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Monday, July 30, 2018

चुनाव पूर्व गठबंधन से विपक्ष को शायद ही लाभ हो

चुनाव पूर्व गठबंधन से विपक्ष को शायद ही लाभ हो
2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष को  बहुमत मिलने की बहुत कम संभावना है । विपक्ष के लिए विभाजित महागठबंधन फेडरल मोर्चा की  समर नीति आवश्यक है , राष्ट्रव्यापी गठबंधन नहीं। ऐसे गठबंधन व्यर्थ साबित हो सकते हैं।  कांग्रेस के लिए ज्यादा अच्छा होगा कि  वह चुनाव पूर्व दो  राष्ट्रीय गठबंधन या फेडरल मोर्चा  तैयार करे। पहला हो, यूपीए मोर्चा जिसमें वामपंथी दल ,एनसीपी ,द्रमुक, जनता दल( एस), राजद, नेशनल कांफ्रेंस और अन्य छोटे दल शामिल हों। इस गठबंधन वाले  यूपीए के पास आज  लोक सभा में   75 सीटें हैं । दूसरा गठबंधन या मोर्चा हो  क्षेत्रीय दलों का।  जिसमें में सपा, बसपा टीएमसी , पीडीपी और अन्य छोटे-छोटे दाल होंगे ।   इनके पास वर्तमान  लोकसभा में  65 सीटें हैं।  दोनों को मिलाकर लोकसभा में इन दलों के  सांसदों की संख्या 140 हो जाती है ,जो बहुमत से बहुत पीछे है।
    अब अब अगर ये  दोनों घटक चुनाव के पहले ममता बनर्जी , अखिलेश यादव , लालू प्रसाद यादव का विशाल  परिवार ,मायावती, के. चंद्रशेखर राव , चंद्रबाबू नायडू, सीताराम येचुरी और शरद पवार जैसे मजबूत इच्छाशक्ति वाले नेताओं के साथ एक मंच पर आते हैं तो विस्फोट को रोका नहीं जा सकता। हालांकि , दोनों  अलग अलग चुनाव लडें और आपस में   सीटों का  तालमेल रहे और यह तय रहे कि चुनाव के बाद यदि मौका लगता है तो वह साथ आ आएंगे।  
       अब  जरा गणित पर गौर करें। कांग्रेस  2019 में  अपने बल पर 100  से ज्यादा सीटें  नहीं ला सकती है और यूपीए 130 पर जाते - जाते चुक जाएगी। इस बीच फेडरल मोर्चा जो सपा, बसपा और तृणमूल जैसे प्रदेशों में मज़बूत पकड़ रखने वाले दाल  वाह  सीटें आसानी से ला सकते  हैं ।  यानी,  दोनों मिलकर 250 हो गये । यह भी   272 सीटों से थोड़ा पीछे रह गए ।  अब अगर यही ग्रुप एकजुट होकर 2019 का चुनाव लड़ते हैं तो अपने संभावनाओं को समाप्त कर देंगे,  क्योंकि वोटर  इन्हें मोदी बनाम अन्य के रूप में  देखेंगे और भाजपा इसका लाभ उठाएगी। यही नहीं,  उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य महत्वपूर्ण राज्यों में महागठबंधन के सदस्य एक दूसरे के वोटों  को काटेंगे।   संयुक्त रुप से उनकी संख्या बहुत होगी तो  100 से कम ही होगी ।   इसमें बहुत कम संदेह है कि  भाजपा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि में थोड़ा नुकसान पाएगी इसके अलावा हरियाणा, पंजाब और दिल्ली भी इसमें शामिल हो सकते हैं ।उधर,  बीजद, पीआरएस, एआईडीएमके और  एन डी ए इस  संख्या को थोड़ा बढ़ा सकते हैं लेकिन, बहुत ज्यादा नहीं। यदि फेडरल मोर्चा  230 से 250 सीटें ले  आता है तो निर्दलीय बाकी  25 सीटों की कमी को  संतुलित कर देंगे और भाजपा के पास फ़क़त 250 सीटें बच जाएंगी। अब एक अजीब सी स्थिति पैदा होगी पक्ष और विपक्ष के पास संसद में लगभग बराबर सांसद रहेंगे। बस, बहुमत के लिए कुछ दर्जन सांसदों की जरूरत होगी। अब इसमें एक पार्टी से दूसरी पार्टी में  जाने या हार्स ट्रेडिंग की गुंजाइश बढ़ेगी और इसका शिकार एन डी ए ,  तेलंगाना में टीआरएस  तथा  आंध्र प्रदेश में  वाईएसआर कांग्रेस हो सकती है। वे  20- 25 सीटें   पा सकती है और भाजपा के साथ उनकी कार्यप्रणाली नरम हो सकती है ।
     अब इस समीकरण का राहुल के लिए क्या मतलब है? एनसीपी के शरद पवार जैसे यूपीए के वरिष्ठ नेता शीर्ष पद के लिए खुद को दावेदार मान सकते हैं और वे  राहुल को प्रधानमंत्री बनाने मैं बहुत उत्साही नहीं होंगे । लेकिन उन्हें  मनाया  जा सकता है। राहुल गांधी के लिए फेडरल मोर्चा  में  सबसे बड़ी बाधा है बसपा। उसके   साथ  राहुल के ठंडे - गर्म रिश्ते हैं । मायावती ने तो उनके लिए  अपने दल  के उपाध्यक्ष जयप्रकाश सिंह तक को बर्खास्त कर दिया था। लेकिन यहां सोनिया गांधी भी  एक बाधा है जिसे वह विदेशी समझती  हैं और इसी कारण मायावती ने यहां तक कह दिया था राहुल गांधी भारतीय राजनीति में कभी सफल नहीं होंगे।  राजस्थान में सचिन पायलट अकेले जीतने की पूरी उम्मीद लगाए बैठे हैं । मध्य प्रदेश  और छत्तीसगढ़ में दलित वोट के लिए कांग्रेस और बसपा में सीटों का तालमेल हो सकता है। अब अगर यूपी में कांग्रेस और सपा से गठबंधन के बाद बसपा 20 के आसपास सीट ले आती है तो महत्वपूर्ण पद के लिए वह राहुल का समर्थन कर सकती हैं। इसे   देखते हुए राहुल गांधी 2019 में किसी को भी प्रधानमंत्री पद देने पर  विचार कर सकते हैं चाहे वह ममता हो या मायावती।
    भाजपा को यह मालूम है कि वह 2019 में 50 से 70 सीटें खोएगी। उसे उम्मीद है कि  उड़ीसा, पूर्वोत्तर भारत और पश्चिम बंगाल से यह कमी पूरी हो जाएगी । अब अगर भाजपा 272 सीटों से बहुत पीछे रह जाती है( जिसकी उम्मीद बहुत कम है ) तो मोदी विपक्ष में बैठने की बात भी  कर सकते हैं। अब फेडरल मोर्चा  250 के आसपास सीट  लेकर प्रधानमंत्री पद के लिए आपस में लड़ना शुरू करेगा।  ऐसा होगा यह उम्मीद बहुत कम है   लेकिन इसकी संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है।

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