30सितम्बर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत लौट आये हैं। पांच दिनों की विदेश यात्रा पर भारतीय जनता पार्टी या यूं कहें मोदी सरकार की दो ही प्राथमिकताएं हैं पहली प्रधानमंत्री विदेश यात्रा और उस पर शान- ओ - शौकत वाले तफसिरे और दूसरी विरोधी दलों को नीचा दिखाने की कोशिश। लेकिन दोनों में उनका खोखलापन और उनकी आशंकाएं साफ दिखती हैं। पहले मोदी जी की ताजा विदेश यात्रा की बातें करें। नरेंद्र मोदी ने अपनी अमरीका यात्रा के दौरान भाषण और उनके संचरण प्रभाव की सभी कलाओं का उपयोग किया और वहां के लोगों को यह समझाने की भरपूर कोशिश की कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में भारत तेजी से बदल रहा है। यह बदलाव न केवल सकारात्मक है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनानुकूल है। लेकिन जब वे भारत को करीब से देखेंगे तो प्रसन्न होने के बजाय चिंतित हो उठेंगे। मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने और उनकी पार्टी ने भारत की जनता में न केवल बहुत उम्मीदें जगायीं बल्कि ढेर सारे सुनहरे वादे भी किये, खास कर आर्थिक सुधार के क्षेत्र में। लेकिन , अगर आप अमरीकी उद्योगपतियों की बैठक के परिणाम की समीक्षा करेंगे तो पाएंगे कि लोगों को मोदी की आर्थिक सुधार की क्षमता पर भरोसा नहीं है। योजना आयोग को नीति आयोग में बदल डालने से भरोसा हासिल नहीं किया जा सकता है। किस देश में व्यवसाय की कितनी सुविधा है इस मामले में विश्व बैंक ने 189 दशों की एक सूची बनायी है। इसमें हैरत की बात नहीं है कि उस सूची में ऊपर से भारत का स्थान 142 वां है। ढांचागत सुधार और बाजार को रास आने वाले सुधार ही अर्थव्यवस्था को सकारात्मक गति दे सकते हैं। लेकिन मोदी जी सरकार ने इस दिशा में बहुत कम कदम आगे बढ़ाया है। उद्योगों को भूमि चाहिये और उसके लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक संसद में अवरोध के कारण लटक गया। यही हाल जी एस टी विधेयक का भी हुआ। मोदी जी इंस्पेक्टर राज को पूरी तरह समाप्त करने की बात करते हैं पर आज भी यह उतना ही है जितना पहले था। अलबत्ता मीडिया के घनघोर प्रचार के कारण यह कमी ढंक जाती है। यही हाल विपक्ष को नीचा दिखाने और उसके बारे में नकारात्मक भ्रम पैदा करने का भी होता है। अब तक तो मोदी जी की विदेश यात्रा पर विमर्श किया गया। अब जरा विपक्षियों के सम्बंध में उसकी नीति देखें। अपने देश में कांग्रेस के एक नेता हैं राहुल गांधी। राहुल जी की सबसे बड़ी बाधा है उनका गांधी परिवार का होना। जब से भाजपा की सरकार आयी तबसे प्रचार के बल पर कांग्रेस को, खास कर गांधी परिवार को बिल्कुल नकारा साबित कर दिया। लेकिन मजे की बात है कि जब आत्मप्रचार की इच्छा से परिपूर्ण मोदी इस बार विदेश यात्रा पर रवाना हुये लगभग उसी समय राहुल गांधी भी अचानक अज्ञातवास में चले गये। अब यहां मजा देखिये, राहुल गांधी के अज्ञातवास को लेकर इतना बवाल क्यों? मीडिया और भाजपा के नेता क्यों इस पर अपना समय और श्रम बर्बाद कर रहे हैं। जबकि उन्होंने ही फतवा दिया है कि राहुल एक नकारा और देश की राजनीति के लिए बिल्कुल अयोग्य आदमी हैं। तब इतना शोर क्यों? इतनी तफतीश क्यों कि राहुल कहां हैं, क्या कर रहे हैं? क्या भाजपा और उसके सहयोग के लिए सन्नद्ध मीडिया का एक वर्ग भीतर ही भीतर कहीं यह तो नहीं कबूल कर रहा है कि राहुल भारतीय राजनीति के भविष्य हैं। इसीलिये हमेशा उनकी आलोचना कर उन्हें मुख्यधारा से बाहर रखने की कोशिश में रहते हैं। राहुल गांधी के लिए तथा उनके परिवार के लिए जिन शब्दों का उपयोग होता है उनके लिए मां का जिक्र आने पर जनता के सामने फफक पड़ने वाले नरेंद्र मोदी कैसे अनुमति देते हैं। देश अपनी उम्मीदों को पूरा होते देखने को व्याकुल है। देश का युवा वर्ग अपने भविष्य को संवारना चाहता है और इसके लिए अधीर है, वहीं बुजुर्ग ये देख रहे हैं कि यह युग उनके समय से कैसे अलग है। विरोधी दलों की निकृष्ट आलोचना और आत्म प्रचार, कैसे इसमें लगी ऊर्जा उपलब्धियों के प्रकाश में बदलेगी?