अंतत: हेलीकॉप्टर पर राज्य सभा में बहस शुरू हो ही गयी। रक्षा मंत्री ने एक लम्बा भाषण पढ़ा जिसका लब्बोलुआब था कि इसके पीछे एक ऐसी ताकत का हाथ था जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता था। उनका कहना था कि इसमें शामिल सभी लोगों की पोल खोली जायेगी। यह मामला सुब्रहमणियम स्वामी ने उठाया और सबका निशाना कांग्रेस की ‘महाशक्ति’ की ओर था। कांग्रेस ने बर्हिगमन किया और उसके पूर्व पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने कहा था कि यदि उनका नाम आयेगा तो सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले लेंगे। भ्रष्टजार के इस मामले पर जम कर राजनीति हो रही है। ठीक वैसे ही जैसे बोफोर्स तोपों पर चली थी। गौर करें मामले के तूल पकड़ने की अवधि भी यही थी , लोकसभा चुनाव के साल दो साल पहले। उसमें भारी जांच हुई। करोड़ो की घूसखोरी का पता लगाने के लिये देश के लाखों रुपये फूंक दिये गये। अब इसमें कुछ ऐसा ही हो रहा है। इ डी ने विदेश जा कर जांच करने की इजजत मांगी है। एक बात देश की आम लोगों को समझ मे नहीं आती कि जिन घोटालों पर खूब राजनीति होती है, उनमें दो-चार जेल क्यों नहीं जाते हैं। अब क्या इसे उठाकर बीजेपी पर जवाबदेही नहीं आ गई है कि वो इसे अंजाम तक पहुंचायेगी और जेल भी भेजेगी, चाहे कोई हो। यह मामला कोई नया नहीं है। बीजेपी जब विपक्ष में थी तब भी अगस्ता का मामला उठा। वो और कई पार्टियां लगातार यही कहती थी कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए। देखना होगा कि मोदी सरकार इसके लिए तैयार होती है या नहीं। कांग्रेस, बीजेपी की तरफ से सच्चाई के दावे किये गए। इस सच्चाई के बाद भी मामले को अदालत में ही साबित होना है जिसकी मांग सबने की। कांग्रेस ने कहा कि सरकार सदन में दस्तावेजों की प्रमाणिक कॉपी रखे। सत्ता पक्ष से जवाब मिला कि पहले कांग्रेस के लोग अपने सबूतों को सत्यापित करें। नियमत: अधिकृत दस्तावेज़ तो सरकार के ही पास होते हैं। सरकार के ही सत्यापन की मान्यता होती है। दोनो अपनी अपनी डफली बजा रहे हैं और अपना अपना राग सुना रहे हैं। मजे की बात है कि आरो लगाने वाले और जवाब देने वाले सब अपने सुभीते की बात कह रहे हैं। सबने बुनियादी बात है कि इटली की कंपनी फिनमैकानिका ने भारत के साथ 3500 करोड़ की जो डील साइन की है उसमें दलाली के आरोप लग रहे हैं। मेन कंपनी फिनमैकानिका है और अगस्ता वेस्टलैंड सहायक कंपनी है। फिनमैकानिका इटली की सार्वजनिक उपक्रम टाइप की कंपनी है। फरवरी 2013 में इटालियन पुलिस ने फिनमैकानिका के चेयरमैन ओरसी को गिरफ्तार किया। चार्ज लगाया गया कि ओरसी ने दलालों को 360 करोड़ रुपये दिये हैं ताकि वे भारत के साथ हेलीकॉप्टर की बिक्री को सुनिश्चित करवा सकें। फरवरी 2012 में इटली में जांच की खबर आते ही तब के रक्षा मंत्री जांच के आदेश दे देते हैं। इटली में तो 2011 के साल से ही इस तरह की चर्चा होने लगी थी। 2013 में इटली की अदालत ने 90 हजार से अधिक पन्नों के दस्तावेज भारतीय एजेंसियों को सौंप दिये। 2013 से 2016 के बीच कितने पन्नों का अनुवाद हुआ मालूम नहीं। यह भी नहीं मालूम कि उन हजारों पन्नों के अनुवाद में कितने लोग लगाये गए हैं कितना खर्च हो रहा है और खर्चे को किस मद में डाला जा रहा है। 