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Wednesday, November 22, 2017

गांधी को किसने मारा ? 

गांधी को किसने मारा ? 

हत्या रिवाल्वर से हुई तो ईटली की बेरेटा पिस्तौल कैसे बरामद हुई

गोड्से अकेला नहीं था, पदें के पीछे छिपे हैं कई रहस्य

हरिराम पाण्डेय

कोलकाता : महात्मा गांधी की हत्या को लेकर इन दिनो सवाल उठने लगे हैं और मामला सुप्रीम कार्ट तक में जा चुका है। आरंभिक दिनों से ही इस हत्या के सच को सामने लाने की कोशिश में सन्मार्ग सहित कई लोग लगे हैं। सन्मार्ग द्वारा किये गये शोध से कई बातें समाने आतीं हैं। बात शुऱु होती है 30 जनवरी 1948 से जब प्रार्थना सभा में गांधी की हत्या हुई। इसके बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दश को इसकी जानकारी दी। इसके दो दिन बाद 2 फरवरी को संविधान सभा में नेहरू ने भरे गले से कहा कि " आाज यह हकीकत है कि वह दिव्य पुरूष, जिसे हम सब बेहद प्यार देते थे और इज्जत देते थे, चला गया क्योंकि हम उसे पर्याप्त सुरक्षा नहीं दे सके, यह हम सबके लज्जा का विषय है। " 

यह विषय आज भी हमारे लिये कम लज्जाजनक नहीं है। क्योंकि तकनीकी विकास , फोरेंसिक सबूतों , सैकड़ों प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, कट्टरवादियों वर्षों निगरानी की रपटें, पुलिस के रेकार्डस की सैकड़ों फाइलों ण्के बावजूद हम यह नहीं तय कर सके कि असली खूनी कौन है ओर इस बात को लेकर मसला 69 वर्ष के बाद भी जीवत है तथा उसपर शोध की जरूरत समझी जा रही है। यह गांधी की दुबारा हत्या है। पहली बार गोली से और दूसरी बार इस तरह की बहस से। 

