हो पा रही है। नतीजतन भारत में वामपंथी राजनीति पुरानी और बाधक बन गयी है। अमरीका या पूंजीवाद इनकी नजर में दुनिया की सभी समस्याओं की जड़ हैं पर चीन चाहे जो करे वह इनकी निगाह में सही है। इससे पता चलता है कि भारतीय वामपंथ कैसे अतीत के शिकंजों में जकड़ा हुआ है। बहुत कम उम्मीद है कि भारतीय वामपंथी दल देश के तकनीकी तरक्की करने की उम्मीद से भरे नौजवान वर्ग को आकर्षित करे। वामपंथी दलों को फिलहाल चाहिये कि वे किसी के साथ , मसलन कांग्रेस के साथ ही, जुड़ कर सियासत के व्यूह को भेदने का प्रयास करें। लेकिन वे अकेले ही लड़ने की जिद में हैं। इस हड़ताल से क्या नुकसान होगा इसका तो आकलन बाद में होगा पर यह समय भारत को जगाने का है और भारत बंद जैसे प्रयास अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हैं।

0 comments: