मोदी जी के शासन के ददो वर्ष पूरे हो गये ओर इसे लेकर मीडिया में कई तरह के रिपोर्ट कार्ड प्रकाशित किये गये। कुछ लोगों ने तालियां बजायीं और कुछ ने माथा पीटा। लेकिन यह सच है कि सारे अंतर्विरोधों के बावजूद भारतीय लोकतंत्र में मोदी जी का प्रसार बड़ा है। यही नहीं , विदेशों में जहां मोदी जी छाये रहे वहीं देश में दादरी और बीफ जैसे मामले भी उछले। मोदी जब अमरीका गये थे तो टाइम्स स्कवायर में उनके भाषण के दौरान पूरा शहर ‘स्टैंड स्टिल’ था। इस पर इकानोमिस्ट पत्रिका ने लिखा था ‘पेन इन द ए…’ अगले अंक में उसने माफी मांगतें हुये सफाई दी थी कि मेरा आशय वह नहीं था जो समझा जा रहा है। पत्रिका ने फकत शहर वासियों की स्तब्धता को अभिव्यक्त करने के लिये यह मुहावरा इस्तमाल किया था। इस अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता के बावजूद देश में सामाजिक और आर्थिक संघर्ष सुलग रहा है और डर है कि कहीं यह भड़कती ज्वाला ना बन जाय। इसे भांपते हुये दो वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में सरकार ने इंदिरा जी की गरीबी हटाओ की शैली में गरीबों को आर्थिक शक्ति देने की कोशिश का एलान किया। भाजपा की तरफ से एक नारा दिया गया कि‘मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है।’ अच्छे दिन के नारों का नामलेवा ना था। सियासती इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों को याद होगा कि 1971 में इंदिरा जी ने शहरी और ग्रामीण गरीबी का भावदोहन करने के लिये गरीबी हटाओ का नारा दिया था। अब सामने दो तीन राज्यों में चुनाव हैं और इसी को देखते हुये उन्होंने यह नारा बुलंद किया है। इस जलसे में अमित शाह समेत समेत लगभग सभी बड़े नेता शामिल थे और यह जलसा तीन हफ्तों तक चलेगा। न्यूयार्क टाइम्स अखबार ने इस ‘विकास पर्व’ के बारे में लिखते हुये कहा है कि इसमें इस बात पर बल दिया गया था कि दो वर्ष की अवधि में भ्रष्टाचार का लेशमात्र भी देखने सुनने को नहीं मिला। विकास पर्व के दौरान वितरित करने के लिये तैयार परचे में कहा गया है कि महिलाओं और नौजवानों के विकास के लिये भी कार्य किये जा रहे हैं। राज्य मंत्री निर्मला सीतारामन ने अपने भाषण में पूववर्ती संप्रग सरकार के कार्यो की आलोचना करते हुये कहा कि उस काल में देश के नौजवान निराश थे आज उन्हें ‘भविष्य की आशा’ की संज्ञा दी गयी है। मंत्रियों ने दावा किया कि सरकार और उसके कार्य पूरी तरह पारदर्शी हैं पर राजनीतिक दलों को आर टी आई कानून के दायरे में लाने काम अभी तक लटका है ओर ऐसा क्यों हो रहा है यह बताने वाला कोई नहीं है। लेकिन जिस जनता ने उन्हें जिस आशा के साथ मोदी की सरकार को सत्ता सौंपी थी वह था ब्लैक मनी के उत्पादन को रोक लगाना पर ऐसा कुछ नहीं हो सका। आर्थिक विकास के लाख दावों के बावजूद महंगायी बढ़ी है और आम आदमी का जीवन कष्टकर होता जा रहा है। सरकार किसानों के लिये एक नारा दे रही है ‘खुशी किसान खुशहाल देश’ , लेकिन सचाई यह है कि यहां किसान या तो आत्म हत्या कर रहा है या मजदूर बन रहा है। अनाज का उत्पादन तेजी से गिरा है। इसी दरम्यान विश्वबैंक की एक रपट में अर्थ शास्त्री गौरव दत्ता ने कहा है कि नयेंद्र मोदी को विरासत में एक खस्ताहाल अर्थव्यवस्था हासिल हुई थी। उसे सुधारने के क्रम में मोदी ने जो कोशिशें कीं वह सराहनीय थीं। हलांकि सभी प्वाइंटर्स बहुत ज्यादा मजबूत नहीं दिखते हैं पर उएनसे उम्मीद जग रही है। हां भारत के व्यवसाई और बड़े अधिकारी इससे बहुत खुश नहीं हैं क्योंकि सबको उम्मीद थी कि मोदी अब तर सबसे व्यापार समर्थक प्रधानमंेत्री होंगे पर ऐसा नहीं हुआा। बेशक मोदी नीतियां गढ़ने के मामले में बहुत पटु नहीं हैं पर वे नीति सुधारक जरूर हैं। हां यह बात सही है कि विकास की गति उतनी तेज नहीं है जितनी अन्य विकसित देशों की है पर गति सकारात्मक है यह आशाजनक है। मीडिया की लाख प्रशंसा के बावजूद प्रशासन में वह मैत्रीभाव नहीं आ सका जिसका उन्होंने वादा किया था। मोदी जी ने चुनाव में हर मौके पर कहा था कि ‘कम से कम सरकार , ज्यादा से ज्यादा शासन।’ पर, ऐसा नहीं हुआ। सरकार और शासन के साथ् जो पहले समीकरण थे वही अब भी हैं। आंतरिक राजनीति में तनाव के साथ द्वेष की भी कालिख दिखने लगी। विपक्षी दलों ने संसद से कई महत्वपूर्ण कानून नहीं पास होने दिया ओर जनता का पैसा व्यर्थ गया। यहीि नहीं सरकार जब से बनी है तबहसे हर दो तीन महीने पर चुनाव में उलझ जाती है और इसके कारण विकास कार्य बाधित होते हैं। अब उन्हें यह कौन समझाये कि वे काम करें और अगर काम सही होगा तो चुनाव खुद जीत जायेंगे। पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है। मंत्रियों और नेता इस बात को ज्यादा महत्व देते हैं कि ‘पहले से हम अच्छा कर रहे हैं। ’
अलबत्ता विदेशी मामलों में स्थिति थोड़ी सुदारी जरूर है। पर जैसा उनका दावा था कि वे पाकिस्तान तथा चीन से सम्बंध सुधार लेंगे, पर हुआ इसका विलोम। ब्रकिंग्स इंस्टीट्यूट की इंडिया प्रोजेक्ट की डायरेक्टर ने अपनी एक रपट में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मडिया में अक्सर मोदी को उम्मीद का प्रतीक माना जाता है पर भारतीय मडिया में उनके खिलाफ कटाक्ष होने लगे हैं।
यह विडम्बना है कि राजस्थान में पाठ्यक्रम से नेहरू को हटाये जाने का फैसला भी इसी साल लिया गया जब मोदी सरकार के दो वर्ष पूरे हो रहे हैं। लगता है कि मोदी जी की नीतियों पर पार्टी की नीतियां हावी हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर एक तरफ वे विकासपुरूष के रूप में ख्याति प्राप्त थे तो दूसरी तरफ उनपर कुछ लांछन भी लगे थे। उन लांछनों के संदर्भ में मोदी जी पर विदेशी अखबारों चर्चा है। इन सबके बावजूद आने वाला समय आशा जनक दिख रहा है।
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