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Wednesday, July 4, 2018

राष्ट्र हित में नहीं

राष्ट्र हित में नहीं

हंगामा कायम रहना चाहिए। जानकार लोग  सितंबर 2016 में सेना के कार्यों से संबंधित संवेदनशील जानकारी का खुलासा करने के लिए भारतीय राजनीतिक-सैन्य नेतृत्व की  पर सवाल उठा रहे हैं। जब आप अल्पकालिक, सामरिक और राजनीतिक लाभ के लिए सैन्य कार्रवाई का उपयोग करते हैं, तो एक झटका  अपरिहार्य है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान विवाद ने सैन्य सफलता को पूरी तरह से राजनीतिक बना दिया है। यहां भारतीय फौज के काम से कोई विरोधाभास नहीं है। क्योंकि यह स्पष्ट है कि फौजल ने  राजनीतिक निर्देश के तहत काम किया है।  पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था।  रिमोट सेंसिंग प्रणाली के विशेषज्ञों का मानना है कि हमले के सबूत के रूप में टेलीविज़न चैनलों में जो वीडियो दिखाया जा रहा है, वह स्पष्टीकरण से ज्यादा संदेह पैदा करता है। लेकिन यहां उस सामग्री के विश्लेषण का कोई उद्देश्य नहीं  है।

