चिदंबरम तो गलत हैं ही पर मोदी कहाँ सही हैं
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम ने पिछले दिनों राजकोट में कश्मीर कि स्वायतत्ता कि वकालत क्या कर दी भा ज पा के नेता वृन्द उन्हें जली कटी सुनाने में जुट गए. मोदी जी ने तो साड़ी शालीनता छोड़ कर बेशर्म तक कह दिया. चिदंबरम ने धारा 370 के तहत स्वायतत्ता कि बात कही थी. उनके भाषण पर जैसे ही प्रतिक्रियाएं आने लगीं आनन फानन में कांग्रेस ने इस बयान से खुद को अलग कर दिया और कहा कि यह उनका अपना विचार है. कांग्रेस ने दावा किया कि कश्मीर समस्या का समाधान सविंधान के दायरे में होना चाहिए , स्वायतत्ता इसका समाधान नहीं है. इधर भाजपा ने चिदंबरम को पानी पी पी कर कोसना शुरू कर दिया. मोदी जी भाषण में उन्हें बेशर्म कह रहे हैं , देशद्रोही बता रहे है. चिदंबरम पिछली सरकार में गृह मंत्री रह चुके हैं. यू पी ए कि सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में कश्मीर समस्या पर वार्ता के लियेद तीन वार्ताकार नियुक्त किये, 5 कार्य दल का गठन किया जिसमें एक दल कि अध्यक्षता पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने की थी. इन लोगों ने कश्मीर पर कई गोलमेज सम्मलेन भी किये जिनकी अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने की थी. सभी वार्ता कार और कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट भी दी पर उनपर धुल जमती रही. गृह मंत्री के रूप में चिदंबरम कश्मीर समस्या सुलझाने में पूरी तरह नाकामयाब रहे, अब कश्मीर का मसला उठाना ही बेमानी था. सत्ता से बाहर रह कर दूसरे पर टीका टिप्पणी करना आसान होता है. जहां तक कश्मीर का सवाल है फारूक अब्दुल्ला जब दूसरी बार नेशनल कान्फरेन्स के अध्यक्ष चुने गए तो उन्होंने सबसे पहले कश्मीर कि स्वायतत्ता की मांग की. उम्र अब्दुल्ला भी उन्ही कि लाइन पर चलते रहे. इस तरह के बयान इन बाप बेटों कि ओर से आते ही रहते हैं और इसमें कोई हैरत भी नहीं है, क्योंकि दोनों अपनी पुरानी हस्ती को दुबारा बनाने के लिए बेचैन हैं. ऐसी टिप्पणियाँ केवल कश्मीर घाटी के लिए होती हैं और ये लोग दूसरे हिस्से के लोगों की इछयों और आकांक्षाओं पर ध्यान नहीं देते. नेशनल कान्फरेन्स खुद को कश्मीर का प्रतिनिधि कहता है और बात केवल घाटी कि करता है. मजे कि बात है कि चिदंबरम और अब्दुल्ला स्वायतत्त कि बात करते वक़्त कश्मीर कि सोचते हैं. लेकिन उनका मंतव्य अधिकृत कश्मीर को छोड़ कर कश्मीर के हिस्से से है. अब बात है कि वे अधिकृत कश्मीर को जोड़ कर स्वायतत्ता कि बात क्यों नहीं करते? अगर कोई स्वायत क्षेत्र हो तो पूरा हो केवल एक भाग क्यों और वही भाग क्यों जो भारत में विलीन हो चुका है. जम्मू और लड़ख कभी भी स्वायतत्ता के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि इस क्षेत्र के लोग कश्मीरी नेताओं पर भरोसा नहीं करते और ना कांग्रेस पर. पिछले चुनाव में इसका सबूत मिल चुका है. इन क्षेत्रो का नज़रिया बिलकुल अलग है लेकिन फारूक या चिदंबरम ने इस पर कुछ नहीं सोचा. ये वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं और राष्ट्रीय स्तर पर लोग इन्हें मानते हैं पर ये लोग एक क्षेत्र की बात करते हैं. पी डी पी और नेशनल कान्फरेन्स ने धारा 35 का सुप्रीम कोर्ट में विरोध कर रखा है और यह केवल घाटी में राजनितिक लाभ के लिए है. इन्होने लद्दाख और जम्मू को नज़र अंदाज कर दिया है. बेशक इस किस्म के बयान पाकिस्तानी अखबारों कि सुर्खियाँ होंगे और अलगाववादियों के लिए वैचारिक आधार.
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चिदंबरम कि आलोचना जायज थी. आखिर चुना नजदीक हैं और विपक्ष द्वार बोली जाने वाली हर बात का लाभ उठाने में सत्तापक्ष हिचकेगा नहीं. लेकिन इस टिपण्णी में शाहीस्दों का उपयोग कल्पना से परे था. मोदी जी का यह कहना कि चिदंबरम के बयान जैसे बयान शाहीदों और सैनिकों का अपमान था , अपने आप मेंएक विडम्बना है. वर्तमान सरकार फौज कि बात उठाकर या सर्जिकल स्ट्रीक की बात उठा कर अपनी कामयाबी का ढोल पीटना चाहती ताकि चुनाव में वोट मिले लेकिन बात इसके विपरीत है. इस सरकार ने सेना कि प्रतिष्ठा को बहुत आघात पहुंचाया है. इसने विरोध कर रहे रिटायर्ड फौजियों का पुलिस के हाथों दुर्व्यवहार कराया. युद्ध में घायल हो कर सेना छोड़ने या सैनकों कि विधवाओं को पेंशन देने के मामले को सुप्रीम कोर्ट में दाल दिया. यही नहीं सेना के पदों का ग्रेड अन्य केन्द्रीय सशत्र बालों के ग्रेड के मुकाबले घटा दिया.
चिदंबरम कि निंदा ज़रूरी है और उनकी आलोचना के मामले में प्रधानमन्त्री जायज हैं शहीदों और सैनिकों का उपयोग वोट के लिए करना भी उचित नहीं है , यह पाखंड है क्योंकि इस सरकार ने पिछली सरकारों के मुकाबले सेना को ज्यादा अपमानित किया है. मोदी जी से अपील है कि वोट के लिए सेना का उपयोग ना करें.
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