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Friday, July 13, 2018

सुशासन बाबू भाजपा में ही रहेंगे

सुशासन बाबू भाजपा में ही रहेंगे
बिहार में नीतीश कुमार उर्फ सुशासन बाबू और भाजपा के गठबंधन को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी कि गठबंधन टूट जाएगा लेकिन गुरुवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पटना आने और नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद भाजपा अध्यक्ष ने घोषणा की कि नीतीश कुमार कहीं जाने वाले नहीं है। उन्होंने बड़े ही चालाकी भरे स्वर में कहा कि नीतीश कुमार भ्रष्टाचारियों को छोड़कर एनडीए में आए थे और अब वह भ्रष्टाचारियों के साथ नहीं रह सकते। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सीट को लेकर कोई मसला नहीं है। जैसे - जैसे अमित शाह के आने में विलंब हो रहा था वैसे- वैसे बिहार में अटकलें बढ़ती जा रही थीं। नितीश कुमार का भाव कुछ ऐसा था जैसे वह निश्चित नहीं कर पा रहे हो कहां जाएंगे अथवा ऐसा लग रहा था कि मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार के पास  भाजपा में रहने के अलावा  कोई ऑप्शन नहीं  है। वैसे राजनीतिक हालात ऐसा ही बता रहे हैं कि नीतीश के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। क्योंकि, लालू के घर पर तो उनके लिए प्रवेश निषेध का बोर्ड लगा हुआ है और कांग्रेस लालू को छोड़कर जाएगी नहीं । इसलिए वह भाजपा को छोड़कर कहां जाएंगे? शाह ने सीटों को लेकर कुछ इतने हल्के ढंग से कहा कि सीटों का बंटवारा कोई मसला है ही नहीं।  यानी , उस पर अभी बात नहीं होगी । नीतीश कुमार और अमित शाह के बॉडी लैंग्वेज को देखकर ऐसा लग रहा था कि उनमें गर्मजोशी की कमी है। नीतीश कुमार कभी बिहार के सुपरस्टार थे और उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार समझा जाता था। लेकिन दल बदलने के साथ ही उनका रुतबा भी बदल गया। यही नीतीश कुमार थे जिन्होंने 2015 के चुनाव में भाजपा को पटकनी दी थी और उसके विजय रथ को रोका था। हालांकि इसमें लालू का भी योगदान था लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा तो उन्हीं का था। आज इस स्तर के नेता को सीटों को लेकर भाजपा का यानी अपने सहयोगी दल का मुंह जोहना पड़ रहा है। अजीब-अजीब अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि नीतीश कुमार अपने दम पर अब 16-17 प्रतिशत वोट भी नहीं पा सकते हैं। सेकुलर वे अब रहे नहीं । क्योंकि भाजपा के साथ जाने पर उनकी छवि को दाग लग गया है। इस दौर में उनके सुशासन बाबू का तमगा भी छिन गया क्योंकि उनके शासनकाल में कई दंगे हुए महादलितों को सताया गया। अति पिछड़ों पर भाजपा की नजर पहले से ही है।  उनका वोट बैंक खिसक गया है । लेकिन उनकी कोशिश है कि ज्यादा सीटों पर तो लड़ना ही होगा । क्योंकि अगर कम सीटों पर लड़ते हैं तो कम सीट ही मिलेगी और इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी कम सीट पर ही लड़ना होगा तो क्या यह सुनहरी कुर्सी कायम रहेगी?
वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का शासनकाल देखें तो ऐसा लगेगा यह हालात आने ही वाले थे । क्योंकि उन्होंने अपने किसी वायदे को पूरा नहीं किया। हर फैसले में अवसरवाद से काम लिया और उन्होंने इतनी बार पाला बदला कि लोगों का भरोसा ही खत्म हो गया। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि  वह कहां हैं और किसके साथ खड़े हैं और कल कहां रहेंगे?
     बिहार में उनके शासनकाल में विकास हुआ ही नहीं और रोजगार की हालत सबसे ज्यादा खराब रही। यहां तक कि कानून और व्यवस्था  बिगड़ती गई । भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया। ऐसे में शासन का क्या कहा जा सकता है । नीतीश कुमार खुद अपने उच्च स्तर से उतरकर नीचे के आसन पर बैठ गए हैं । अब भाजपा के मोहताज हैं । अब सुशासन बाबू  भाजपा में ही रहेंगे उनके पास कोई और चारा नहीं है।

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