शनिवार को बंगलादेश के राजशाही में एक सूफी कथावाचक की हत्या कुछ अज्ञात लोगों ने कर दी। सूफी पंथ दरअसल इस्लाम में नरमपंथ माना जाता है और वह कट्टरता का समर्थन नहीं करता। एक तरह कट्टर इस्लाम के विरोधियों स्वतंत्रत चिंतकों की इस वर्ष यह पांचवीं हत्या है। यही नहीं अमरीका में कार्यरत प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद के पुत्र शेख जॉय वाजेद के अपहरण के प्रयास का पर्दाफाश तथा उसमें शामिल बहुत से ताकतवर लोगों, जो कभी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बी एन पी ) के शासनकाल में प्रधानमंत्री के खास करीबी हुआ करते थे, के नाम आने से पता चल जा रहा है कि कट्टरपंथी तत्व कितने ताकतवर हैं। हालांकि, लाखों की आबादी वाले एक देश में लगभग पांच महीनों में पांच हत्याएं बहुत मायने नहीं रखतीं पर उनके हालात और देश के आसपास के वातावरण एवं दूसरे देश पर इसके प्रभाव का अगर विश्लेषण करें तो खतरा सामने दिखता है। इनकी हत्याओं के लिये आई एस आई एस ने तथा अल कायदा ने जिम्मेदारी ली है। सरकार का बयान है कि यह देसी आतंकी गिरोहों की करतूत है। इस बयान के दो खतरनाक निहितार्थ हैं पहला कि बंगलादेश में देसी आतंकी आतंकी गिरोह पूरी आजादी से सक्रिय हैंऔर उनके बारे में सरकार को मालूमात हैं, दूसरी बात है कि सरकार देश की गिरती कानून और व्यवस्था की स्थिति को सुधारने की बजाय विरोधियों पर उंगली उठा रही है। भारत के पड़ोस में बसा एक ऐसा देश जहां से घुसपैठियों की अबाध आवाजाही है वहां यानी उस देश में मुक्त चिंतकों को माराजाना और भारत में भी कट्टर पंथ की सुगबुगाहट क्या खतरनाक नहीं कहा जा सकता है? अगर हत्याओं के बारे में सरकार के बयान का दूसरे बयान को मानें कि सरकार टार्गेट किलिंग को नजर अंदाज कर विरोधियों पर उंगली उठा रही है। यानी सरकार हत्या करने वाले तत्वों से सियासी समझौता कर रही है। बंगलादेश एक ऐसा मुल्क है जहां आजदी के बाद से ही कट्टरपंथी इस्लाम और सेक्यूलरिज्म में रस्साकशी हाती रही है और अंतत: इस्लाम भारी पड़ गया। 1977 में इस्लाम को बंगलादेश के संविधान में शामिल किया गया। उसके बाद जब शेख हसीना की पार्टी आयी तो उसे हटाने के बजाय सेक्युलरिज्म और इस्लाम दोनों को संविधान में जगह दे दी गयी। इससे साफ जाहिर है कि वहां सरकार ने कट्टरपंथ से राजनीतिक समझौता किया है। कई ऐसे मौके आये जिससे साफ अहसास होता है कि वहां सरकार कट्टरपंथियों के प्रति बहुत कठोर नहीं है। इसी नव वर्ष के अवसर पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने कहा कि दूसरों की धार्मिक भावना को आघात पहुंचाना मानसिक विकृति है। जबकि वहां धार्मिक भावना को आघात पहुंचाने के विरोध में कानूनन कठोर दंड का प्रावधान है। जिनलोगों ने बंगलादेश का इतिहास पढ़ा है या थोड़ी सी भी जानकारी है तो उन्हें यह मालूम होगा कि आरंभ में वहां इस्लाम का सहारा राजनीतिक लाभ के लिये जाना शुरू हुआ। जिसमें राजनीतिक विरोधियों के सफाये से लेकर सत्ता हासिल करने के हथकंडे तक शामिल थे। पर 1990 के बाद के जब पहलीबार युद्ध अपराध के मुकदमें सजा हुई तब से इसकी दिशा बदल गयी। उस समय जिन्होंने मुकदमों और उसमें हुई सजा का समर्थन किया था वे लोग निशाने पर लिये जाने लगे। साथ ही सरकार भी धार्मिक मामलों में राजनीतिक समझौते करने लगी। ये सारी बातें यहां इस लिये कही जा रहीं हैं कि वहां के सामाजिक और सियासी हालात का असर भारत पर भी पड़ना लाजिमी है। डा. पीटर हैमान्ड ने अपनी पुस्तक ‘स्लेवरी एंड इस्लाम’ में साफ लिखा है कि जिन देशों में मुस्लिम आबादी कुल आबादी के 20 प्रतिशत से ज्यादा है वहां इस्लाम का विकास बहुत तेजी हो रहा तथा धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है। जहां तक भारत का प्रश्न है वह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा इस्लामी देश है। यहां बड़ा का अर्थ आबदी के प्रतिशत से है। सबसे ज्यादा या अनुपात पाकिस्तान में है , दूसरा इंडोनेशिया और तीसरा है भारत। अब अगर भारत के पड़ोस में कट्टरपंथी पैर फैला रहे हों और यह खबरें मिल रही हैं कई कट्टरपंथी संगठनों ने अपने पैर फैला लिये हैं वैसी स्थिति में क्या हो सकता है इसका अंदाजा सबको है। भारत और बंगलादेश का भगौलिक सामीप्य तथा दोनो देशों की 2200 किलोमीटर लम्बी सीमा और उसमें भारत में प्रवेश के अनेक रास्ते , इसके बाद बंगाल की भाषा, रहन सहन उस पार से आये आतंकियों या उनके गुर्गों के लिये सुरक्षित स्थान बन सकता है। इसके साथ ही कोलकाता जैसा विशाल जनसंकुल शहर और वहां के दो प्रमुख रेलवे स्टेशनों से देश के हर कोने में जाने की सुगमता उस पार से आये लोगों के बंगाली पहचान के साथ देश भर में फैलने की सुविधा का लाभ अगर आतंकी तत्व उठाते हैं और भारत में उपद्रव करते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं। सरकार को इस दिशा में बेहद सचेत रहने की जरूरत है।
Monday, May 9, 2016
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