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Friday, September 4, 2015

बिहार चुनाव: जायज होती है हर बात सियासत में


 3 सितम्बर 2015
इन दिनों बिहार में चुनाव का माहौल इतना सरगर्म है कि बाहर से वहां पहुंचने वाला हर आदमी एकदम से ‘कन्फूजिया’ जा रहा है। जिससे मिलिये वह या तो मोदी भक्त निकलता है या नीतीश का पिछलग्गू। मोदी वाले कहते हैं कि ‘दे दे कर निहाल किये जा रहे हैं’, नीतीश के भक्त कहते हैं ‘देते कुछ नहीं , बस बोल बोल कर बेहाल किये जा रहे हैं।’समझ में नहीं आ रहा है वहां हो क्या रहा है। सीरियस कन्फ्यूजन है।
और ही होते हैं हालात सियासत में
जायज होती है हर बात सियासत में
मोदी दो दिन पहले बिहार के भागलपुर आये थे। उन्होने अपने भाषण में कहा कि बिहार के लोगों से ज्यादा समझदार कोई नहीं। दो दिन पहले वही कह कर आये थे कि वहां जंगल राज आने का खतरा है अगर नीतीश तख्त पर आ गये तो जंगल राज आयेगा ही। उधर नीतीश ने पटना में रैली में कहा, यह अब तक की सबसे बड़ी रैली है। अब कौन बड़ा है यह तो जानने का कोई तंत्र नहीं है। जो आंकड़े दोनों नेता पेश कर रहे हैं अगर उनका विश्लेषण करें तो वोट देने नहीं आई आई टी में पढ़ने चले जाइएगा।
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये
भागलपुर में प्रधानमंत्री ने कहा कि गया में एक लाख 25 हजार करोड़ का पैकेज घोषित किया, 40 हजार करोड़ मिलाकर एक लाख 65 हजार का पैकेज दिया। वैसे प्रधानमंत्री ने ये ऐलान गया में नहीं आरा में किया था। रैली में कुछ का कुछ बोला जाता है।
बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ
और कश्ती कागजी पतवार के साये में है
14वें वित्त आयोग ने बिहार को पांच साल में तीन लाख 76 हजार करोड़ देना तय किया है। मेरा (मोदी का ) एक लाख 65 हजार करोड़ का पैकेज अलग है। नीतीश कुमार का कहना है कि 2 लाख 76 हजार करोड़ का पैकेज तो कुछ नहीं है। दिल्ली से जो मिलेगा उसमें से भी कम दे रहे हैं। बाकी पैसा कहां जाएगा। एक लाख 8 हजार करोड़ कहां जाएगा। प्रधानमंत्री जी दनादन आंकड़े दे रहे हैं , अभी पैसे नहीं दिये पर जो नहीं दिये उसे भी गिन रहे हैं। वे मान रहे हैं कि दे दिये और उस रकम से नीतीश कुमार ने 1 लाख 8 हजार करोड़ उड़ा लिये। गड़बड़ या कन्फ्यूजन तब होता है जब मोदी पॉलिटिकल होते हैं तो नीतीश टेक्निकल हो जाते हैं। नीतीश का कहना है कि संघीय व्यवस्था में जो बिहार का हिस्सा तय है वो तो मिलेगा ही। तो वैसी परिस्थिति में इस बात का उल्लेख करना कि 5 साल में पौने चार लाख करोड़ हम देंगे और उसी में मोदी जी ने जोड़ लिया कि 2 लाख 70 हजार करोड़ तो दे दिया। अब बचे 1 लाख 8 हजार करोड़, वो कहां से आयेगा। यही नहीं, पिछले पखवाड़े खबर आयी कि बिहार के 21 जिले पिछड़े हैं और उनके लिए टैक्स में छूट की अधिसूचना जारी कर दी गयी है। उस सूची में पटना भी है। पटना के अलावा वैशाली, समस्तीपुर, मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार, मुजफ्फरपुर, अररिया, जहानाबाद, नालंदा और गया का भी नाम है। जिन 21 जिलों के नाम जारी हुए हैं उनमें से कई जिले पिछले सत्रह-अठारह साल से बैकवर्ड जिलों में ही हैं।
जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में
यही नाम 1997 में जारी हुए 123 वैकवर्ड जिलों की सूची में भी हैं। गुजरात के कई जिले आज भी पिछड़े जिलों में आते हैं जो 1997 की सूची में थे। जैसे बनासकांठा और साबरकांठा। वैसे 26 जिलों के विकसित गुजरात के 11 जिले पिछड़े जिले में आते हैं। 1997 से ही टैक्स छूट के जरिये इन जिलों में राष्ट्रीय सम विकास योजना के तहत उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। लेकिन यह खबर ऐसे दी गयी कि लगा कि कोई नया फैसला हुआ है।
खुद को जख्मी कर रहे हैं गैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बांकपन तक ले चलो
बिहार ही क्यों भारत सरकार के लघु एवं उद्योग मंत्रालय की साइट पर जाइये और देखिये वहां कई राज्यों के पिछड़े जिलों की सूची मिल जायेगी। उसमें आप पाएंगे कि आंध्र प्रदेश के 14 जिले, बिहार के 18 जिले , गुजरात के 11 जिले , कर्नाटक के 11, मध्यप्रदेश के 36 जिले औद्योगिक रूप से पिछड़े जिलों की सूची में शामिल हैं। तो फिर बिहार के लिए ऐसी घोषणा करने का मतलब क्या है ? अगर इन आंकड़ों पर चुनाव हुए तो जिस बिहारी को सबसे समझदार आदमी कह रहे हैं मोदी वह मतदाता के रूप में क्या साबित होगा यह आप समझ सकते हैं।
आँख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे
अपने शाहे-वक्त का यूं मर्तबा आला रहे

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