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Tuesday, September 1, 2015

धर्म आधारित आंकड़े डरावने नहीं



27 अगस्त 2015

जनगणना के धर्म आधारित ताजा आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2011 के बीच 10 साल की अवधि में मुस्लिम समुदाय की आबादी में 0.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और यह 13.8 करोड़ से 17.22 करोड़ हो गयी, वहीं हिंदू जनसंख्या में 0.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी और इस अवधि में यह 96.63 करोड़ हो गयी। जनगणना के आंकड़े एकत्रित करने के चार साल से अधिक समय बाद मंगलवार को धर्म आधारित आंकड़े जारी किये गये वहीं जाति आधारित जनगणना के आंकड़े अभी सार्वजनिक नहीं किये गये हैं। राजद, जदयू, सपा और द्रमुक तथा अन्य कुछ दल सरकार से जाति आधारित जनगणना जारी करने की मांग कर रहे हैं। जनसंख्या के सामाजिक आर्थिक स्तर पर आंकड़े तीन जुलाई को जारी किये गये थे। लेकिन अगर आंकड़ों को बारीकी से देखें तो दोनों सम्प्रदायों के जन्मदर या आबादी के बढ़ने की दर में गिरावट के लक्षण हैं। भारत में पिछले 10 सालों में हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी बढ़ने की रफ़्तार में गिरावट आई है। ऐसा भारत में जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में आई कमी की वजह से हुआ है। हिंदू, मुस्लिम ही नहीं, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन, इन सभी समुदायों की जनसंख्या वृद्धि की दर में गिरावट आई है। भारत में जनगणना हर दस साल में होती है। साल 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 16.76प्रतिशत रही जबकि 10 साल पहले हुई जनगणना में ये दर 19.92प्रतिशत पाई गई थी। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ देश में हिंदुओं की आबादी 96.63 करोड़ है, जो कि कुल जनसंख्या का 79.8 प्रतिशत है। वहीं मुसलमानों की आबादी 17.22 करोड़ है, जो कि जनसंख्या का 14.23 प्रतिशत होता है। ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है, जो कि कुल जनसंख्या का 2.3प्रतिशत और सिखों की आबादी 2.08 करोड़ (2.16 प्रतिशत) और बौद्धों की आबादी 0.84 करोड़ (0.7 प्रतिशत) है। वहीं 29 लाख लोगों ने जनगणना में अपने धर्म का जिक्र नहीं किया। पिछले एक दशक में जनसंख्या 17.7 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। यानी, देश की कुल आबादी में जुड़ने वाले हिंदुओं की तादाद में 3.16 प्रतिशत की कमी आई है। मुसलमानों की जनसंख्या में वृद्धि की बात की जाए तो उसमें ज़्यादा बड़ी गिरावट देखी गई है। पिछली जनगणना के मुताबिक़ भारत में मुसलमानों की आबादी 29.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी जो अब गिरकर 24.6 प्रतिशत हो गई है। फिलहाल सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी नहीं किए हैं। राजद, जदयू और डीएमके सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि वह जातिगत जनगणना के आंकड़े भी सार्वजनिक करे। जनसंख्या के सामाजिक आर्थिक स्तर आधारित आंकड़े इस साल तीन जुलाई को जारी किए गए थे। आंकड़ों के मुताबिक़ 2011 में भारत की जनसंख्या 121.09 करोड़ थी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आंकड़ों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ये नियमित जनगणना का आंकड़ा है। ऐसे आंकड़े तो समय-समय पर आते ही रहते हैं। इसमें कोई नई बात नहीं है, ऐसा तो होता ही रहता है। वहीं एनसीपी नेता तारिक अनवर इन आंकड़ों के जारी होने को बीजेपी की चाल करार देते हैं। अनवर ने कहा कि इसमें जरूर बीजेपी की कोई चाल होगी क्योंकि जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने की मांग की गई थी। लेकिन केंद्र सरकार ने धर्म के आंकड़े जारी कर दिए। अब ये तो सबको मालूम है कि किस धर्म की कितनी संख्या है, लेकिन जब तक जातीय जनगणना के आंकड़े नहीं बताए जाएंगे तो इसका उद्देश्य पूरा नहीं होगा। संघ विचारक राकेश सिन्हा ने आंकड़ों पर एक के बाद एक कई ट्वीट करते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय जनसंख्या बढ़ाओ की सोची समझी रणनीति से चल रहे हैं। क्या हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे? क्या सचमुच ऐसा संभव है? अगर समाज वैज्ञानिक सिद्धातों को मानें तो कहा जा सकता है शिक्षा और सम्पन्नता का जनसंख्या वृद्धि से व्युत्क्रम आनुपातिक सम्बंध है। एन एफ एच एस के आंकड़े देखें तो पता चलेगा कि शिक्षा का स्तर बढ़ते ही प्रजनन दर काफी गिर जाती और यह रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से भी नीचे चला गया। रिप्लेसमेंट लेवल क्या है? एक महिला और एक पुरुष मिला कर दो हुए। इसलिए यदि वे दो बच्चे पैदा करते हैं तो उनकी मृत्यु के बाद बच्चे उनको आबादी में रिप्लेस कर देंगे। यानी अगर हर दंपति दो बच्चे ही पैदा करता है तो आबादी स्थिर रहेगी। लेकिन चूंकि प्राकृतिक रूप से जन्म दर में लड़कियों की संख्या लड़कों से कुछ कम होती है, इसलिए रिप्लेसमेंट लेवल के लिए प्रजनन दर 2.1 लिया जाता है। तो जब तक जनन दर 2.1 है, तब तक आबादी स्थिर रहेगी। इससे कम जनन दर होने पर आबादी घटने लगती है। यानी शिक्षा के बढ़ने के साथ जनन दर घटती जाती है। मुसलमानों में अशिक्षा और गरीबी की क्या स्थिति है, यह सच्चर कमिटी की रिपोर्ट से साफ हो जाता है। ऐसे में अगर मुसलमानों के पिछड़ेपन के कारणों को दूर करने की तरफ ध्यान दिया जाए तो यकीनन उनकी प्रजनन दर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार विकास की रोशनी को पिछड़े गलियारों तक जल्दी से जल्दी ले जाए, शिक्षा की सुविधा को बढ़ाए, परिवार नियोजन कार्यक्रमों के लिए जोरदार मुहिम छेड़े, घर-घर पहुंचे, लोगों को समझे और समझाए तो तस्वीर क्यों नहीं बदलेगी? आखिर पोलियो के खिलाफ अभियान सफल हुआ या नहीं! अतएव इन आंकड़ों से भय की आवश्यकता नहीं है।

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