8 सितम्बर 2015
कहते हैं कि लोहे में जब जंग लग जाती है तो वह कमजोर हो जाता है, उसका लौहपना खत्म हो जाता है। आज यही हालत इस जमाने के भारत के लाैह पुरुष नरेंद्र मोदी का हो गया है। इसके कई सबूत हैं पर अभी हाल के ओ आर पी ओ के बारे में सरकार का फैसला सबसे ताजा उदाहरण है। इसमें शक नहीं कि 42 साल पुराना यह मामला इसीलिए अधर में लटका हुआ था कि एक तो अरबों रुपये का बोझ सरकारी खजाने पर बढ़ जाता और फिर फौज से छोटी उम्र में सेवा-निवृत्त होनेवाले लोग किसी न किसी काम पर लग जाते हैं। अब इस प्रश्न पर भी विचार होना चाहिए कि जवानों को 30-35 साल की उम्र में सेवा-निवृत्त क्यों किया जाए? क्या सेवा—निवृत्ति के बाद भी उनसे कोई काम लिया जा सकता है? इसके अलावा सरकार ने यह जो घोषणा की है, यह भी जल्दबाजी में की है, जैसे कि नगा-समझौते की हो गई थी। इससे यह भी संकेत मिलता है कि इस सरकार में सोच की तंगी है। विचार का टोटा है। या तो यह हड़बड़ी में कुछ भी घोषणा कर देती है या फिर यह प्रचार की इतनी भूखी है कि इसे किसी भी घोषणा की गहराई में जाने का धैर्य ही नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि वे किसी भारी दबाव को झेल नहीं सकते। यही कारण है कि आज मेरा भारत सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। आम जनता के लिए सुशासन का अर्थ है नागरिक सुविधाआें की उपलब्धता। लेकिन किसी को मालूम नहीं कि भारत के गांवों में बिजली कब कट जायेगी और डाक्टर बेवजह कितने टेस्ट लिख देगा। रेलवे टिकट लेने जाओ एक घंटा लाइन मे खड़े रहो फिर भी टिकट नहीं हम चुप हैं। रास्ते खराब हैं हम किसी तरह अपनी कार या बाइक निकाल कर चले जाते हैं, हम चुप है। आये दिन किसी न किसी उत्सव में शोर मचाया जाता है हम चुप हैं। स्कूलों में कितनी भी फीस हम भर रहे हैं लेकिन मास्टर से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं की क्लास्सेज जरूरी है क्या। आज के बीस साल पहले क्लासेस का इतना जोर नहीं था कैसे अब्दुल कलाम जैसे लोग इतना महान बने, लेकिन हम चुप हैं। किसी भी ऑफिस में जाओ कोई सुनने वाला नहीं है। किसी की शिकायत करके कुछ नहीं होता है फिर भी हम चुप हैं। क्या हमने सब खुशी हासिल कर ली है .. क्या हमारे अच्छे दिन आ गये। लाखों लोग बिना पानी के किस तरह जी रहे हैं। आज समाचर पढ़ा गरीबी से तंग आकर पांच बच्चों की मा ने आत्महत्या कर ली फिर भी हम चुप हैं। ग्रामीण इलाकों में परिवार नियोजन अब क्यों नहीं समझाया जाता है.. गरीबी खत्म नहीं हो सकती लेकिन कम से कम खाने भर की इनकम तो होनी चाहिये। लेकिन हालात तो कुछ दूसरे दिखायी पड़ने लगे हैं। भारी आर्थिक समस्या का भय व्याप गया है। उस भय को दूर करने के लिये सरकार ने मंगलवार को देश के शीर्ष उद्योगपतियों के साथ विचार विमर्श किया। उधर कहा जा रहा है कि चीनी अर्थव्यवस्था की तंगहाली के बरक्स अमरीका अपने फेडरल रिजर्व के रेट में संशोधन करने वाला है। अगर ऐसा होता है तो दुनिया भर के आर्थिक क्षेत्र में हाहाकार मच जाने की भरपूर आशंका है। उधर , हाल में चीनी संकट का असर भारत पर नहीं होने का दावा रिजर्व बैंक के गवर्नर कर रहे हैं। उनका यह दावा कुछ हद तक सही है क्योंकि भारत से चीन का व्यापार उतना बड़ा नहीं है कि उसका बाजार भारतीय बाजारों को प्रभावित करे। अभी तक यह साफ नहीं है कि आंकड़े क्या कह रहे हैं क्योंकि इनका सामने आना अभी बाकी है। लेकिन चीन एक बड़ा देश है जो विश्व की अर्थव्यवस्था में काफी महत्वपूर्ण बन गया है। आज दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई गड़बड़ होती है तो पूरी दुनिया पर उसका कुछ न कुछ असर पड़ता है। यह असर पहले वित्त बाजार पर पड़ता है और उसके बाद व्यापार पर। इसलिए इसे लेकर सबको चिंतित होना चाहिए। जो भी हो रहा है उसे चीन से जोड़ने को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए। विश्व अर्थव्यवस्था में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में चिंता की जानी चाहिए। इनमें यह भी शामिल है कि दरें कब सामान्य होती हैं - फेडरल रिजर्व यह करने वाला पहला बड़ा संस्थान हो सकता है। तो सवाल यह भी है कि ऐसा कब होगा। अभी इस सवाल का उत्तर मिला ही नहीं कि खबर आयी है कि फेडरल रिजर्व संशोधन करेगा। अमरीका में बेरोजगारी दर अप्रैल 2008 के बाद सबसे निचले स्तर पर है। फेडरल रिजर्व ने जुलाई 2006 के बाद से ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं की है। जुलाई 2006 में इसमें एक चौथाई प्रतिशत की वृद्धि की गई थी और यह 5.25% थी। अमरीका में ब्याज दरें बढ़ने का मतलब है विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारत और दूसरे उभरते देशों से पैसा निकालकर अपने देश ले जाना। लोकसभा चुनावों के दौरान अपने चुनाव प्रचार में मोदी ने कहा था कि रुपया तो ‘सीनियर सिटिजन’ हो गया है। लेकिन मोदी के अब तक कार्यकाल में डॉलर के मुकाबले रुपया लगभग 12 प्रतिशत टूट गया है और सुपर सीनियर सिटिजन बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन जमीन अधिग्रहण बिल और गुड्स और सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) बिल जिस तरह से अधर में लटके हुए हैं, उससे निवेशकों के भरोसे को धक्का लगा है। ऐसे आम जनता में कुंठा का होना लाजिमी है और यही कुंठा राजनीतिक हेरफेर के लिए डायनामिक्स का काम करती है।
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