-हरिराम पाण्डेय
बंगाल में वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। दीदी की धमाकेदार वापसी हुई और पूरा राज्य हरे गुलाल से भर गया। हालांकि पराजित पार्टियों के कार्यकत्ताओं में असंतोष है पर असंतोष की अभिव्यक्ति पहले की तरह नहीं दिख रही है। हां, विपक्षी दलों कों खास कर कांग्रेस और वाम मोर्चा के गठबंधन को उम्मीद से बहुत कम सीटें मिलीं अलबत्ता भाजपा के बारे में इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं थी। चुनाव के नतीजों के रुझान से जब साफ जाहिर हो गया कि ममता बनर्जी दुबारा सत्ता में आयेंगी तो उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर मतदाताओं को धन्यवाद दिया। धन्यवाद ,हालांकि, मोदी जी ने भी ममता जी को दिया लेकिन उसकी उष्णता उसके प्रति ममता जी के कूल विहेवियर के कारण खत्म हो गयी, क्योंकि इस धन्यवाद के जिक्र के बाद उन्होंने मीडिया को बताया किराजनीति के गिरते स्तर पर शर्म आती है।ममता जी ने मीडिया के सामने विजय का शुक्रिया संदेश देते वक्त भी अपने गुस्से को छिपाया नहीं। उन्होंने कहा,राजनीति में एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। 'मैं बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ इसलिए हूं, क्योंकि उसे 'फूट डालो और शासन करो' की नीति पसंद है। हमारी परंपरा है, सारे जहां से अच्छा...। कांग्रेस को अपनी जमीन इसलिए गंवानी पड़ी, क्योंकि उसने अपने दोस्तों को भुला दिया है।' राजनीति में दोस्तों से जुड़े सवाल पर ममता ने कहा, मेरे बहुत से दोस्त हैं.. चंद्रबाबू नायडू, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार और लालू। कृपया मुझ पर सोनिया गांधी के बारे में पूछकर दबाव न डालें।पश्चिम बंगाल विधानसभा की 294सीटों पर पर चुनाव हुये थे , जिसमें 68 सीटें अनुसूचित जातियों के लिये और 16 सीटें अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित थीं। राज्य के कुल 6,55,46,101 मतदाताओं ने 6 चरणों में वोट डाले। जिसमें 46.8 प्रतिशत वोट तृणमूल कांग्रेस को मिले जो कि पिछली बार से 6.83 प्रतिशत ज्यादा है जबकि वाम मांर्चे को 28.1 प्रतिशत वोट मिले जो उसे पिछली बार मिले मतों से 12.36 पतिशत कम है। कांग्रेस को 10.9 प्रतिशत वोट मिले जो उसे पिछली बार मिले वोटों से 2.63 प्रतिशत ज्यादा है साथ ही भाजपा को 10.93 प्रतिशत मिले वोट पिछली बार के मिले 6.07 प्रतिशत ज्यादा है। इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 215 सीटें मिली जो कि पूर्ववर्ती विधान सभा में उसे हासिल सीटों से 31 सीट अधिक हैं उधर कांग्रेस भी पिछली बार से दो सीट की बढ़त प्राप्त कर 44 सीटें पायीं वाममोर्चा 33 सीटें गवां कर मात्र 28 सीटें पा सकीं जबकि भाजपा ने चार सीट का लाभ पाया और उसे 7 सीटें मिलीं। विजय के धमाकों के बीच ममता जी ने तो यह भी कहा हमें कई बार आतंकित किया गया और हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया। यहां तक कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र भबानीपुर में भी ऐसा हुआ।