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Thursday, July 26, 2018

मॉब लिंचिंग आतंकवाद का एक रुप है

मॉब लिंचिंग आतंकवाद का एक रुप है

लगभग 5 सदी पहले थॉमस हॉब्स ने कुदरत की एक घिनौनी स्थिति का जिक्र किया था जिसमें "जीवन बहुत ही घिनौना क्रूर और लघु था।" महाभारत के शांति पर्व में मत्स्य न्याय के एक राज्य का वर्णन है । यहां "बड़ी  मछली छोटी  मछली को खा जाती है और  अराजकता बनी रहती है ।" यह वहां का कानून है । हमें ना  हॉब्स का समाधान चाहिए और ना शांति पर्व की व्यवस्था। भारत में मॉब लिंचिंग हमें यह बताती है हमारा देश एक हिंसा प्रवण राष्ट्र है। उपेंद्र सिंह की पुस्तक प्राचीन भारत में राजनीतिक हिंसा (पोलिटिकल वायलेंस इन अंसिएंट इंडिया) में  हिंदू समुदाय की  हिंसा के उदाहरण हैं। दंगे कभी भी हत्या के बहाने नहीं बन सकते। 1984 की सिख विरोधी हिंसा लिंचिंग का एक उदाहरण है। यही नहीं गुजरात में ट्रेन में हिंदुओं की हत्या भी एक उदाहरण है। हालांकि इसको लेकर काफी विवाद है । बेस्ट बेकरी भी निर्दोष लोगों को जिंदा जला देना घटना का उदाहरण है। देश के कई हिस्सों में महिलाओं को डायन करार दे कर पीट-पीटकर मार डालने की घटना अक्सर सुनने में आती है। ग्राहम स्टेंस और उसके बच्चों को रात में सोते समय  जिंदा जला देने की घटना बहुतों को याद होगी । स्टेंस की पत्नी हत्यारों को माफ कर सकती है लेकिन क्या हम कर सकते हैं? 
    जस्टिस वाधवा की रिपोर्ट हिंदू प्रतिपक्षियों की बुराई के बारे में विस्तार से बताती है। 400 वर्ष पुराने बाबरी ढांचे को तोड़ा जाना भारत के इतिहास में एक नया मोड़ था। वर्तमान महान्यायवादी के के वेणुगोपाल ने इस घटना पर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि "मेरा सिर शर्म से झुक जाता है।" लेकिन 1993 की फरवरी में भाजपा के श्वेत पत्र में इस हिंसा उचित बताया गया था । खाप पंचायत और अन्य समूह विजातीय नौजवान शादीशुदा जोड़ों को फांसी पर लटका देते हैं । एक मामला ऐसा भी सुनने में आया था की एक दलित महिला को गांव में नंगा घुमाया गया था। हिंदू अपराधियों ने भंडारकर लाइब्रेरी को सिर्फ इसलिए फूंक दिया कि वहां एक विदेशी लेखक शिवाजी पर काम कर रहा था । हुसैन या अन्य लोगों की कलाकृति को ,जो लोगों के निजी संग्रह में थी, उन्हें बर्बाद कर दिया गया। मुंबई का दंगा सबको याद होगा जब पुलिस लोगों को मारे जाने की घटनाओं को चुपचाप देखती रही थी। बच्चा चोरी की अफवाह को लेकर लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की घटनाएं अक्सर सुनने में आ रही हैं । यही नहीं गाय की रक्षा के नाम पर लोगों को मार दिया जा रहा है। क्या यह सब मिसाले सही हैं? या  ,सुनने में अच्छी लगती हैं ? इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने मीडिया को भी जिम्मेदार बताया है। अदालत ने इस पर रोकथाम लिए 9 उपाय बताएं हैं । लेकिन जब तक राजनीतिक दलों में इसके लिए नफरत नहीं होगी और सिविल सोसाइटी सामुदायिक स्तर पर इसकी निंदा नहीं करेगी तब तक यह कायम रहेगी। अविश्वास प्रस्ताव के उत्तर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि वह चौकीदार है और इस सब के लिए भागीदार हैं। लेकिन हिंदू समुदाय में जब तक इसके लिए निंदा होगी और राजनीतिक दलों की चुप्पी ने सबको यहां तक कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी इसका ठेकेदार बना दिया है। हिंदू समूह यह समझता है गौ हत्या रोकने की कोशिश उनके लिए वोट ले आएगी। राहुल गांधी का मोदी को गले लगाना भी जयंत सिन्हा का लिंचिंग में  शामिल अपराधी को माला पहनाने के तुल्य है। लिंचिंग की घटना एक तरह से आतंकवाद है । 
    देश में विविधता एक हकीकत है और इसको स्वीकार करना होगा । अगर हम यह समझते हैं कि हिंदुत्व ही राष्ट्रीयता है तो हम गलत कर रहे हैं और यह हमारे समुदाय का कर्तव्य है कि समाज को सुरक्षित तथा जीने योग्य बनाएं । क्योंकि हम बहुसंख्यक हैं और यह हमारी जिम्मेदारी है ,लोकतंत्र का भी यही तकाजा है । जरा सोचिए क्या हम अपने बच्चों को यही भारत दे कर जाएंगे जहां जीवन हिंसा से भरा हो और चारों तरफ का वातावरण भयभीत हो।
सियासत लोगों में बटवारा करती है समाज उन्हें एकजुट करता है। राम का शबरी  के जूठे बेर खाना किस को नहीं याद है । समाज इसी सौहार्द का और सौमनस्यता का पक्षधर है। उसे बांटने की कोशिश ना की जाए।

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