बदलते संकेत
यूनान के एक प्राचीन दार्शनिक हेराक्लाइटस ने कहा हे कि " आप एक ही नदी में कभी दो बार नहीं जा सकते। " यानी कहने का अर्थ है कि जस नदी में आप पहली बार गये वह बदल चुकी है , उसका पहले वाला पानी जा चुका है और अभी जो पानी दिख रहा हे वह नया पानी है और यह भी कुछ क्षणों में बदल जायेगा। यह शाश्वत परिवर्तन की चेतावनी है। किसी भी को आप नििश्चत तौर पर नहीं कह सकते कि ऐसा ही होगा। वर्तमान अतीत का एक्सटेंशन है इसलिये भविष्य का भी निर्देशक है। आज जो हमारा वर्तमान है वही तो अतीत का भविष्य था। यह एक सबक है जिसे 2019 के लिये बाजपा को अपने दिमाग में रखना होगा। 15 अगस्त तक नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति पर वर्चस्व कायम करते हुये प्रतीत होते हैं , लेकिन 2019 यह प्रश्न लेकर आयेगा कि उनका , मोदी जी का , बहुमत कितना बढ़ेगा। क्योंकि बादल धीरे- धीरे गहरे होते जा रहे हैं। राम रहीम के पतन के बाद से ही बादल गहराने लगे जो मनोहर लाल खट्टर द्वारा हरियाणा में अपनी जनता की हिफाजत में नाकामयाबी से और भी दूर तक फेल गये। बाद में योगी आदित्यनाथ ने कुछ ऐसा समां बांधा मानों अगले 6 महीनों में वही मुख्यमंत्री हो जायेगे। लेकिन इन राज्यों में 2019 के पहले चुनाव नहीं होने वाले। नरेंद्र मोदी चाहे जब चुनाव करायें यह अबसे आम चुनाव तक का सफर है और इस सफर पर बहुत सावधानी से नजर रखनी होगी।राह में कई खतरे हैं। बात गुजरात से ही शुरू करें। नरेंद्र मोदी द्वारा विगत तीन चुनावों में बेहतरीन रेकार्ड कायम किये जाने के बाद इसबार उसे बनाये रखना भाजपा के लिये सरल नहीं होगा। वहां विडम्बना यह है कि मुख्यमंत्री अनजान हैं , कहीं उनके दर्शन नहीं हो रहे हैं ओर सारा प्रचार मोदी और अमित शाह संभाले हुये हैं। 2015 का दिल्ली चुनाव याद करें। मंचों से लेकर पोस्टर तक मोदी छा गये थे। इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। अब पद्मावती को लेकर चल रहा आंदोलन। भाजपा नेता अगर यह समझते हैं कि इसे रिलीज करने में विलम्ब से कुछ लाभ होगा तो वे भूल कर रहे हैं। यह 21 वीं सदी है। लोग उसके गाने सुन चुके हैं और किसी दिन कोई मनचला उसकी पाईरेटेड प्रति ऑन लाईन डाल देगा तो सेंसर बोर्ड अपनी डफली बजाता रह जायेगा। अब वह जमाना लद चुका है जब सरकार सूचनाओं रोक देती थी। वैसे यह आंदोलन मतदाताओं को भड़काने के उद्देश्य से किया जा रहा है। लेकिन यह दोधारी तलवार है क्योंकि इसके जो शिकार होंगे उन्हें भी तो काबू नहीं किया जा सकता है। गुजरात में राहुल गांधी को सबनेश् देख लिया , कम से कम अब लगने लगा हे कि वे कुछ कर सकते हैं। राहुल गांधी का बर्कले बाषण जिसने सुना उसे लगा कि यह कोई अलग आदमी है। तबसे राहुल गांधी बहुत आगे आ चुके हैं। ऐसा लगने लगा है कि उनके पास अच्चे सलाहकार जमा हो गये हैं और वे उनकी छवि को सुधारने की कोशिश में हैं। उनके ट्वीट्स तूफान खड़े कर दे रहे हैं क्योंकि पहले वे मोदी जी का विरोध करते थे और उनहें खारिज करने में लगे रहते थे पर अब वे उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। अभी यह कहना बहुत जल्दीबाजी होगी कि यह सब कितना लाभ पहुंचायेगा पर यह तो तय है कि गुजरात में पहले वाली बात नहीं रहेगी। भाजपा को अतनी कामयाबी नहीं मिलेगी जितनी 2012 में मिली थी साथ ही राहुल गांधी कहें या कांग्रेस को उतनी असफलता भी नहीं मिलेगी। दोनों पक्षों के लिये सबसे कठिन परीक्षा 2080 में होगी। मध्य प्रदेश में वर्तमान शासन की वापसी मुश्किल लगती है ओर उधर कांग्रेस अपने पत्ते खोल चुकी है। कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया है। इससे लग रहा है कि धीरे धीरे नौजवान पीड़ी कांग्रेस को अपने कब्जे में ले रही है। भाजपा को इसपर ध्यान देना चाहिये।
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