ममता जी ने कहा कि , इस चुनाव के दौरान कई तरह की बातें हुईं। हमारे खिलाफ झूठ बोला गया, लोगों को वोट करने से रोका गया, लेकिन उन्होंने घंटों लाइन में खड़े होकर हमें वोट दिया। मैं इतनी बड़ी जीत के अवसर पर जनता को धन्यवाद देना चाहती हूं, जो प्रजातंत्र के उत्सव में सबसे ज्यादा अहमियत रखती है। आज के परिणाम ने बताया कि राज्य का युवा मध्य वर्ग जो यहां की सियासत की रीढ़ है आज भी दीदी के साथ है और उसके विचारों में परिवर्तन की बातें फकत एक साजिश का हिस्सा थीं।तृणमूल कांग्रेस को शारदा घोटाले और अपने कुछ नेताओं के कथित नारद स्टिंग में फंसने जैसे मुद्दे से रूबरू होना पड़ा। विपक्ष ने ये समझाने की कोशिश की किस तरह ममता सरकार के समय शारदा घोटाले में लाखों निवेशकों के रूपये डूब गये थे जबकि नारद स्टिंग ऑपरेशन में टीएमसी के कुछ नेताओं को घूस लेते हुए दिखाया गया।तृणमूल के प्रतिद्वन्द्वी दलों ने इसे प्रचार का मुद्दा बनाया लेकिन शुरुआती रुझान से तो ऐसा लगता है कि वोटरों ने इसे कोई महत्व नहीं दिया। वोटरों को लुभाने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण, बिजली की अच्छी उपलब्धता, छात्राओं को साइकिल और दो रुपये में एक किलो चावल जैसे कार्यक्रम को पेश किया था। विपक्ष की तमाम कोशिशों के बावजूद ममता का वोट बैंक अटूट रहा। ममता ने जिस समय पश्चिम बंगाल की कमान संभाली थी उस दौरान राज्य में नक्सलियों का प्रभाव अपने चरम पर था। नक्सली प्रभावित जिलों में ममता ने कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करवा कर जनता की खूब वाहवाही हासिल की। ममता विकास की नैया पर सवार होकर चुनाव की वैतरनी पार करना चाहती थीं लेकिन विपक्ष ममता सरकार के भ्रष्टाचार को चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश करता रहा। ममता बनर्जी की पहचान अलग-अलग लोगों के बीच अलग-अलग तरह से है। कोलकाता के कालीघाट का हरीश चटर्जी स्ट्रीट महानगर का बेहद निम्न मध्यमवर्गीय इलाका। कोलकाता के इसी घर में ममता बनर्जी की परवरिश उनके 6 भाइयों और एक बहन के साथ एक बेहद मामूली घर में हुई। ममता बनर्जी भले ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गईं लेकिन आज भी उनका घर उतना ही बड़ा है जितना बचपन में हुआ करता था। ममता मुख्यमंत्री रहते हुए आज भी अपने इसी पुश्तैनी छोटे से घर में रहती हैं। हमेशा एक साधारण साड़ी में लिपटी, पैरों में हवाई चप्पल पहनी ममता बनर्जी एक आम घरेलू महिला लगती हैं। यही सादगी उन्हें पश्चिम बंगाल के लोगों के दिलों तक पहुंचा देती है। उनकी इस जीवन शैली का बंगाल के गरीब और रोजी रोटी के लिये जूझते लोगों पर गंभीर असर दिखता है। वह उनके साथ की एक महिला सी दिखतीं हैं जो हर सुख दुख में साथ देने का आश्वासन देती हुई सी महसूस होतीं हैं। दोस्त और शत्रु दोनों ममता बनर्जी की सादगी का लोहा मानते हैं।