CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, July 25, 2018

अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष को क्या मिला

अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष को क्या मिला

विगत चार वर्ष पहले बड़े-बड़े वायदे और नारों के बल पर जब एनडीए सरकार सत्ता में आई तब से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं बुलाई ताकि वह विधि विभिन्नता और अर्थव्यवस्था की दशा के बारे में जनता की आशंकाओं का अंदाजा लगा सकें। ना ही, उन्होंने  सिविल सोसाइटी और सही बात करने वाली मीडिया की बातों पर ध्यान दिया। वे केवल अखबारों में महंगे विज्ञापन देते रहे और मंत्रियों की ठकुरसुहाती से फूले रहे। उन्होंने यह भी नहीं देखा कि देश किन खतरों की तरफ बढ़ रहा है। आरोप और शिकायतों को दरकिनार कर दिया जाता है या प्रत्यारोप में बदल दिया जा रहा है।
      इससे उत्पन्न कुंठा तथा लंबे अरसे से पारदर्शिता एवं जवाबदेही अभाव से ऊब कर एक नई परिस्थिति का जन्म हुआ।  इसी परिस्थिति ने अविश्वास प्रस्ताव के लिए विपक्ष को मजबूर किया । वरना, विपक्षी दल इतने नादान नहीं है कि उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रस्ताव पराजित हो जाएगा ।उन्हें अपनी संख्या और सत्तारूढ़ दल की संख्या बखूबी मालूम थी।
      अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए तेलुगू देशम पार्टी के सांसद जयदेव गल्ला ने सही कहा कि यह आंध्र प्रदेश की जनता से अन्याय के खिलाफ जंग है। उन्होंने  कहा कि मोदी सरकार ने अमरावती बांध के लिए बहुत कम पैसे दिए हैं , इससे ज्यादा तो सरदार पटेल की मूर्ति बनाने के लिए दिया गया । उन्होंने बताया  कि जितनी राशि की जरूरत थी उसका महज दो तीन प्रतिशत ही मुहैया कराया गया। उन्होंने कहा कि " मोदी-शाह के काल को बिना पूरे किए गए वायदों की अवधि के रूप में गिना जाएगा।" 
   तृणमूल कांग्रेस के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने जानबूझकर पौराणिक संदर्भ उठाते हुए कहा कि " पांडवों के पास संख्या नहीं थी लेकिन सच तो था । यही कारण था कि पांडवों ने सच का पक्ष लिया।"  यह लोकसभा में सत्तारूढ़ की विशाल संख्या पर स्पष्ट तंज था । उन्होंने मोदी सरकार को शतुरमुर्ग बताया जो संकट के समय अपना सिर बालू में छिपा लेता है और समझता है कि खतरा टल गया। सरकार को मॉब लिंचिंग का मूक दर्शक बताया गया।
     यह अविश्वास प्रस्ताव कभी भी संख्या या विजय की मंशा से संबद्ध नहीं था। यह शासन में जो गैर जिम्मेदारी है और गैर जवाबदेही व्याप्त है उसे प्रदर्शित करने के लिए और जनता के सामने रखने के इरादे से प्रस्तुत किया गया था । यह एक तरह से जनता दरबार की तरह था और सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से था। यह घोड़े को तालाब तक खींचकर लाने जैसा था इस उम्मीद में कि वह पानी पी ले।
ज़रूरत से ज्यादा  प्रचार तथा हालात के बारे में गलत सूचनाओं के भ्रमजाल जाल में उलझी जनता के समक्ष सच लाने की कोशिश की तरह था ।  यह सोचना बिल्कुल बचपना है कि सरकार हर आरोप का जवाब देगी । जितने आरोप विपक्ष ने लगाए वह पहले भी पत्रकारों और प्रेस द्वारा लगाए जा चुके हैं । उन्हें मौन या झूठे समतुलयों से उसे गलत बताया जा चुका है । भक्त मंडली किसी भी आरोप को पिछले 70 साल से जोड़कर सामने पेश करती है। राहुल गांधी ने रफाएल सौदा, रोजगार के अभाव ,डोकलाम की घटना ,मोदी जी की चीन यात्रा और उसके प्रतिफल ,एक गुट का पूंजीवाद और किसानों की पीड़ा इत्यादि को उठाया। जो भी हो जिन्होंने संसद की कार्यवाही देखी है उन्होंने यह भी देखा होगा की राहुल गांधी का आम लोग  चाहे जितना मजाक बनाएं लेकिन उनके भाषण के दौरान मोदी जी आंख तक नहीं उठा पाए थे । मोदी जी का बॉडी लैंग्वेज एक अजीब परेशानी को प्रदर्शित कर रही थी। हम जानते हैं इसके बाद क्या हुआ राहुल गांधी का गले लगना और उसके बाद उनकी आंख मारने की घटना ने बहस के प्रभाव को खत्म कर दिया ।
    बेशक अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया लेकिन विपक्ष ने अपना उद्देश्य प्राप्त कर लिया। उसने सरकार के बारे में जनता के सामने सब कुछ खोल कर रख दिया अब हो सकता है रफ़ाएल सौदा आगे चलकर इस सरकार के लिए बोफोर्स बन जाए । बहुतउम्मीद है कि यह प्रधानमंत्री के लिए 2019 में मुश्किलें पैदा कर दे।

0 comments: