दुष्प्रचारों से फायदा नहीं होता प्रधानमंत्री जी
किसी भी नेता की लोकप्रियता चार बातों पर निर्भर करती है जिसे अंग्रेजी में "4 पी " कहते हैं । यह हैं "पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी, प्रोपगंडा, पनिशमेंट और परसेप्शन " मतलब नेता की राजनीतिक रणनीति- प्रचार, विरोधियों को सजा और इसके बाद उसके बारे में कैसा विचार बनता है । चाहे जो भी हो वह प्रोपगंडा और पनिशमेंट यानी प्रचार और सजा का इस्तेमाल अक्सर अपने विरोधियों पर करता है। लेकिन, यहां सबसे महत्वपूर्ण है कि वह इसका उपयोग कैसे करता है इसके उपयोग से तय होता है कि एक विशेष नेता का चरित्र कैसा है तथा उसकी सरकार कितने दिनों तक टिक सकती है।
इतिहास में इसका सबसे बर्बर प्रयोग हिटलर ने किया था वह अपने विरोधियों को मरवाने तक से लेकर उनके खिलाफ भारी दुष्प्रचार करवाता था। उसका अंत भी बहुत बुरा हुआ । आधुनिक युग में सबसे उदार नेता नेल्सन मंडेला थे जिन्होंने अपने विरोधियों के खिलाफ प्रचार और सजा का उपयोग बहुत ही संयम और गंभीर सोच विचार के साथ किया। जाहिर है कि हर नेता प्रचार और सजा को अपने राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बनाता है। यही सत्य होता है कि उसके बारे में लोगों का परसेप्शन यानी मान्यता क्या है ? राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां भौतिक शास्त्र के न्यूटन तीसरे गति सिद्धांत की तरह "हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।" अगर कोई नेता जरूरत से ज्यादा प्रचार और सजा का सहारा लेता है तो उसके लिए एक "पांचवा पी" भी है। वह है "परसेक्यूशन यानी उत्पीड़न।" नेता के लिए विरोधियों के उत्पीड़न का भाव पैदा होता है और इससे विरोधियों को फायदा हो जाता है।
1977 में आपात स्थिति के बाद इंदिरा गांधी की भयानक हार हुई और सब कहने लगे उनका राजनीतिक करियर खत्म। जनता पार्टी के नाम से बने गठबंधन को उस जमाने में लगभग 52 प्रतिशत वोट मिले थे । इंदिरा गांधी की हालत ऐसी हो गई थी कि उनके बेहद भरोसेमंद साथियों ने भी साथ छोड़ दिया था। वह दिल्ली के लुटियंस वाले बंगले में अकेले घूमती नजर आती थीं- बेहद उदास और निपट अकेली। उसी दौरान तत्कालीन जनता सरकार ने एक गंभीर गलती कर दिया। सत्ता संभालने के महज 2 महीने के भीतर उसने इमरजेंसी में ज्यादतियों की जांच के लिए इंदिरा गांधी को केंद्र बनाकर शाह कमीशन का गठन किया। इंदिरा जी ने बहुत ही चालाकी से शाह कमीशन को "गलत इरादे से प्रेरित बदले की कार्रवाई " का स्वरूप देकर जनता के सामने पेश कर दिया। जनता सरकार ने सत्ता के मद में अनजाने ही गलती कर दी और इससे इंदिरा गांधी को राजनीतिक ऑक्सीजन हासिल हो गया। शाह कमीशन में इंदिरा जी के बेटे संजय गांधी और उनके सहयोगी प्रणब मुखर्जी ने उसकी वैधता को चुनौती दे दी और उनके सामने शपथ लेने से इंकार कर दिया। इस पर न्यायमूर्ति शाह अपने को संभाल नहीं सके और इंदिरा जी को फटकार लगा दी। सरकार ने एक और अनाड़ीपना किया। उसने इंदिरा जी को गिरफ्तार कर लिया और यह खबर दुनिया भर के अखबारों में हेडलाइंस बनी। इंदिरा जी पर आरोप इतने कमजोर थे कि अदालत ने उन्हें निर्दोष करार दे दिया। अदालत की इसी कार्रवाई को उन्होंने डंके की चोट पर अपनी जीत का ऐलान कर दिया। इंदिरा जी की हार से छाई धुंध फटने लगी और वह नई ऊर्जा के साथ मैदान में कूद गयीं। उसी समय बिहार के बेलछी में 11 दलितों को सवर्णों ने गोलियों से भून डाला था और जिंदा जला दिया था। इस वारदात से पीड़ित लोगों को सांत्वना देने के लिए इंदिरा जी उस दुर्गम स्थान पर हाथी पर सवार होकर पहुंचीं। अब तक सरकार का कोई मंत्री वहां संवेदना जाहिर करने नहीं आया था। इंदिरा जी के आते हैं फिजां बदल गई और गांव वाले नारा लगाने लगे "आधी रोटी खाएंगे इंदिरा को बुलाएंगे।" यह नारा उनकी प्रचार का जबरदस्त मौका बन गया और फिर इंदिरा जी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया । इधर जनता सरकार ने अपनी आत्मघाती ग़लतियों का सिलसिला जारी रखा और उन्हें संसद से निष्कासित कर दिया। वह 1980 में आम चुनाव में जबरदस्त जीत के साथ सत्ता में वापस आईं। उन्हें लोकसभा में 542 में से 353 सीटें मिली थीं। यह दुनिया के संसदीय इतिहास में सबसे बड़ी राजनीतिक वापसी थी।
वर्तमान में भी राजनीति का इतिहास धीरे धीरे दोहराव की ओर बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी 335 सीटों के साथ संसद में लौटे और कयास लगाया जा रहा था शाह कमीशन का दूसरा फेज शुरू होगा। संजोग वश भाजपा के अध्यक्ष का उपनाम भी शाह ही है । यह एक दुर्लभ संयोग है। मोदी जी ने भले ही बड़े पैमाने पर सजा देने का कदम नहीं उठाया है लेकिन दुष्प्रचार का दूसरा तीर तो उन्होंने चला ही दिया है । यह तीर अब बेलगाम हो चुका है और सोशल मीडिया पर फेक समाचार तथा टेलीविजन एंकर पोस्ट ट्रुथ हेडलाइंस के साथ प्रचंड प्रचार युद्ध चला रहे हैं।
राहुल गांधी के खिलाफ हर दिन बड़े पैमाने पर खबरें गढ़ी जा रही हैं , राजनीतिक मजाक बनाया जा रहा है । यह प्रोपेगंडा साफ तौर पर बचकाना ,फूहड़ और घटिया है। ऐसा ना हो की इसका उल्टा असर पड़े। मोदी जी को राजनीति के इतिहास की घटनाओं से सबक लेना चाहिए । दुष्प्रचार से तीनों "पी" प्रभावित हो सकते हैं । इसके प्रति सावधान रहना चाहिए नहीं तो उत्पीड़न का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
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