पश्चिम को भारत की ज्यादा जरूरत है
दो हालिया रिपोर्टों ने विदेशी आलोचनाओं के प्रति भारतीय संवेदनशीलता को कम कर दिया है। पहली रिपोर्ट थी जम्मू-कश्मीर में भारत की भूमिका पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचसीआर) की। यह पक्षपातपूर्ण और गलत थी। सितंबर 2016 में अधिकृत वाले कश्मीर (पीओके) पर सर्जिकल हमले नेतृत्व कनरने वाले लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुड्डा, ने रिपोर्ट को आठ शब्दों के साथ खारिज कर दिया कि "यह रद्दी की टोकरी में फेंकने लायक है।"दूसरी रिपोर्ट थॉमसन-रॉयटर्स फाउंडेशन से आई थी। इसमें भारत को "महिलाओं के लिए दुनिया में सबसे खतरनाक देश" कहा गया था। सीरिया, सोमालिया और पाकिस्तान की तुलना में यह अधिक खतरनाक है। सर्वेक्षण 548 "विशेषज्ञों" की धारणा पर आधारित था। कोई आंकड़ा नहीं था और घटनास्थल की रिपोर्ट नहीं थी। यह भी कूड़े में फेंकने लायक है। इस तरह की उलझन भरी रिपोर्ट को मानना इसे विश्वसनीयता प्रदान करता है।बेशक भारत में गरीबी है। लेकिन विदेशी निवेशकों के पास कोई विकल्प है क्या ?
भारत में कई कमियां हैं। गरीबी, विशेष रूप से आदिवासी इलाके में ज्यादा है। कानून और व्यवस्था की छिटपुट समस्याएं है। हिंसा स्थानिक है। अभी भी बड़े पैमाने पर पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएं असुरक्षित रहती हैं। भारत के कई हिस्सों में दलित भयभीत रहते हैं। अल्पसंख्यक खुद को हाशिए पर महसूस करते हैं। ग्रामीण और शहरी स्वच्छता प्राथमिक नहीं है। नागरिक दुर्व्यवहार ने मुंबई जैसे शहरों को कमजोर कर दिया है जहां लक्जरी टावरों अरबपति और गहरीब झोपड़ियों में या बेघर रहते हैं। फिर भी, इन हालातों के बीच भारत के उदय के बारे में अनिवार्यता है। पश्चिमी पूंजी भारत और अफ्रीका जैसे दो भौगोलिक क्षेत्रों आज भी लाभप्रद रूप से निवेश की जा सकती हैं। चीन उनकी पहुंच से आगे बबढ़ गया है। यूरोप और उत्तरी अमरीका तृप्त हैं और निवेश पर कम लाभ देते हैं। दक्षिण अमरीका आंतरिक संघर्ष और आर्थिक कुप्रबंधन से घिरा हुआ है। अफ्रीका में भारी क्षमता है लेकिन एक धुंधली राजनीतिक अस्थिरता है। इसके अलावा, महाद्वीप में 54 देश हैं जिनमें विभिन्न कानून और विकास के स्तर हैं। इसके विपरीत, भारत गरीब, अविकसित लेकिन स्थिर है। इसकी न्यायिक प्रणाली कष्टदायी और भ्रष्ट है। इसके कुछ कर कानून प्रतिकूल और अनावश्यक रूप से जटिल हैं। नौकरशाही एक अभेद्य दीवार के पीछे है। राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार है। फिर भी, विदेशी निवेशक भारत आते हैं। विदेशी निवेशकों से जब पूछा जाता है कि वे भारत में निवेश करने के लिए उत्सुक क्यों हैं तो वे यहां की गरीबी की ओर इशारा करते हैं। "भारत को बुनियादी ढांचे, आवास, विकास जैसी बहुत सी चीजों की जरूरत है । मध्यम वर्ग विशाल है और बढ़ रहा है। स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र बहुत अच्छा है। निवेश पर लाभ ज्यादा है।
पश्चिम को भारत के बाजारों की ज्यादा जरूरत है, भारत को पश्चिमी प्रौद्योगिकी की उतनी जरूरत नहीं है। भारत विश्व स्तर पर प्रौद्योगिकी खरीद सकता है, पश्चिम को दीर्घकालिक निवेश करने के लिए दूसरा स्थिर, लोकतांत्रिक, विशाल और अविकसित देश नहीं मिल सकता हैं। सबसे पहले चीन ने पश्चिम को चुनौती दी। अब भारत ऐसा करने के लिए तैयार है। एक पीढ़ी से भी कम समय में ही वैश्विक शक्ति के आकर्षण का केंद्र पश्चिम से निर्णायक रूप से पूरब में स्थानांतरित हो जाएगा। दुनिया की चार सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से तीन चीन, भारत और जापान एशियाई हैं। आर्थिक शक्ति का केंद्र अगर पूरब में आ जाता है तो पश्चिम की चार सदी की दासता और उपनिवेशवाद पर निर्मित और औद्योगिक क्रांति की हवा निकल जायेगी। दुनिया की 20 सबसे मूल्यवान कंपनियों में से नौ चीनी, ग्यारह अमरीकी हैं। पश्चिमी समाज में ऊपरी तौर नस्लवाद अस्वीकार्य है लेकिन सतह के नीचे यह जीवित और पूरी तरह से कायम है।
नई दुनिया में पश्चिम को शेष विश्व के साथ बराबर शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करनी है तब यह दूसरा सर्वश्रेष्ठ रह जाएगा। महाद्वीपीय पश्चिमी मीडिया, यूएनएचआरसी जैसे वैश्विक निकाय, मध्य पूर्वी कठपुतली रह जायेंगे और एमनेस्टी जैसे एनजीओ कूड़े में फेंकने लायक रिपोर्टों का मंथन जारी रखेंगे। समृद्ध लेकिन गिरावट वाला पश्चिम इस विचार को सहन नहीं कर सकता कि उसे गरीबों की आवश्यकता होगी लेकिन बढ़ते भारत को उसकी जितनी जरूरत है उससे ज्यादा उसे भारत की जरूरत है।
0 comments:
Post a Comment