हरिराम पाण्डेय
एक बार विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि ‘विजय अविश्वसनीय होती है।’लेकिन पश्चिम बंगाल में ममा बनर्जी की विजय को ऐसा नहीं कहा जा सकता है। वे अपनी विजय पर गर्वित हैं और इसका उन्हें हक भी है। अगर नेताओं को छोड़ भी दें तो इस चुनाव परिणाम से बगाली समाज की मनाविज्ञान का विश्लेषण किया जा सकता है। बंगाल की जनता परिवर्तन में यकीन रखती है पर ऐसा करने के पहले वह बहुत विर करती है जिसे 20 शताब्दी में फ्रांसीसी इतिहासकारों ने ‘ लॉन्ज दरी’ की संज्ञा दी थी। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना चुनाव भारी मतों से जीत लिया। मजे की बात कि अब तक बड़े बड़े लोगों की अटकलें बेकार साबित हुईं। पश्चिम बंगाल विधानसभा की 294सीटों पर पर चुनाव हुये थे , जिसमें 68 सीटें अनुसूचित जातियों के लिये और 16 सीटें अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित थीं। राज्य के कुल 6,55,46,101मतदाताओं ने 6 चरणों में वोट डाले। जिसमें 46.8 प्रतिशत वोट तृणमूल कांग्रेस को मिले जो कि पिछली बार से 6.83 प्रतिशत ज्यादा है जबकि वाम मांर्चे को 28.1 प्रतिशत वोट मिले जो उसे पिछली बार मिले मतों से 12.36 पतिशत कम है। कांग्रेस को 10.9 प्रतिशत वोट मिले जो उसे पिछली बार मिले वोटों से 2.63 प्रतिशत ज्यादा है साथ ही भाजपा को 10.93 प्रतिशत मिले वोट पिछली बार के मिले 6.07 प्रतिशत ज्यादा है। इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 215 सीटें मिली जो कि पूर्ववर्ती विधान सभा में उसे हासिल सीटों से 31 सीट अधिक हैं उधर कांग्रेस भी पिछली बार से दो सीट की बढ़त प्राप्त कर 44 सीटें पायीं वाममोर्चा 33 सीटें गवां कर मात्र 28 सीटें पा सकीं जबकि भाजपा ने चार सीट का लाभ पाया और उसे 7 सीटें मिलीं। राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिये कमर कसा वाम – कांग्रेस गठबंधन बुरी तरह पिट गया और भाजपा को भी ना उम्मीदी ही हाथ लगी। हालांकि गठबंधन के हारने के कयास कुछ हलकों में पहले से ही लगाये जा रहे थे पर जनता ने उन्हें इतनी बुरी तरह नकारा जिसकी उम्मीद नहीं थी। वैसे परिवर्तन तो पांच साल पहले ही हो गया था पर आज के परिणाम ने बताया कि राज्य का युवा मध्य वर्ग जो यहां की सियासत की रीढ़ है आज भी दीदी के साथ है और उसके विचारों में परिवर्तन की बातें फकत एक साजिश का हिस्सा थीं। इस विजय के बाद ममता जी ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर जनता को शुक्रिया कहा और कहा किलोकतंत्र की इतनी बड़ी जीत के सबसे प्रमुख भागीदार बंगाल के लोगों का मैं शुक्रिया अदा करना चाहती हूं। साथ ही कहा कि आज की राजनीति को देख कर शर्म आती है। उन्होंने राजनीति एक सीमा रेखा की बात की और कहा कि इसमें लक्ष्मण रेखा का होना जरूरी है। ममता जी आगमी 27 तारिख को अपने पद की शपथ लेंगी। ममता जी ने साफ कहा कि हमारे लिए 20 मई 'बदलाव' का दिन है। यह वह दिन है, जब हमने पिछली बार शपथ ली थी। 20 से 30 मई तक हम सांस्कृतिक प्रोग्राम आयोजित करेंगे और लोगों को धन्यवाद देने के लिए अभियान चलाएंगे। ममता जी की इस विजय पर प्रधानमंत्री ने उन्हें बधाई दी है। प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट कर के बधाई संदेश दिया। जैसा कि ममता जी ने बताया कि कल दोपहर उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात होगी और इसके बाद वे राज्यपाल से मिलेंगी। ममता जी ने कहा कि , ‘इस चुनाव के दौरान कई तरह की बातें हुईं। हमारे खिलाफ झूठ बोला गया, लोगों को वोट करने से रोका गया, लेकिन उन्होंने घंटों लाइन में खड़े होकर हमें वोट दिया। मैं इतनी बड़ी जीत के अवसर पर जनता को धन्यवाद देना चाहती हूं, जो प्रजातंत्र के उत्सव में सबसे ज्यादा अहमियत रखती है। आज के परिणाम ने बताया कि राज्य का युवा मध्य वर्ग जो यहां की सियासत की रीढ़ है आज भी दीदी के साथ है और उसके विचारों में परिवर्तन की बातें फकत एक साजिश का हिस्सा थीं। तृणमूल कांग्रेस को शारदा घोटाले और अपने कुछ नेताओं