जीना एक अनिश्चित समय में
आज का समय, जिस में हम जी रहे हैं इसमें किसी भी चीज या किसी भी स्थिति को स्वीकार नहीं किया जा सकता। दुनिया का अधिकांश भाग हैरतनाक दुविधा में जी रहा है। कहीं लोग मिथ्या सुख में नाच रहे हैं तो कहीं गुस्सा और दुविधा से पीड़ित हैं। बहुत से लोग यह सोचना भी नहीं चाहते कि आगे क्या होने वाला है। आगे बहुत खतरे दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन लोग अभी नहीं जानना चाहते आगे कौन सा खतरा है ? आज के जमाने में अव्यवस्था मुख्य भाव है और यही बड़ी राजनीतिक बाधा भी है । इससे हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है और टेक्नोलॉजी इसमें सबसे बड़ी अव्यवस्था कारक है। अब इस बात को कैसे देखेंगे या इसका अनुमान कैसे लगाएंगे कि अमरीका का राष्ट्रपति उत्तर कोरिया के नेता से मिलता है। हाल तक उत्तर कोरिया और अमरीका आपस में दुश्मन हुआ करते थे, लेकिन सिंगापुर में मुलाकात के बाद जब अमरीका के राष्ट्रपति यह घोषणा करते हैं कि उत्तर कोरिया के पास कोई भी महाविनाश की शस्त्र नहीं है या उससे किसी किस्म का परमाण्विक खतरा नहीं है। सबसे ज्यादा आश्चर्य होता है कि इस बैठक को लेकर ना कोई संयुक्त विज्ञप्ति जारी हुई ना ही कोई घोषणा हुई ,बस एक स्वीकृति जनता के समक्ष आ गई और कहा गया कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों को खत्म कर देगा और यही पर्याप्त मान लिया गया।
दुनिया , इस बीच, विभिन्न तरह की अव्यवस्थाओं से जूझ रही है । रूस के व्लादिमीर पुतिन लगभग पूरी पश्चिमी दुनिया के खिलाफ खड़े हैं और आरोप लगाया जा रहा है कि यह मानवाधिकार का भयंकर उल्लंघन है । एशिया के कई क्षेत्र विस्फोट करने को तैयार हैं। अफगानिस्तान लगभग रोज आतंकी हमलों से दहल उठता है । पश्चिमी एशिया कई तरह के जंगों में मुब्तला है । इससे सबसे ज्यादा ग्रस्त है सीरिया। ईरान और सऊदी अरब में भयंकर तनाव है। इसराइल और मुस्लिम विश्व एक दूसरे खिलाफ तने हुए हैं। सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब देश यमन के खिलाफ जंग की तैयारी कर रहे हैं । दक्षिण एशिया में भी मालदीव जैसा मामूली देश भारत जैसे बड़े पड़ोसी राष्ट्र को चुनौती दे रहा है। यूरोप में भी हिंसा और राजनीतिक अव्यवस्था की यही स्थिति है। जर्मनी जो हाल तक बहुत स्थाई राष्ट्र माना जाता था वह गंभीर राजनीतिक संकट से जूझ रहा है । पूरे यूरोप में बहुत ही अनिश्चित राजनीति की स्थिति है।
इस अनिश्चय पूर्ण दुनिया में जहां तानाशाही है वहां ज्यादा स्थायित्व है। हालांकि यह तानाशाही दिखती नहीं है। उदाहरण के लिए चीन में शी जिनपिंग का शासन है । यहां कभी- कभी आर्थिक संकट के बावजूद पूरी व्यवस्था खासकर अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है। पार्टी कठोर नियंत्रण में है। कहीं भी कोई बाधा नजर नहीं आ रही है। दूसरी तरफ अधिकांश लोकतंत्र बाधाओं से गुजर रहे हैं। पक्ष और विपक्ष मामूली बातों पर अड़ जाते हैं। यही नहीं अधिकांश लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के भीतर अपने भी संकट हैं। भारत में ही देखिए, भाजपा खुद को एक मजबूत केंद्रीकृत पार्टी के रूप में प्रदर्शित करती है जबकि दूसरी पार्टी घोर आंतरिक झगड़ों में उलझी हुई है और भाजपा भी संसद के सुचारु रुप से चलने की गारंटी नहीं दे सकती है । संसद में बहस नहीं होना राजकाज पर प्रभाव डालता है।
इसके बिना किसी बड़े राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र से संबंध रखना कठिन हो जाता है। अमरीका और भारत के बीच लंबे अरसे से अच्छे रिश्ते रहे हैं लेकिन अब उनमें गिरावट आ रही है। अभी हाल में अमरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को सैनिक सहायता रोकने और पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया तब कहीं जाकर भारत के साथ उसके रिश्ते थोड़े सुधरे। वरना हाल तक तो रूस से सैनिक संबंध रखने के कारण अमरीका भारत को हड़काता रहा है । यही नहीं चीन से भारत के संबंध भी कुछ ऐसे ही हैं।
संसद में बहस से यह पता नहीं चल पाता है कि भारत से रूस के संबंध कैसे हैं। ऊपर- ऊपर तो भारत रूस संबंध अप्रभावित हैं लेकिन भीतर से देखें तो कई तरह के बदलाव दिखाई पड़ रहे हैं। आज यह जरूरी है भारत अपनी विदेश नीति दोबारा गढ़े और संसद में स्थाई बहस के बगैर ऐसा नहीं हो सकता। इसलिए अब समय है कि सरकार विपक्षी दलों को बहस के लिए तैयार करे ताकि कम से कम विदेश नीति पर बात की जा सके। अगर ऐसा नहीं किया गया तो एक दूसरे को काटने वाली पार्टी राजनीति राष्ट्र की विदेश नीति का बंटाधार कर देगी और देश अनिश्चय की हालत में झूलता रहेगा।
Thursday, July 12, 2018
जीना एक अनिश्चित समय में
Posted by pandeyhariram at 5:38 PM
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