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Sunday, November 26, 2017

विकास कहां गया भाय !

विकास कहां गया भाय !

गुजरात चुनाव के प्रचार में नेताओं को सुनते हुये कोफ्त होती है। अबसे 12 दिनों के बाद गुजरात में विधान सभा चुनाव का पहला चरण होने वाला है। ... और अनमने मतदाताओं के सामने बड़ी- बड़ी बातें की जा रहीं हैं। अब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने भावनगर में मतदाताओं (पार्टी कार्यकर्ताओं पढ़े ) से पूछा कि " क्या उन्हें पर्याप्त पानी और बिजली मिलती है? " भीड़ से एक स्वर में कहा गया कि " हां " , यह ठीक वही स्टाइल है जब मोदी पिछले लोक सभा चुनाव में पूछा करते थे- "महंगायी घटी " और भीड़ चीखती - " नहीं " ! अमित शाह भी इन दिनों गुजरात में कुछ इसी तरह के जुमले उछाल कर लगते हैं रोहिंग्या मुसलमानों की बात करने , कश्मीर के मामले में पी चिदम्बरम की बात करने। इसके बाद फिर कुछ सवाल वे भीड़ के सामने उछालते हैं और वहां सब मौन रहते हैं, क्योंकि वे सब भाजपा कार्यकर्ता थे। शाह फिर बात दोहराते हैं और मामूली जवाब मिलता है। शाह के भाषणों से दो ही बातें उभर कर सामने आती हैं पहला कि वे मामूली साम्पद्रायिक मसलों पर जन भावना को आजमाना चाहते हैं अथवा प्रधानमंत्री एवं अन्य नेताओं  के भाषणों के विषय के बारे में लोगों को संकेत दे रहे हैं। प्रधान मंत्री ओर पार्टी के अनय नेता इस हफ्ते गुजरात आने वाले हैं। हकीकत यह हैं कि उनकी बातें विकास केंद्रित नहीं हैं। अब ऐसे में बहुत कम लोगों के पास पूरा भाषण सुनने का धैर्य था और राष्ट्रीय मीडिया को शाह के भाषणों के अर्थ भेद में दिलचस्पी है नहीं। यानी उनका सारा भाषा लोकल स्तर पर सुनने सुनाने के लिये था। 

 दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 12 दिन की अपनी नवसर्जन यात्रा में उ त्रर ,दक्षिण ओर मध्य गुजरात के 20 मंदिरों का दौरा किया। इनमें दलितों के भी दो मंदिर थे। अब उनके इस दौरे से पता नहीं चला कि वे चुनाव प्रचार कर रहे थे देव दर्शन। इस दौरान राहुल ग्हहंधी सभाओं को सम्बोधित भी करते। उन सभाओं में शा्रेताओं को बताते कि नोटबंदी से छोटे और मझोले वर्ग के लोगों तथा उद्योगों को भार हुईै है और नौजवान बेरोजगार हो गये हैं। उन्होंने बताया कि कैसे किसानों की जमीन उद्योगपति हड़प रहे हैं। उन्होंने जानकारी दी कि कार का कारखाना बनाने के लिये 33 हजार करलोड़ रुपये अग्रिम दे दिये गये। जी एस टी को गब्बर सिेह टैक्स वाल उनका जुमला तो खूब चला।   

 ये सब बड़बोला है या कहें कि लन्तरानियां हैं लेकिन ये असली मसायल को कहां छूती हैं। असली मसायल तो हैं पानी की​ किल्लत , किसानों की दुर्दशा और नौजवानों में बेरोजगारी। इनपर तो बातें ही नहीं होतीं। गुजरात के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पानी की भयंकर किललत है। भावनगर नगर निगम तों यहां एक दिन छोड़ कर पानी देता है। एक दिन लोगों को पानी नहीं मिलता। मुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र राजकोट भी पानी को तरसता है। निजी पानी टैंकर वाले पानी की अनाप शनाप कीमत वसूलते हैं तब भी नगरीय और उपनगरीय क्षेत्रों यह दुर्लभ है। गुजरात हल्के रगिस्तानी इलाकों से भरा है, वहां पानी​ की भारी किल्लत है। सरकार की सारी योजनाएं पाइप लाइन में ही अटकी पड़ी हैं। 

 गुजरात के किसानों की दूसरी विपदा है  खेती। अगर बी टी कपास की फसल पिटती है तो किसान विपत्ति में फंस जायेंगे क्योकि वहां 99.9 प्रतिशत किसान बी टी कपास की ऊपज पर ही निर्भर हैं। पिछले दो वषों से फसल मारी जा रही है और उस पर सरकार ने बी टी कपास का समर्थन मूल्य 150 रुपये कम कर दिया। इसके बाद से उर्वरक , कीटनाशी, बिजली की कमी , डीजल के बढ़ते दाम इत्यादि तो किसानों की विपदा को और बढ़ा देते हैं। लेकिन वहां समस्या है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति अभी तक नहीं बेठी। भाजपा नेताओं को मालूम नहीं कि गुजरात चुनाव का घोषणा पत्र क्या है। कांग्रेस औरल भाजपा एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं  कि वे विकास के एजेंडे को नजर अंदाज कर रहे हें। यही कहते कहते नेता एक दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप भी लगाने लगे हैं। यह अगर हमारे देश के भविष्य के लिये हानिकारक नहीं है तो यकीनन हासयास्पद तो है ही। हमारे नेताओं के पास कहने के लिये कुछ नहीं है। आने वाले सभी चुनावोश्में यही सब सुनने को मिलने वाला है , जनता तैयार रहे। 

 

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