के कथित नारद स्टिंग में फंसने जैसे मुद्दे से रूबरू होना पड़ा। विपक्ष ने ये समझाने की कोशिश की किस तरह ममता सरकार के समय शारदा घोटाले में लाखों निवेशकों के रूपये डूब गये थे जबकि नारद स्टिंग ऑपरेशन में टीएमसी के कुछ नेताओं को घूस लेते हुए दिखाया गया। ’ आज जिस तरह के परिणाम आए, उसकी उम्मीद तो उसी समय से थी जबसे चुनाव की चर्चा शुरू हुई। सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य और कांग्रेस का नेतृत्व अभी जमीन की हकीकत को नहीं पहचान पाये हैं। उन्होंने ‘शारदा से नारदा’ जैसे टुटपुंजिये मामलों का सहारा लिया, कई तरह के मिथ्या प्रचार किये और उन्ही के बल पर वे सामजिक परिवर्तन के गुमानों में ही खोये हुए थे। यहां तक चुनाव आयोग द्वारा तैनात केंद्रीय बलों की चौकसी को उन्होंने बंगाल की जनता को दहशत में डालने के सत्ता प्रतिष्ठान की साजिश बताया। हमलों और धमकियों की झूठी कहानियां गढ़ी गयीं। प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, बिमान बोस, मोहम्मद सलीम जैसे नेता टेलीविजन स्टूडियो में बैठ सकते हैं, गरीबों और पददलितों को लेकर लंबे-चौड़े व्याख्यान दे सकते हैं लेकिन इन लोगों ने इस बात का रत्ती भर भी प्रयास नहीं किया कि जो ये जनता के बीच बोलते हैं उसकी विश्वसनीयता के लिये वे कर क्या रहे हैं। बंगाल में हेलीकॉप्टर से उड़ने वाले राहुल समां जरूर बांध सकते हैं पर जीवन के लिये संघर्ष करने वाली बंगाल की जनता को आश्वस्त नहीं कर सकते कि वे उनके साथ हैं। राजनीति के बड़े से बड़े विश्लेषक चुनाव के बाद से कहते आये कि ममता जी की पार्टी को इस बार नाकों चने चबाने पड़ेंगे परंतु जनता ने तो लाल कालीन बिछा दिये। शायद वे विश्लेषक यह भूल गये कि देश में बंगाल ही एक ऐसा प्रांत हैं जहां का हर आदमी राजनीति से किसी ना किसी प्रकार जुड़ा हुआ है, राजनीति के प्रति सचेतन है। चाहे वह तरकारी बेचने वाला हो या टैक्सी चलाने वाला या प्रोफेसर हो या सेठ साहूकार सब किसी ना किसी सियासी महाज से केवल जुड़े ही नहीं हैं, बल्कि सचेतन भी हैं। आम लोगों के जीवन के इस कदर राजनीतिकरण से दलों को फायदा हुआ है लेकिन ऐसा राजनीतिकरण कितना सही है ये बहस का विषय है। तृणमूल कांग्रेस की आज की सफलता पूरी तरह से सिर्फ एक ममता बनर्जी के करिश्मा का नतीजा है। दूसरी बार ममता जी की विजय यह बताती है कि पश्चिम बंगाल में सरकार से जनता की आशा अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है। अब पश्चिम बंगाल का भविष्य और यहां के निवासियों की नियति पूरी तरह से इस बात पर निर्भर है कि ममता बनर्जी सरकार इस नये दौर कैसा काम करती हैं। पहले पांच साल का समय सबकुछ समझने और राज्य की जनता को यह बताने में गुजर गया, जो कि जायज भी है , कि उक्सकी मंशा जनता की भलाई की है और इसके लिये जमीन तैयार करने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है। जहां तक जनता की बात है, वह ममता बनर्जी में अपना यकीन अब वोट के जरिए दुबारा जता चुकी है। अब ममता बनर्जी को यह साबित करना होगा कि वे एक योग्य और दृढ़प्रतिज्ञ प्रशासक हैं। ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब आने वाले दिनों में ही मिल पाएंगे, मसलन , क्या बेरोजगार युवकों को रोजगार दिये जाएंगे? क्या किसान अपनी उपज बढ़ाने के लिए अच्छी सिंचाई सुविधा पा सकेंगे? क्या राज्य में निवेश की रफ्तार जोर पकड़ सकेगी? क्योंकि अभी निवेश कुछ ज्यादा नहीं है। क्या जनता ममता बनर्जी में भरोसा बरकरार रख सकेगी, जो कि मुख्यमंत्री के रूप में अब तक रखती आयी है। ममता जी की सद्य: विजय में मौजूद एक तथ्य को कतई नदरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल सचमुच एक लोकतांत्रिक प्रदेश है। यहां का वोटर गरीब या असहाय हो सकता है, पर बेजबान नहीं हो सकता है....और जब वोटर बोलता है, तो बड़े बड़ों की बोलती भी बंद हो जाती है। इस बात को लेफ्ट – कांग्रेस गठबंधन के नेताओं से बेहतर और कौन महसूस कर सकता है।
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