1984 में माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हरा कर ममता जी ने सक्रिय राजनीति या यों कहें संसदीय राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। आज तक के अपने सियासी सफर में उन्होंने अन्य राजनीतिज्ञों की तरह वोट बैंक बनाने के लिये दिमाग का नहीं बल्कि दिल का सहारा लिया। यही कारण है कि कई खामियों के बावजूद जनता उनके साथ है। पश्चिम बंगाल में स्पष्ट तौर उद्योगविरोधी आंदोलन के माध्यम से सत्ता में आयी ममता बनर्जी जनता को ‘मां -माटी- मानुष’ जैसे इमोशनल नारों से जोड़तीं हैं यही कारण है कि वे सारे दुष्प्रचारों के बावजूद धमाकेदार ढंग से सत्ता में वापस आयीं हैं। । ममता जी आगमी 27 तारिख को अपने पद की शपथ लेंगी। ममता जी ने साफ कहा किहमारे लिए 20 मई 'बदलाव' का दिन है। यह वह दिन है, जब हमने पिछली बार शपथ ली थी। 20 से 30 मई तक हम सांस्कृतिक प्रोग्राम आयोजित करेंगे और लोगों को धन्यवाद देने के लिए अभियान चलाएंगे। ममता जी की इस विजय पर प्रधानमंत्री ने उन्हें बधाई दी है। प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट कर के बधाई संदेश दिया। जैसा कि ममता जी ने बताया कि कल दोपहर उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात होगी और इसके बाद वे राज्यपाल से मिलेंगी।
वाम मोर्चा और कांग्रेस के गठबंधन की सबसे बड़ी खामी थी कि वे परिवर्तन के बाद के बंगाल की जमीन की हकीकत को नहीं पहचान पाये हैं। वे कई तरह के मिथ्या प्रचार के बल पर वे सामजिक परिवर्तन के गुमानों में ही खोये रह गये। यहां तक चुनाव आयोग द्वारा तैनात केंद्रीय बलों की चौकसी को उन्होंने बंगाल की जनता को दहशत में डालने के सत्ता प्रतिष्ठान की साजिश बताया। हमलों और धमकियों की झूठी कहानियां गढ़ी गयीं। प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, बिमान बोस, मोहम्मद सलीम जैसे नेता टेलीविजन स्टूडियो में बैठ सकते हैं, गरीबों और पददलितों को लेकर लंबे-चौड़े व्याख्यान दे सकते हैं लेकिन इन लोगों ने इस बात का रत्ती भर भी प्रयास नहीं किया कि जो ये जनता के बीच बोलते हैं उसकी विश्वसनीयता के लिये वे कर क्या रहे हैं। बंगाल में हेलीकॉप्टर से उड़ने वाले राहुल समां जरूर बांध सकते हैं पर जीवन के लिये संघर्ष करने वाली बंगाल की जनता को आश्वस्त नहीं कर सकते कि वे उनके साथ हैं। राजनीति के बड़े से बड़े विश्लेषक चुनाव के बाद से कहते आये कि ममता जी की पार्टी को इस बार नाकों चने चबाने पड़ेंगे परंतु जनता ने तो लाल कालीन बिछा दिये। शायद वे विश्लेषक यह भूल गये कि देश में बंगाल ही एक ऐसा प्रांत हैं जहां का हर आदमी राजनीति से किसी ना किसी प्रकार जुड़ा हुआ है, राजनीति के प्रति सचेतन है। चाहे वह तरकारी बेचने वाला हो या टैक्सी चलाने वाला या प्रोफेसर हो या सेठ साहूकार सब किसी ना किसी सियासी महाज से केवल जुड़े ही नहीं हैं, बल्कि सचेतन भी हैं। इसकी शुरुआत वाम मोर्चे ने सोवियतकालीन शासन व्यवस्था के नकल के रूप में की थी जिसके बारे में जर्ज आरवेल ने अपने उपन्यास में इशारा किया था ‘बिग ब्रदर इज वाचिंग।’ समाज का वह राजनतिकरण जब भूख और मानुष की जरूरतों से जुड़ा तो माकपा के लिये ही बूमरैंग हो गया। उस स्थिति को मां माटी मानुष के इमोशनल नारों से ममता जी अपना हथियार बना लिया जिसने सारे दुष्प्रचारों के बावजूद उनके वोटबैंक को टूटने नहीं दिया। - लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
0 comments:
Post a Comment