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Sunday, July 29, 2018

भूख और कुपोषण का असर

भूख और कुपोषण का असर

सब्र की एक हद होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रखें कब तलक नारों से दस्तरखान को

कुछ दिन पहले झारखंड में एक महिला की मौत भूख के कारण हो गई । अभी 2 दिन पहले दिल्ली में 3 बच्चियों की भूख के कारण मौत हो गई। उन का बाप रिक्शा चलाता था और मकान भाड़ा नहीं दे सका इसलिए घर खाली करने के लिए मकान मालिक ने जोर दिया और बाप घर छोड़कर लापता हो गया। घर में बेटियां भूख से तड़प-तड़प कर मर गईं। यह समझ में नहीं आता भारत जैसे महान देश में लोगों को भूख से से मरने को मजबूर क्यों किया जाता है। बहुत पहले एक सर्वे रिपोर्ट आई थी कि इस दुनिया में हर एक सेकंड में एक आदमी भूख से मर जाता है। यानी, 3,600 लोग हर घंटे भूख से मरते हैं। अगर इस आंकड़े को थोड़ा और फैलाएं तो दुनिया भर में हर साल 31 लाख 53 हजार 6 सौ लोग भूख से मर जाते हैं।  विकास का डंका बजाने वाली इस दुनिया में  93.5 करोड़ लोग कुपोषण और भूख के शिकंजे में हैं। कहीं ना कहीं हर 6 सेकंड में कोई बच्चा भूख से मर जाता है। एक रिसर्च के मुताबिक 84 भूखे देशों की फेहरिस्त में भारत का स्थान 67वां है। विकास की तेज रफ्तार का ढोल पीटने  वाली सरकार भूख से मरने वालों की रफ्तार कम करने में कहीं सक्रिय नहीं दिखाई पड़ रही है। वरना ,सत्ता के गलियारे से थोड़ी ही दूर पर दिल्ली के एक कोने में 3 बच्चियां भूख से तड़प कर नहीं मरी होतीं। कैसी अजीब बात है, यह देश जहां अभी हाल में यह खबर आई है कि हम बहुत तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था हैं और हमने कई देशों को पीछे छोड़ दिया है, ऐसे देश में लोग भूख से मर रहे हैं । एक ऐसा देश जहां आनाज चूहे खा जाते हैं इस पर कोई बहस नहीं है । भारत दुनिया का सबसे ज्यादा कुपोषित लोगों का देश है । हर तीसरा बच्चा कुपोषित है और इसका एकमात्र कारण है उन्हें लगातार लंबी अवधि तक भरपेट खाना नहीं मिला । यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 5 वर्ष कम उम्र के बच्चों में मरने वालों में आधे बच्चे भुखमरी और भूख से मरते हैं । हालांकि मरने का अंतिम कारण भुखमरी नहीं माना जाता है। बीमारी मानी जाती है, जैसे पेचिश- निमोनिया इत्यादि । लेकिन, मरने वाला बच्चा इसलिए बीमार पड़ा कि वह भूख के कारण बहुत कमजोर हो चुका था और बीमारियों ने  उस पर हमला कर दिया । दूसरे शब्दों में कहें तो बच्चा भूख से मरा है। हाल में एक आकलन के अनुसार हमारे भारत देश में 15 लाख बच्चे हर साल यानी लगभग साढ़े 4 हजार बच्चे रोज भूख से मर जाते हैं। इनमें से कम से कम एक तिहाई बच्चों को सोने के पहले कुछ खाना मिल जाता वह मरते नहीं। कुछ बच्चे जो मरने से बच जाते हैं उनका जीवन हमेशा गरीबी में झूलता रहता है । भूख केवल शरीर को ही नहीं कुपोषित करती है यह दिमाग पर भी असर डालती है। कुल मिलाकर नतीजा यह निकलता है पूरी पीढ़ी जो गरीबी में पैदा होती है उसका बौद्धिक विकास  अवरुद्ध होता है । वह अपना जीवन भी उसी गरीबी में गुजारते हैं , जिसमें उनका जन्म हुआ था। वे गरीब बच्चे अपने साथ के उन बच्चों से पहले मर जाते हैं जिन्होंने रात में खाना खाकर सोया था। यानी अकाल मौत उनके मुकद्दर में लिखी होती है। 
    यहां इस से मतलब नहीं है कि हमारी अर्थव्यवस्था कितनी तेजी से बढ़ रही है।  मतलब है कि हमारे देश के लाखों बच्चे अपने परिवार के साथ भूखे सो जाते हैं । आजादी के 70 साल के बाद भी जब सरकारी अनाज के भंडार भरे रहते हैं वैसे में  बच्चों का भूख से मरना एक राष्ट्रीय शर्म की बात है।
       जी में आता है कि आईने को जला डालूं
         भूख से जब मेरी बच्ची उदास होती है

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