2013 में सीबीआई की जांच भारत में शुरू हो गयी। फरवरी 2013 में राज्य सभा में यूपीए सरकार ने जे पी सी बनाने का प्रस्ताव भी पास कर लिया, मगर जे पी सी बनी नहीं, क्योंकि तमाम विरोधी दलों को एतराज था। हर पक्ष अपनी अपनी पसंद के हिस्से को चुन कर बोल रहा था। बुधवार को बहस के दौरान तब के रक्षा मंत्री ए के एंटनी भी सदन में थे। स्वामी ने कहा कि जिस कमेटी ने उड़ान की ऊंचाई घटाने का फैसला किया उसने एंटनी को भी ओवररूल किया। हो सकता है कि ये किसी और के कहने पर हुआ हो। वह और कौन था। स्वामी ने मनमोहन सिंह को इमानदार बताया। फिर वह कौन ताकतवर आदमी था। उनका इशारा शायद सोनिया गांधी की तरफ था, हालांकि उन्होंने कोई नाम नहीं लिया। सीएजी रिपोर्ट को आधार बनाकर स्वामी ने दलीलें तो पेश की लेकिन आनंद शर्मा जब बोलने के लिए उठे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान याद दिला दिया जो उन्होंने पीएम बनने के बाद गुजरात विधानसभा में हुए विशेष सत्र में कहा था। 22 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सीएजी की रिपोर्ट का इस्तेमाल राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के लिए नहीं किया जाना चाहिए। ये जो रिपोर्ट होती है वो सुधार के सुझावों के लिए होती है। सरकारों को सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए। लेकिन शायद ऐसा हो नहीं रहा है। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि इटली की अदालत से कागज मिल गये हैं और उनके अनुवाद लगभग एक हफ्ते का वक्त लगेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। रक्षामंत्री ऐसा कोई दावा नहीं कर रहे कि उन्होंने वह फाइल पढ़ी है पर स्वमी कह रहे हैं कि उन्होंने वह फाईल पढ़ी है। अगर स्वामी फाइल को पढ़ सकते हैं तो वह फाइल देश की जनता के लिये सार्वजनिक होनी चाहिये। मजे की बात है कि बुधवार को जिन्होंने भी राज्य सभा में बहस सुनी है उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि फाइल का एक पन्ना पढ़ कर स्वामी आरोप लगा रहे हैं और दूसरे पन्ने की कापी लेकर विपक्ष जवाब दे रहा है। हालांकि सोनिया गांधी सदन में थीं लेकिन उनका नाम नहीं लिया गया पर रक्षा मंत्री ने यह जरूर कहा कि इसमें शामिल हर आदमी से पूछताछ की जायेगी साथ ही इटली की अदालत के पेपर में जो जो नाम आए हैं हमारी जांच उस पर केंद्रित होगी। इससे देश की छवि को धक्का पहुंचा है। पर्रिकर ने भी कहा कि प्रक्रिया में बदलाव एक ही कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया। हालांकि लंदन के अखबार द टाइम्स ने लिखा है कि अब इटली जिस अदालत ने अगस्ता के बारे में फैसला दिया है उसके एक जज का कहना है कि अदालत ने भारतीय राजनीतिक नेताओं को बेदाग नहीं कहा है अब यह भारत पर निर्भर करता है कि वो अपने राजनेताओं की भूमिका के बारे में कैसी जांच करता है। हालांकि उस न्यायाधीश ने सोनिया गांधी के नाम के बगरे में पूछे जाने पर कहा कि इसबारे में हमारे पास सबूत नहीं हैं। नेताओं के शामिल होने के कुछ संकेत भर हैं। उनका अलग-अलग मतलब निकाला जा सकता है। ये संकेत हैं कि दलाल मिशेल का कुछ और लोगों से संबंध रहा होगा। यह पूरा मामला एक अजीब किस्म का घनचक्कर लग रहा है। कोई बोलता है कि ये रहा भ्रष्टाचारी और वो रहा भ्रष्टाचारी तो कोई कहता है इनमें कोई नहीं है। भारत जैसे देश में जहां पानी की समस्या है, अकाल की विभीषिका है लोगों पर कई तरह की मुश्किलें हैं वहां कुछ इस तरह के मामले उठा कर सदन का समय और देश की उम्मीदों को क्यों बर्बाद किया जा रहा है , यह सवाल कोई नहीं पूछता।
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