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Wednesday, November 15, 2017

अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में 

अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में 

जैसे जैसे हमारा देश तरक्की कर रहा है ओर सियासी संचार - संवाद की सहूलियतें बड़ रहीं हैं वैसे वैसे ही इंसाानी हकों में सबसे प्रमुख अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी का दायरा संकुचित होता जा रहा है। एक तरफ सोशल मीडिया पर " फेक न्यूज "  का अंधेर और दूसरी तरफ हकीकत बयान करने वालों पर कसता शिकंजा। अभी कुछ दिन पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री  का कार्टून बनाने वाले काटूनिस्ट को जेल की हवा खानी पड़ी और जमानत लेकर बाहर आना पड़ा। यही नहीं , प्रधानमंत्री जी की नकल उतारने वाले अभिनेता का शो रोक दिया गया। राजस्थान में प्रेस की बोलती बंद करने के लिये कानून की बात चल रही है। अभी कहीं भी कुछ ज्यादा या ठोस नहीं हुआ है पर सोच की दिशा से महसूस होता है कि अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे बड़ रहे हैं। स्वतत्र चिंतन का दायरा सिकुड़ता जा रहा है और वैचारिक आजादी पर हमले बढ़ रहे हैं। भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी को स्वतंत्रता का आधार बताया गया है और इसे मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है। तब भी इसकी सीमाएं तय हैं पर वे बेहद युक्तियुक्त हैं। मसलन मानहानि, अदालत की अवमानना,शिष्टाचार, सुरक्षा, दूसरे देशों से सम्बंधों को खतरा, अपराध या दंगे को उकसावा और देश की सम्प्रभुता अखंडता को खतरा। संविधान के मुताबिक लोकतंत्र असहमति के साहस और सहमति के विवेक पर कायम रह सकता है। अब आपात काल के काले दिनों को छोड़ दें और बिहार के प्रेस कानून की तैयारी को नजरअंदाज कर दें तो 2014 के बाद अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा बड़ रहा है। हर आजाद ख्याल इंसान को सार्वजनिक प्लेटफार्म पर कुछ कहने के बाद गालिया सुननी पड़तीं हैं। खास कर सोशल मीडिया पर किसी भी विपरीत सोच वाले किसी भी  इंसान पर देशद्रोही का लेबल लग जाता है। अगर इस ​िस्थति का मनोवैज्ञानिक विष्लेषण करें तो यह विपरीत सोच को बड़ावा देकर आदत डालने की धीमी किंतु ठोस प्रक्रिया है। आजादी के बाद से विधायिका और कार्यपालिका से आम आदमी के टकराव बढ़े हैं। मीडिया वाचडॉग द हूट की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 2016ओर 2017 में पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं। इस अवदिा में 50 से ज्यादा पत्रकारों पर हमले हुये। 2016 में में 31 बार इंटरनेट को बंद किया गया ओर 2017 की पहली छमाही में 14 बार इंटरनेट को बंद कर दिया गया। 2016 में अदालतों में राजद्रोह और मानहानि के कई मुकदमें दायर हुये। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले साल कन्हैया कुमार की अभिव्यक्ति को लेकर कितना बवाल हुआ यह किसी से छिपा नहीं है।फिल्म के सेंसरशिप की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक प्रेस की आजादी के मुताबिक भारत का स्थान दुनिया में 136 वां है। यह सूचकांक प्रेस की आजादी पर बड़ते खतरे की निशानी है। अगर इसमें नाटक, कार्टून , भाव नृत्य, कला, साहित्य को जोड़ दिया जाय तो पाबंदी,  और अभिव्यक्ति के दमन की कोशिशों का ग्राफ और नीचे गिर जायेगा। अभी कुछ दिन पाले एक प्रसिद्ध अबिनेता की आतंकवाद से जुड़ी टिपपणी को लेकर उसे मार डालने का फतवा जारी किये जाने की बात सभी जानते हैं। हमारा समाज एक भयावह ​िस्थति की ओर बड़ रहा है। अगर वैचारिक असहिष्णुता पर रोक नहीं लगायी गयी तो इसका अर्थ स्वनियंत्रण होगा जो भयावह ​िस्थिति पैदा करेगी। इसका दूरगामी दुष्परिणाम होगा। अभिव्यक्ति की आजादी ओर अभिव्यक्ति  पर सेल्फ सेंसर में बुनियादी फर्क  है। इस फर्क को समझना होगा। अभिव्यक्ति की आजादी भारत की स्वतंत्रता के बाद बने संविधान द्वारा प्रदत्त है और इसे संविधान का संरक्षण हासिल है। ह्यूमन राइट्स वाच ने इसके लिये भारत सरकार को कुछ सिफारिशें दी हैं। जिसके तहत ऐसा कोई कोई कानून जिसे लागू कर भारतीय अभिव्यक्ति की आजादी को अपराध ठहराया जा सकता हे वह सरकार के अंतरराष्ट्रीय कानूनी अत्तरदायित्व के ​खिलाफ है। अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी यानी दूसरे बुनियादी अधिकारो के उपयोग में भी बाधा और तदंतर मानवादिाकार की रक्षा में भी बादाा इसलिये ऐसे कानूनों को रद्द कर दिया जाना चाहिये या उसमें सुधार किया जाना चाहिये। साथ ही पुलिस को ट्रेनिंग दी जानी चाहये कि थ्अदालतों में ऐस अनुचित मामलों को ना ले जाय। विकास के लिये समाज में बहस का माहौल जरूरी है।

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