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Friday, November 3, 2017

शैतान का खेल

शैतान का खेल

इन दिनों आतंकी हमले  का एक नया ट्रेंड चल निकला है. भीड़ में ट्रक को घुसा दिया और वह लोगों को  रौंदते हुए चली जाती है. ड्राइवर पकड़ा भी गया तब भी कोई बात नहीं. हमलावर हो सकता है किसी आतंकी संगठन का आय्यातित गुर्गा हो या यह भी संभावना है कि वह हमारे ही देश का कोई रेडिकलाइज्ड नौजवान हो. इनदिनों अक्सर खबरें आतीं हैं कि देश के किसी हिस्से से कुछ नौजवान आई एस में भारती होने जाते हुए पकडे गए. अभी दो दिन पहले मैनहट्टन में एक भाड़े की ट्रक से 10 लोगों को रौंद दिया गया. यह हथियार या बम से ज्याद खतरनाक है. ऐसा भारत में भी हो सकता है. भारतीय क़ानून हमलावर को कोई बड़ी सजा भी नहीं दे सकता क्योंकि क़ानून की किताबों में यह केवल सड़क दुर्घटना है. मैनहट्टन हमले में जो पकड़ा गया उसकी शिन्ख्त तो हो चुकी है लेकिन कुछ बहुत ज्यादा नहीं मिल पाया है साथ ही उसके इरादे क्ले बारे में बहुत कुछ नहीं बताया जा सका है. इस घटना के साथ ही दुनिया  के आतंकवाद विशेषज्ञों में एक बहाए शुरू हो चुकी है कि घरेलू आतंकवाद और विदेशी आतंकवाद में क्या फर्क है. आतंकवाद भारत की सुरक्षा चिंताओं में सबसे बड़ी चिंता है. ग्लोब्लाइज़शन इस चिंता को और बढ़ा रहा है. इसके कारण  आतंकियों की पहुँच खतरनाक स्तर तक बढ़ गयी है. इन्टनेट और सोशल मीडिया ने उन्हें हर घर के बेडरूम तक पहुँचाने के काबिल बना दिया है. इसलिए घरेलू आतंकवाद और विदेशी आतंकवाद के बीच की विभाजक रेखा धूमिल होती जा रही है. देश में कई आतंकी हमलों में कई ऐसे लोग पकडे गए जो कभी विदेश गए ही नहीं थे लेकिन फिर भी आतंकी बन गए. जब बात विदेशी आतंकी आइडियोलोजी की होती है थो इन देशी आतंकियों को उनसे कैसे जोड़ा जा सकता है जो देश में ही पैदा हुए , पढ़े लिखे और अचानक देखा जाता है कि आतंकवादी हमले में पकडे गए. उसे किसी आतंकी संगठन ने हमले का आदेश  नहीं दिया था बल्कि केवल मोटीवेट किया था. अगर पकड़ा जाने वाला  यह कहता है कि वह आई एस या अलकायदा या अन्य किसी जिहादी संगठन से प्रेरित है तो कुछ देर के लिए माना जा सकता है कि उसे वहाँ से आदेश मिले हैं. देशी और विदेशी आतंकी में भेद का केवल एक  ही तरीका है वह कि सरकार उस घटना के प्रति कैसा रुख अपना रही है और हमारा कानूनी सिस्टम उसे किस नज़र से देख रहा है. घरेलू आतंकवादी देश की सीमा के भीतर योजना बनाते हैं, हथियार नियत करते हैं और अपने काम को अंजाम देते हैं. ऐसे मामले में देश में तयशुदा  तरीकों से जांच होगी, मुकदमा चलेगा और सजा मिलेगी. केकिन मामला तब जटिल  हो जाता है जब यही काम दूसरे देश से आकर किया जाता है. क्योंकि इसके कई चरण होते हैं और असली अपराधी तक पहुंचना और उसे सज़ा दिलाना बड़ा कठिन हो जाता है. अज़हर मसूद के बारे में सब जानते हैं. ऐसी स्थिति के लिए एक सम्पूर्ण और अलग कानूनी क्षेत्र ( लीगल रिजाइम) का निर्माण करना होगा. हर विदेशी आतंकी हमले में कुछ देशी लोग भी जुड़े होते हैं उन्हें पकड़ना और क़ानून की दहलीज पर लाना ज़रूरी होता है. इसके अलावा यह भी जानना ज़रूरी है कि कौन सा कार्य आतंकवाद है तथा कौन सा नहीं. अब मिसाल के तौर पर मैनहट्टन में जो कुछ भी हुआ वह भारतीय क़ानून के अनुसार सड़क दुर्घटना है. यहाँ तक कि गैस से भरा टैंकर यदि विख्यात हावड़ा पूल से टकरा कर उसे उड़ा दे तब भी वह सड़क दुर्घटना ही कही जायेगी जबतक चालक  अपने इरादे की घोषणा ना करे. अतः आतंकवादी और गैर आतंकवादी कार्य में “ मोटीवेशन और इंटेंशन” के तत्वों को खोजना ज़रूरी हो जाता है. इसके लिए ट्रेनिंग और नीतियाँ दोनों ज़रूरी है. अब मान लें कोई ऐसा आदमी जो एक समूह को पागलपन तक मोटिवेट करने की सियासी चाल चले और उसका आबादी पर भरी प्रभाव हो तब भी यह आतंकवाद तो कहा नहीं जाएगा.

आतंकी घटनाओं में जिस तरह के साधनों का उपयोग हो रहा है और मोटीवेशन के लिए जिन तंत्रों का उपयोग किया जा रहा है उसे देखते हुए देशी आतंकयाद को परिभाषित करना ज़रूरी हो गया है.  

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