सर्जिकल स्ट्राइक शब्द को मीडिया के ज्ञान गुमानी लोगों ने   इस तरह से उपयोग किया है कि हैरत होती है यह शब्द यहां हास्यास्पद हो गया है। हमें याद  रखना चाहिए कि यह कार्य गुलाम कश्मीर में सामरिक छापे से ज्यादा कुछ नहीं था। एक हमला था जिसका  उद्देश्य और फितरत  अन्य हमले से अलग है।  यह छोटी  अवधि का गोपनीय हमला है जो हल्के हथियारों से लैस सशस्त्र समूहों द्वारा तेजी से किया जाता है ताकि  अधिकतम नुकसान किया जा सके।  हमले के बाद अपने क्षेत्र में सुरक्षित वापसी के साथ इसकी पूरी प्रक्रिया समाप्त होती है।  जो कथा अभी कही जा रही है वह मूल रूप से वह नई बोतल (सर्जिकल स्ट्राइक) में पुरानी (हमला) शराब है। साधारण  सैन्य कार्रवाइयों को सिनेमाई ग्लैमर में रंग कर उसे , "रैम्बो" जैसा दिखाना खेदजनक है। हमारी सेना को इस " महिमा-मार्ग " से हटना चाहिए। वैसे, सेना के पास अपनी "सैन्य शब्दावली" होती है। "सर्जिकल स्ट्राइक" और "शूट एंड स्कॉट" (कारगिल ऑपरेशंस के दौरान लोकप्रिय) सेना की शब्दावली में नहीं हैं। अमरीकियों द्वारा  फैंसी मुंहबोले नाम बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन वे कार्रवाई के महत्व को बढ़ाते नहीं हैं। सितंबर 2016 का हमला एक नियमित ऑपरेशन था, जिसका उद्देश्य उड़ी की बर्बरता को बदला लेना था। यहां नियमित (रूटीन) शब्द ज्यादा  महत्वपूर्ण है। - सेना राजनीतिक हस्तक्षेप या उसके बिना वैसे ऑपरेशन कर सकती थी। यहां जानना जरूरी है कि संवेदनशील ऑपरेशंस  का खुलासा,चाहे इसे जिस ब्रांड नाम से पुकारा जाय ,न तो सेना के हित में सै और न ही राष्ट्रीय हित में है। बुनियादी और प्राथमिक सैन्य शिक्षण भी  है कि  कभी भी सैन्य संचालन के विवरण का खुलासा न किया जाय। ऐसा करने से सैनिकों का जीवन खतरे में पड़ता है। इस ऑपरेशन के ब्योरे को खुलासा करना सही नहीं था। प्रचार  का लाभ हालांकि मिलता है पर बाद में वह बेकार हो जाता है।  इस तरह के सभी कार्यों को एक "व्यावहारिक अस्वीकरण" के तहत निपटाया गया था। पाकिस्तानी डीजीएमओ को एक शांत, लेकिन कड़े संदेश को यह बताने के लिए पर्याप्त होना चाहिए कि हमारी "सहिष्णुता की सीमा" पार हो गई है। इसके बजाए हमने दुनिया को जोरदार घोषणाएं की हैं। सचमुच, पूरे प्रकरण को हमारे सैन्य अधिकारी के लिए एक सबक के रूप में कार्य करना चाहिए। राजनीतिक दल किसी के दोस्त  नहीं होते हैं - उनका लक्ष्य केवल राजनीतिक लाभ के लिए सिस्टम का उपयोग करना है। एक कमांडर को ऑपरेशन शुरू करने से पहले, फौजी जरूरत  और सफलता के अवसर से आश्वस्त होना चाहिए। सैन्य मामलों पर राजनीतिक सलाह देना  भले ही यह हानिकारक हो और अशिष्ट हो  - याद रखें जर्मनी में क्या हुआ जब एक राजनीतिक नेता सैन्य सलाह को अमान्य कर देता था। असल में, ऐसे कई उदाहरण हैं जब  फौजी कमांडरों  दबाव के आगे घुटने नहीं टेके हैं।  फील्ड मार्शल एलन एफ ब्रुक ने ब्रिटिश प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल की सलाह को अमान्य कर दिया था। 1975 में आपातकाल के दौरान श्रीमती गांधी के दिशानिर्देशों के बावजूद जनरल रैना ने विरोध किया था यही नहीं  मार्शल सैम मानेकश ने 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी के दबाव का विरोध किया था।  त्रासदी यह है कि अल्पकालिक लाभ के लिए अंतरंग विवरण का यह प्रकाशन पाकिस्तान के लिए फायदेमंद है; अगली बार वह तैयार रहेगा  और इंतजार करेगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि इस तरह के हमले अतीत में भी हुए हैं, केवल उस समय कोई कानों कान नहीं जान सका। उदाहरण के लिए, नवंबर1999में, भारत के नौशेरा क्षेत्र में नियंत्रण रेखा  पर एक चौकी पर पाकिस्तानी बीएटी ने सात भारतीय सैनिकों को मार डाला और सिर काट कर ले गये।  इन सिरों को पाकिस्तान में ट्राफियों के रूप में दिखाया गया था। यह कहने का पर्याप्त कारण है कि सेना बदला लेने के लिए तैयार थी।  फरवरी 2000 में अपने सैनिकों का बदला लेने के बाद, जब एक पाकिस्तानी पोस्ट  के अंदर दूर तक हमला किया था और उनके 16 सैनिक मारे  थे। लेकिन, प्रत्येक मामले में पूछे जाने वाले सवाल यह है: उद्देश्य क्या है? क्या यह आगे के हमलों को रोक देगे। राष्ट्रव्यापी राष्ट्रवाद के नाम पर आस्तीन चढ़ाने वाले पाकिस्तान के खिलाफ किसी भी कार्रवाई को  देशभक्ति मानते हैं। दुर्भाग्यवश, न्यूज़रूम और स्टूडियो इन दिनों "राष्ट्रवाद" की ओर झुके प्रतीत होते हैं। " देशभक्ति " नहीं "सरकार भक्ति" के जुनून में लोग यह भूल जाते हैं कि किसी भी सैन्य कार्रवाई को समझने और उसकनी सफलता के  लिए कई कारकों का विश्लेषण  की आवश्यकता होती  है। सीमा पार कितनी दूर तक कितनी देर तक , किस क्षेत्र में, किस उद्देश्य के लिए, और कितनी बार कार्रवाई की गयी यह जानना जरूरी है।  जबतक इनमें से प्रत्येक प्रश्न को संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता है, कार्रवाई को कमजोर माना जाता है।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सर्जिकल हमले को राजनीतिक लाभ के लिये राष्ट्रीय समाचार बनाया गया। इसका चुनावी लाभ के लिए उपयोग करना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है। सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर यह जो कुछ भी किया जा रहा है वह राष्ट्र हित में नहीं है। 

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