CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Thursday, November 23, 2017

होना राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष 

होना राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष 

राहुल गांधी का अध्यक्ष होना कोई ऐसी घटना नहीं है जो अप्रत्याशित हुई हो या कोई बहुत बड़ी सफलता हो उनके लिये। राहुल गांधी ने जिस दिन राजनीति में कदम रखा और 2004 में अमेठी का चुनाव जीता उसी समय से यह लगने लगा था कि वे पार्टी के नये अध्यक्ष होंगे। बस उस समय एक ही सवाल था कि उनकी माताजी सोनिया गांधी कब पद छोड़ेगी। कांग्रेस के इस पद का मां से बेटे तक आना तो कांग्रेस की फितरत है और यह एक तरह से विरासत मिलने की तरह है। बदकिस्मती कांग्रेस की यह है कि उसमें जो भीतरी फूट है उसे केवल नेहरू - गांदाी परिवार का सदस्य ही एकजुट रख सकता है। अब कुछ एकदम अनहोनी हो जाय तो अलग बात है कि दिसम्बर में राहुल गांधी का पार्टी अध्यक्ष होना तय है। वैसे अभी भी  सारे फैसले वही करते हैं बस सोनिया जी की मुहर लगती है। ताजपोशी के बाद वे भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष बन जायेगे। यह तो सभी जानते हैं कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प बनने के लिये संघर्ष कर रही है। अलबत्ता राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाये जाने के वक्त की बड़ी अहमियत है। 2014 के चुनाब्में भारी पराजय गे बाद  कांग्रेस राहुल गांधी को सर्वोच्च पद पर भेजने के पक्ष में नहीं थी। इसका मतलब यह था कि पार्टी को मालूम था कि मोदी से इनका कोई मुकाबला नहीं हो सकता है। मोदी जी का बढ़िया वक्त चल रहा था। सोनिया जी ने अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद वे राहुल जी को अध्यक्ष बनाने की जल्दीबाजी में नहीं थीं। वे गुजरात विधान सभा चुनाव को संभाले हुये थे। गुजरान में 1985 के बाद पार्टी को कभी विजय नहीं हासिल हुई थी। इस जिम्मेदारी से ही लगने लगा था कि पार्टी में कोई बड़ा रद्दोबदल होने वाला है। अब राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ा काम कांग्रेस नेतृतव हासिल करना नहीं है बल्कि खुद को नरेंद्र  मोदी की राह में दीवार के रूप में  खड़ा करना  है। उस समय जब सोनिया जी ने खुद के लिये  प्रधानमंत्री पद का दावा पेश नहीं किया और  मनमोहन सिंह को आमंत्रित किया तब उनका मानना था कि सामने सभी नौजवान और अनुभवहीन लोगों की जमात खड़ी है।  उसके बाद से वर्षों गुजर गये राहुल गांधी ने एक बार भी ऐसा साबित करने की कोशिश नहीं की कि वे सरकार का हिस्सा बनना चाहते हैं। वह घड़ी सबके मन में ताजा होगी जब उन्होंने अपनी ही पार्टी द्वारा लाये गये एक अध्यादेश को सरेआम फाड़ दिया। इससे क्या संदेश गया कि यह प्रधानमंत्री के खिलाफ " युवराज का  अक्खड़पन " है। पर इन दिनों राहुल गांधी ने थोड़ी परिपक्वता दिखायी है और सोशल मीडिया में उनके खिलाफ " मोदी पंथियों " की बदजुबानियों के आगे झुके नहीं और मोदी  सरकार की नीतियों  के खिलाफ लगातार बोलते रहे। नतीजा यफह हुआ कि जनता में उनके पक्ष में भी बात चलने लगी है। ऐसा इसलिये नहीं कि देश के लोग विकल्प की तलाश में हैं बल्कि इसलिफये कि उनके भाषण ज्यादाा असरकारक महसूस हो रहे हैं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और इसका प्रभाव सोशल मीडिया में दिखने लगेगा। यह एक तरह से मुकाबला है। भाजपा ने अपनी नीतियों और नेताओं के प्रछाार के लिये सोशल मीडिया कना जम कर प्रयोग है ओर कर रही है। यही कारण है कि पिछले महीने भाजपा अध्यक्ष ने गुजरात के नौजवानों को सचेत किया कि वे सोशल मीडिया में कांग्रेस के प्रचार के झांसे में ना आयें। उन्हें केवल चुनाव नहीं जीतना है बल्कि कुछ पहल भी करनी होगी तथा बड़े मसलों के बारे में सोचना भी होगा। उन्हें संसद में भी, जहां वे अक्सर चुप रहते हैं,  खुद को साबित करना होगा। उन्हें संसद में खद को सबसे अलग और विशिष्ट प्रमाणित करना होगा। इसके लिये अर्थ व्यवस्था, विदेश नीति ओर अन्य मसलों को उठाना होगा। परिवार या विरासत ने बेशक राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बना दिया पर अगर वे भारत जैसे देश का नेता बनना चाहते हैं तो उन्हें कुछ नीतियां तैयार करनी पड़ेंगी जिसे देश के लोग मानें। अब उस दिन का इंतजार करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं कि मोदी कब गड़बड़ायेंगे ओर हम धक्का देंगे। उन्हें साबित करना होगा कि वे देश के प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं ओर इसके लिये केवल भाजपा ओर मोदी की आलोचना करना जरूरी नहीं है बल्कि देश को अपनी नीतियों के बारे में समझाना ​और मुतमईन करना जरूरी है कि वे कुछ नया करेंगे। यही नहीं उन्हें अन्य दलों से भी करनी होगी क्योंकि 2019 में उनकी इन्हें जरूरत पड़ेगी। मोदी जी के सहड़े तीन साल के काम से जनता में असंतोष पनपने लगा हे। यह राहुल जी के लिये अच्छा मौका है। वे इसका लाभ उठा सकते हैं।  

0 comments: