कश्मीर समस्या के मूल में है टीएनटी
यहां टीएनटी विस्फोटक नहीं है बल्कि एक विचार है ,भाव है और यही भाव या कहें विचार कश्मीर समस्या का मूल है। यहां टीएनटी का आशय है "टू नेशन थ्योरी" या द्वि राष्ट्र सिद्धांत। जिन्ना ने हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्र गढ़ डाले थे और उसी का परिणाम हम आज भी भुगत रहे हैं । कश्मीर में हर बार लोकतांत्रिक सरकार बनाने की कोशिश होती है और किसी न किसी कारण सरकार कुछ करने के पहले खत्म हो जाती है। कई बार यह कोशिश की गई की जबरदस्ती इसे खत्म किया जाए लेकिन समस्या खत्म नहीं हुई। क्योंकि वह जमीन पर नहीं ,कश्मीर की धरती पर नहीं बल्कि कश्मीरियों के मन में है, उनके दिलो-दिमाग में है और पाकिस्तान उसे शह देता है। असल में बहुत षड्यंत्र पूर्ण ढंग से देश की जनता के मानस में भरा गया कि हिंदू और मुसलमान अलग -अलग राष्ट्र हैं और पाकिस्तान का बंटवारा उसी के लिए किया गया । लेकिन यह एक साजिश थी। दो राष्ट्र का सिद्धांत दरअसल साम्प्रदायिक या धार्मिक नहीं एक राजनीतिक लक्ष्य था जिसे जिन्ना ने अपने शासन करने के मंसूबे के कारण बनाया था। मुस्लिम लीग को उत्तर प्रदेश में पंजाब से ज्यादा सीटें मिली थी और यहां बहुत बड़ी आबादी पाकिस्तान चली गयी।आज पाकिस्तान जाकर वे लोग मुहाजिर के नाम से अभिशप्त हैं। भारत में दो राष्ट्र के सिद्धांत को सीधे तौर पर समर्थन नहीं किया जा सकता इसलिए यहां के राजनीतिज्ञों ने धर्मनिरपेक्षता का एक नया फ्रंट बनाया और उस की आड़ में हिंदूवाद या मुस्लिम परस्ती की चौपड़ बिछने लगी । हम में से बहुतों ने गौर किया होगा कि धर्मनिरपेक्षता के मंच से कभी भी पाकिस्तानी आतंकवाद या कश्मीरी पंडितों विस्थापन की चर्चा नहीं होती है ,बल्कि जब भी चर्चा होती है तो मुस्लिमों पर जुल्म की या हिंदू बिरादरी की ज्यादतियों की या फिर उसे खत्म करने की। क्योंकि शुरुआती दौर में भारतीय नेताओं में भी विशेष कर जवाहरलाल नेहरू ने भी अपने शासकीय लोभ के कारण जिन्ना की मांगों को हवा दिया। नतीजे के तौर पर दो देश बन गए और लाखों लोग मारे गए । अभी भी पाकिस्तान से समरसता या उसके औचित्य को मानने के बहाने हमारे नेता वही टीएनटी का समर्थन करते हैं । यानी उसी विचार को अभी भी आगे बढ़ा रहे हैं जिसके कारण देश बंटा और कश्मीर की समस्या कायम है। यह सभी जानते हैं विशेषकर राजनीतिज्ञ अच्छी तरह जानते हैं जातीय या धार्मिक ध्रुवीकरण सत्ता के दरवाजे खोलता है।
यहां एक प्रश्न आता है कि कश्मीर में धर्म के नाम पर या धर्म के आधार पर आजादी कहां तक जायज है ? आखिर क्या बात है कि लद्दाख या जम्मू में धर्म के नाम पर किसी किस्म आंदोलन या आजादी की मांग नहीं उठ रही हो केवल कश्मीर घाटी में ही ऐसा क्यों हो रहा है। आखिर इन से लड़ेगा कौन? दो राष्ट्र के सिद्धांतों के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत कौन करेगा? मुस्लिम समुदाय से राष्ट्रवादी नेताओं का नहीं आना दो राष्ट्र के सिद्धांत की सफलता है । ऐसे नेताओं को आने से कौन रोक रहा है, इसकी पड़ताल करनी होगी और उन बाधाओं को दूर करना होगा । राष्ट्र को इस विचार से अलग कर एक नई राह पर डालना होगा। कश्मीर की समस्या एक तरह से पाकिस्तान के अस्तित्व के भी सवाल से जुड़ी हुई है। अगर वह कश्मीर की समस्या को छोड़ देता है और कश्मीर को भारत का भाग मान लेता है तो उसके अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो जाएगा कि आखिर वह क्यों बना, उसके बनने का औचित्य क्या है? भारत अगर धार्मिक विभाजन मान लेता है तो वह अपने देश में सांप्रदायिक विभाजन के दरवाजे खोल देता है। क्योंकि अनेकता में एकता हमारे देश का आधारभूत सिद्धांत है इस सिद्धांत से समझौता नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान का बनना एक ऐतिहासिक दुर्घटना है। सत्ता के लोभ के आंतरिक संघर्ष का परिणाम है। आज जब तक दो राष्ट्र के सिद्धांत को मानना हम बंद नहीं करते हैं तब तक कश्मीर समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
Sunday, July 15, 2018
कश्मीर समस्या के मूल में है टीएनटी
Posted by pandeyhariram at 6:14 PM
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