नया जुमला होगा जी डी पी
2014 की गर्मियों से एक फैशन चला है सियासत में खासकर भाजपा- संघ की सियासत में कि पहले किसी मसले को इतना प्रचारित किया जाता है कि लोक उसे छोड़ कर कुछ सोचता ही नहीं और उसी प्रचार की झंझा में उसे चुनाव का मुद्दा बना दिया जाता है। आबादी के अधिकांश हिस्से के दिमाग पर लगातार एक ही प्रहार और चिंतन गुम हो जाता है। ई वी एम का बटन दबाने के पहले वही प्रहार वोट में बदल जाता है। यह विज्ञापन की बहुत प्रचलित समरनीति है और भक्तवृंद के समूह के माध्यम से इसे सियासत मे इस्तेमाल किया जा रहा है। यही कारण था कि 2014 में किसी ने यह नहीं सोचा कि क्या 15 लाख बैंक खाते में ऐसे ही आ जायेंगे। यह एक खुशफहमी थी कि रुपये आ जायेंगे और नोटबंदी तक यह खुश फहमी कायम रही। शायद कुछ लोगों ने गौर किया होगा कि नोटबंदी के बाद एक नया सपना स्वरूप ले रहा है। वह सपना है बढ़ते हुये जी डी पी का। इसकी भूमिका शुरू हुई " मोदी केयर " के नाम से। यह बजट में एक महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना है जिसके तहत देश के 26 करोड़ परिवारों को हर साल 5 लाख रुपये तक के इलाज का खर्चा सरकार देगी। इसके बाद पांच सितारा अस्पतालों में मरीजों की भीड़ लग गयी। इलाज में लेन - देन का बाजार गर्म हो गया। अस्पतालों की आमदनी बढ़ गयी। अगर हर परिवार से एक आदमी भी " बीमार " पड़ा तो 26 करोड़ लोग " बीमार " हो गये इस देश में। लेन- देन के समीकरण से अस्पतालों की समग्र आमदनी में 130 लाख करोड़ का इजाफा हो गया। देश का जी डी पी पिछले साल 170 लाख करोड़ था जो इस साल सीधे 300 लाख करोड़ हो गया। जी एस टी के विज्ञापनों पर 117 करोड़ खर्च हुये। जी डी पी में यह बी जुड़ा। अब फिर आइये मोदी केयर योजना पर। आप हैरत में पड़ जायेंगे कि अगर कोई बीमार ना पड़े ण्और कभी डॉक्टर के पास जाने की नौबत ना आये तो जी डी पी में गिरावट आने लगती है। अगर कार ज्यादा धुंआ देती है या ज्यादा पेट्रोल ख्एार्च करती है तो जी डी पी बढ़ता है। जी डी पी की वृद्धि में वायू प्रदूषण , सिगरेट के विज्ञापनों यहां तक कि परमाणु बम जैसे हथियार बनाने में खर्च से भी जी डी पी बढ़ता है। अगर संक्षेप में कहें तो जीवन को समृद्ध बनाने वाली बातों के अलावा हर बात जी डी पी की वृद्धि में अपनी भूमिका निभाती है।
गत 26 जून 2018 को मोदी जी ने एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक की वार्षिक बेठक में बड़ी शान से कहा कि हमारे देश की विकास दर 2018 में 7.4 प्रतिशत है जो हमारे आकार की दुनिया की किसी भी अर्थव्यवस्था से ज्यादा है। यही नहीं देश में महंगायी और राजकोषीय ााटा काबू में है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पिछले चार वर्षों में 222 अरब डालर से ज्यादा रहा और विदेशी मुद्रा भंडार में 400 अरब डालर से ज्यादा धन है। मोदी जी की एक आदम है वे उम्मीद जगाने वाली बात ही बोलते हैं। मसलन, उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि नहीं चुकाये जाने वाले कर्ज 10.3 लाख करोड़ तक पहुंच गये। ऐतिहासिक अर्थशास्त्रीय आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि 1938 से 1943 के बीच अमरीका का जी डी पी 75 प्रतिशत, ब्रिटेन का 27 प्रतिशत और जर्मनी का 21 प्रतिशत था। यह वही दौर था जब दुनिया विश्व युद्ध के दौर से गुजर रही थी। लाखों लोग मारे गये थे और सैकड़ों शहर बर्बाद हो गये थे। लेकिन युद्ध में शामिल देशों के जीडीपी बढ़ गये थे। अगर जी डी पी ही सबकुछ है तो क्या इस स्थिति पर जश्न मनाया जा सकता था क्या? इसका मतलब है कि जी डीपी में बेहतर पर नहीं ज्यादा पर जोर रहता है। मोदी जी इसी ज्यादा को बेहतर के रूप में चित्रित कर दिखाने में लगे हैं।
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