20 सितम्बर
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक साहसिक कदम उठाया है। ममता बनर्जी ने नेताजी के अंतिम दिनों से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक कर दिया है। उनके अंतिम दिनों में क्या हुआ इसे लेकर रहस्य बना हुआ है। नेताजी से जुड़ीं 64 फाइल्स के शुक्रवार को सर्वजनिक किए जाने के बाद मिले दस्तावेज से खुलासा हुआ है कि 1947 में आजादी मिलने के बाद महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भतीजे अमियनाथ बोस को सीक्रेट रेडियो मैसेज मिलते रहे थे। इससे नेताजी के 1945 में प्लेन क्रैश में जान जाने की अटकलें और कमजोर होती नजर आती हैं। इन फाइल्स में एक पत्र भी है, जो अमिय नाथ बोस ने 18 नवंबर 1949 को अपने भाई शिशिर कुमार बोस को लिखा था। शिशिर उस वक्त लंदन में डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे। अमिय कोलकाता में रहते थे। इसमें अमिय ने कहा था, ''बीते एक महीने से रेडियो पर एक चौंकाने वाला ब्रॉडकास्ट सुनने को मिल रहा है। हमें यह ब्रॉडकास्ट शॉर्ट वेव पर 16 एमएम फ्रीक्वेंसी पर सुनाई देता है। इसमें कहा जाता है, ''नेताजी सुभाष चंद्र बोस ट्रांसमीटर ए कौथा बोलते चाय।'' यह वाक्य घंटों तक दोहराया जाता रहा था। हमें नहीं पता कि यह ब्रॉडकास्ट कहां से हो रहा था।'' बाद में यह चिट्ठी कोलकाता पुलिस की स्पेशल ब्रांच को मिली।
ममता जी की फाइल्स को सार्वजनिक किये जाने के पीछे राजनीति हो सकती है लेकिन यह सवाल तो कब से उठ रहा है कि नेताजी के साथ दरअसल हुआ क्या था? इन फाइलों से पता चलता है कि नेताजी 1964 के साल तक जिंदा थे। 1960 के दशक की शुरुआत में अमरीकी खुफिया रिपोर्ट में इस बात का इशारा किया गया था कि नेताजी फरवरी 1964 में भारत आए होंगे। उनकी मौत के 19 साल के बाद। यहीं से सवाल उठा कि जब उनकी मौत 1945 में ताइवान में विमान दुर्घटना में हो गई थी तो 1964 में कैसे आ गए। 12,744 पन्नों की इस फाइल को पढ़ना दिलचस्प होगा। इसे लेकर नेहरू और कांग्रेस पर संदेह किया जाता रहा है कि उन्होंने जानबूझ कर इसे रहस्य बनाया। ममता जी के इस कदम के बाद अब केंद्र सरकार पर भी दबाव है कि उसके पास नेताजी से संबंधित जो क्लासिफाइड फाइलें हैं उसे सार्वजनिक करे। विपक्ष में रहते हुए बीजेपी इसकी मांग करती रही है। 18 अगस्त 1945 की जिस विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, उसमें नेता जी की मौत हुई थी या नहीं, अगर हुई थी तो 1968 तक के अलग अलग पत्रों या दस्तावेजों में नेता जी के जीवित होने का ज़िक्र क्यों मिलता है। एक सवाल और है, इन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि नेताजी के परिवार की बीस साल तक जासूसी कराई गई। कांग्रेस पार्टी ने अपने समय में दस्तावेजों को सार्वजनिक तो नहीं किया लेकिन ममता जी के कदम का स्वागत करते हुए कांग्रेस नेता पी सी चाको ने कहा कि ‘आजादी के बाद उस समय के प्रधानमंत्री नेहरू के लिए नेता जी की सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण मामला था। हो सकता है इस वजह से जासूसी कराई गई होगी।’ अब सवाल है कि अगर बीस साल जासूसी हुई तो नेहरू तो 17 साल तक ही प्रधानमंत्री थे। उनके बाद 1964 से 1966 तक शास्त्री जी थे। क्या शास्त्री जी के समय भी जासूसी हुई। क्या 1966 के बाद भी जासूसी जारी रही। 12,744 पन्नों के दस्तावेज अभी किसी ने नहीं पढ़े हैं। हालांकि , बंगाल सरकार के अधीन फाइलों में ज्यादा कुछ जानकारी सामने आने की गुंजाइश नहीं है। हां, यह खबर जरूर चौंकाती है जिसमें अमरीकी खुफिया एजेंसियां नेताजी के 1964 तक जिंदा होने की ओर इशारा करती हैं। ऐसे में उन नेताओं के नाम सार्वजनिक करने का दबाव बढ़ेगा जो नेताजी को भारत में नहीं आने देना चाहते थे और उनके परिवार की जासूसी करवा रहे थे। यहां बात केवल नेताजी की ही नहीं है बात उनके पास तब मौजूद रहे खजाने को लेकर भी है। इस मामले में एक सस्पेंस बरकरार है। पीएमओ और विदेश मंत्रालय के पास मौजूद कुछ गोपनीय फाइलें बताती हैं कि नेताजी के पास 1945 में 2 करोड़ रुपए कैश और 80 किलोग्राम सोना था। इसकी कीमत मौजूदा बाजार के हिसाब से 700 करोड़ रुपए थी। 20वीं शताब्दी में आजादी के लिए लड़ रहे किसी भारतीय नेता के पास यह सबसे बड़ा खजाना था। लेकिन आरोप है कि प्लेन क्रैश में नेताजी की संदिग्ध मौत के बाद इस खजाने को कुछ लोगों ने गायब कर दिया। इस राज से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है।
इसलिए बहस यह नहीं है कि उन फाइलों में क्या है, इस बात को लेकर है कि क्या अब केंद्र को भी अपनी फाइलें जारी कर देनी चाहिए। ममता जी के इस कदम से केंद्र खास कर भाजपा पर सियासी दबाव बढ़ गया है। चूंकि लोकसभा चुनाव और बाद में नेताजी के परिवार के समक्ष गोपनीय फाइलों को खोलने का वादा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं, ऐसे में ममता जी के इस सियासी दांव ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। भाजपा हालांकि केंद्र से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने संबंधी सवाल से बच रही है, मगर इसी पार्टी के सुब्रमण्यम स्वामी ने इसके लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने की चेतावनी देकर सरकार की उलझन बढ़ा दी है। हालांकि इस मुद्दे पर पीएम मोदी के वादे के बाद भी सरकार का रुख स्पष्ट नहीं रहा है। बीते अगस्त महीने में ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने केंद्रीय सूचना आयोग को यह कह कर नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था कि इससे भारत के दूसरे देशों से द्विपक्षीय संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। पश्चिम बंगाल में अपना आधार बढ़ाने के लिए हाथ पांव- मार रही भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि ममता जी द्वारा नेताजी से संबंधित फाइलें सार्वजनिक करने के बाद वह क्या करे। नेताजी का मसला अब राज्य में भावनात्मक मुद्दा बन चुका है।
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