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Friday, July 6, 2018

फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो बढ़ा पर लाभ क्या ? 

फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो बढ़ा पर लाभ क्या ? 

भारत में उगाई जाने वाली फसलों के विविधीकरण पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का प्रभाव तभी पता चलता है जब किसान उसके बारे में जागरुक हो।  राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में केवल 23.72 और 20.04 प्रतिशत किसान खरीफ और रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसलों के एमएसपी से अवगत हैं। एमएसपी को प्रभावी खरीद द्वारा समर्थित खरीद के साथ विस्तारित किया जाना चाहिए ताकि किसान इसका लाभ उठा सकें। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भारत की कृषि मूल्य नीति का एक अभिन्न अंग है। इसका लक्ष्य किसानों को समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत सुनिश्चित करना है। पिछले कुछ दशकों में मांग-आपूर्ति की स्थिति में भारी परिवर्तन के कारण फसलों की विविधता की जरूरत पड़ी और ऐसे में किसानों की सुरक्षा के लिये समर्थन मूल्य की बड़ी भूमिका है। एमएसपी की भूमिका खुले बाजार में जब मूल्य एक सीमा से  नीचे गिर जाता है तो उस फसल एक न्यूनतम  मूल्य निर्धारित करके किसानों से उसी मूल्य  पर उत्पाद खरीदना है। एक किसान फसलों के लिए समर्थन मूल्य से अवगत होने पर एमएसपी से नीचे बेचने से इंकार कर सकता है। यदि वह फसलों के एमएसपी के बारे में भी अवगत नहीं है, तो व्यापारियों और बिचौलियों ने शोषण को बदल दिया है। अतएव, एमएसपी के बारे में जागरूकता जरूरी है तब ही इसका लाभ मिल सकता है। बुधवार को कैबिनेट कमेटी ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स की बैठक के बाद खरीफ फसलों की कीमतों में वृद्धि की घोषणा की गयी।  धान के साधारण  ग्रेड की कीमत 200 रुपये प्रति  क्विंटल बढ़ा कर 1750 रुपये कर दी गई जबकि  ए ग्रेड के मूल्य में 160 रुपये वृद्धि की गयी और इसका भी समर्थन मूल्य 1750 रुपये प्रति क्विंटल रहेगा। यानी टके सेर पानी और टके सेर खाजा। अरहर दाल की कीमत 5450 रुपये से बढ़ा कर 5675 रुपये प्रति क्विंटल, मूंग दाल की कीमत 5575 से बढ़ा कर 6975 रुपये प्रति क्विंटल की गई है। देश की अधिकांश जनता चावल खाती है ओर धान का खरीद मूल्य बढ़ गया। अब  इससे सरकार की फूड सब्सिडी बढ़ क 11,000 करोड़ रुपये हो जाएगी।  देश भर में दक्षिण पश्चिम मानसून की बारिश के साथ ही धान की रोपाई शुरू हो चुकी है।लेकिन बुधवार को सरकार ने जो एम एस पी बड़ाई है वह अखबारों की हेडलाइन के लिये बड़ा आकर्षक है लेकिन इससे किसानों को शायद ही लाभ मिले। क्योंकि प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दश में महज 39 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जो जानते हैं कि गेहूं एम एस पी पर खरीदा जाता है तथा चावल की खरीद के बारे में तो इससे भी कम केवल 31 प्रतिशत ​किसान ही वाकिफ हैं। बुधवार को हुई वृद्धि के बारे में केवल 2.5 प्रतिशत किसान ही जानते हैं। अब सोचिये कि देश के 97.5 प्रतिशत किसान जि बात कें बारे में जानते ही नहीं तो बेचेंगे क्या? आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और कर्नाटक में अनाज की खरीद केवल नाममात्र की होती है और असम में तो नगण्य है। अब सोचिये कि अगर किसान कुछ बेचते ही नहीं तो एम एसस पी बढ़े या घटे उनकी बला से। पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों में सरकारी खरीद जम कर होती है। वहां के किसानों को इस वृद्धि  से लाभ जरूर  होगा। पर  कुछ राज्यों के थोड़े से किसानों को फायदे को क्या चमत्कारी कहा जा सकता है? 11,000 करोड़ रुपए खर्च करने के इस फैसले से किसानों का तो भला नहीं होने वाला पर यकीनन बिचौलियों की चांदी हो जायेगी। ज्यादा एमएसपी बड़ने से भले ही कुछ किसानों को राहत मिले और कृषि अर्थव्यवस्था पर भी असर बढ़े, लेकिन फसलों की कीमतों में वृद्धि से  महंगाई बढ़ेगी। रिजर्व बैंक ने जून की अपनी नीति समीक्षा में एमएसपी में वृद्धि  को महंगाई बढ़ाने वाला बताया  था। रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई दर में वृद्धि की वजह से ब्याज दरों में .25 प्रतिशत  वृद्धि की सिफारिश की थी। साथ ही इससे वित्तीय घाटा 0.35 प्रतिशत  बढ़ सकता है। यही नहीं ,महंगाई में भी कम से कम 0.7 वृद्धि हो सकती है।   बेहतर मानसून और एमएसपी में इजाफे की वजह से फसल उत्पादन बढ़ सकता है  लेकिन इससे महंगाई बढ़ने की भी आशंका बढ़ गई है। अब क्या इसे किसानों के हित के लिए ये बड़ा फैसला कहा जा सकता है। 

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