 गांधी जी के भौतिक शरीर की हत्या पर पहले बात करते हैं। सबको मालूम है कि नाथूराम गोड्से ने गांधी जी को मारा। अपराध शास्त्र के मुताबिक किसी भी अपराध के पीछे चार पहलू होते हैं। उनमें है कर्ता यानी जिसने वह कर्म किया, सहयोगी , प्रेरक ओर अनुमोदक। अपराध शास्त्र इन चारों को सजा देने की सिफारिश करता है। लेकन इस मामले में दो कत्ताऔं को मुक्त कर दिया गया, उनके बारे में कोई सूचना नहीं है। इसके अलावा तीन पहलुओं पर ध्यान ही नहीं दिया गया। ब्रिटिश शासको ने कभी नहीं चाहा कि अपराध कर्म में शा​्मिल होने से आगे बात बढ़े। क्योंकि वे सबसे बड़े अपराधी थे। उन्होंने अपराधी गिरोह इस्ट इंडिया कम्पनी को नजर अंदाज किया और कम्पनी ने भारतीयों को लूटना ओर मारना जारी रखा। वे नहीं चाहते थे कि भारत का कोई शासक उनसे यह ना पूछे कि अन्होंने भारत को क्यों लूटा और लूट की दौलत विदेश क्यों ले गये?इसीलिये उनहोंने ऐसे कानून बनाये जिससे केवल अपराधकर्मी ही दंडित हो। आजादी के बाद भी उसमें बदलाव नहीं आया। एकबार फिर नहरू के बयान पर गौर करें। उनहोंने कहा कि " हम उनहें पर्याप्त सुरक्षा नहीं दे सके।" चूंकि बापू से सब प्यार करते थे तो सवाल उठता है कि बापू को किससे सुरक्षित रखने की जरूरत थी या किससे खतरा था उन्हें ? क्या वे हिन्दू कट्टरपंथी थे या मुस्लिम कट्टरवादी या ब्रिटिश सरकार जो 100 वर्षों में एक ऐसे आदमी से हार गयी जिसने कभी एक गोली नहीं चलायी या फिर सबके मिले जुले स्वरूप से। गांधी की हत्या 31 जनवरी 1948 को हुई। 20 जनवरी को उनकी प्राथंना सबा में बम फटा, जिसमें मदनलाल को दोषी बनाया गय। इसके पूर्व , इंटेलिजेंस की रिकार्ड में साफ दर्ज है कि महाराष्ट्र के गृमंत्री मोरारजी देसाई ने गांधी हत्या की साजिश की सूचना भारत सरकार को दी थी। इस सूचना के बावजूद उनकी प्रार्थना सभा में 20 जनवरी 1948 को बम फटा। दिलली पुलिस को इसकी खबर थी पर उसने कुछ नहीं किया और तबतक हाथ पर हाथ धरे बैठी रही जबतक "हे राम " के बम से दुनिया ना दहल उठी। एक पूर्ववर्ती इंटेलिजेंस अफसर की निजी डायरी के फटे पननों में लिखा है कि 20 जनवरी के एक माह पहले दिल्ली में नये पुलिस प्रमुख की तैनाती हुई थी और एक हफ्ते के बाद ही वे बीमारी के कारण लम्बी छुट्टी पर चले गये। बिड़ला हाउस में 20 जनवरी को प्रार्थना सभा में बम फटा। चूंकि वह देसी था और थोड़े में ही फुस्स हो गय। इस मामले में मदनलाल, नाथू राम एवं अन्य 6 लोगों दिल्ली पुलिस ने पिस्तौल , चाकू इत्यादि के साथ गिरफ्तार किया और 22 जनवरी को उन्हें यह कह कर रिहा कर दिया गया कि वे हदिायार उनके नहीं थे। क्या आज के भारत में ऐसा हो सकता हे कि एक आदमी खून के अभियोग में पकड़ाा जय और उसके पास हथियार भी पकड़ा जाय ओर केवल इसलिये रिहा कर दिया जाय कि वह हथियार उसका था यह साबित नहीं हो सका। बम विस्फोट के बाद पुलिस ने ऐसा ढीला ढाला रवैया क्यों अपनाया यह समझ से परे है। इससे भी ज्यादा उलझन इस बात से होती है कि मदनलाल ने 20 जनवरी की रात दिलली पुलिस को उन  सबके नाम बताये थे जिन्होंने इसकी योजना बनायी​ थी, इसके लिये धन दिया था और जिन्होंने इनकी मदद की थी। यह भी बड़ा रहस्यमय है कि  दिलली पुलिस ने 21 जनवरी को यह रिपोर्ट बम्बई  पुलिस को भेज दिया था।  तत्कालीन गृहसचिव आर एन बनर्जी के अनुसार " आप्टे और गोड्से को 23 तारिख को बम्बई में पकड़ा जा सकता था पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। यहां तक कि दिल्ली पुलिस ने बम्बई पुलिस को डस बात को याद दिलाया।" यहां यह जानना उचित होगा कि फकत 6 महीने पहले ही देश आजा हुआ था और इसके पूर्व देश में व्यापक पैमाने पर लूट, हत्या, बलात्कार जैसी कई घटनाएं ााटीं थीं और भारत सरकार ने लार्ड माउंटबेटन से अनुरोध किया था कि हालात के सामान्य होने तक सेना और पुलस को वह संबालें। यानी गांधी की हत्या जब हुई तो पुलिस और खुफिया तंत्र अंग्रेजों के हाथ में थे। अब ऐसे में कहें कि दिल्ली पुलिस और बम्बई पुलिस में को ऑर्डिनेशन नहीं है तो लगता है कि यह सब जानबूझ कर कहा जा रहा है और यह कहा जाय ​्कि संवाद हीनता है तो यह साजिश कही जायेगी। यहां तक गृह सचिव और गृहमंत्री को भी नहीं बताये जाने का मतलब है कि  अंग्रेजो ने एक मिर्म खूनी दस्ता बना रखा था जो कि भारत में अंग्रेजों की विदेश नीति के अनुरूप थी और वह दस्ता चाहे वह मुसलमानों का गुट हो या हिंदुओं का अंग्रेजों के उद्देश्य को पूरा करने के लिये काम करता था। अतएव माउंटबेटन प्रशान के सर्वोच्च स्तर के अनुमोदन के बगैर इस तरह के काम हो ही नहीं सकते। दुर्भाग्य यह है कि इस साजिश को उन्होंने हिंदू या मुसलमान का जामा पहना दिया। अंग्रेजो को डर था कि गांधी आजादी के बाद भी उनके द्वारा किये गये बंटवारे को खत्म करा सकते थे। इसके पहले लगभग 100 वषोंं में ब्रिटिश पहली बार गांधी के हाथों पराजित हो चुके थे। 

 गोड्से और आप्टे को फांसी दे दी गयी पर मदन लाल का क्या हुआ? कोई नहीं जानता। क्या यह जानने की जरूरत नहीं है? यानी गांधी को मारने दो दल गये थे। एक ने 20 जनवरी को कोशिश की पर नाकामयाब रहे और दूसरी टीम 31 जनवरी को सफल हो गयी। गांधी जी की ह्तया की कितनी कोशिशें की गयीं? 6 बार उन्हें मारने का प्रयास किया गया और हम अबी यह कहते हैं कि ​आजादी के बाद पाकिस्तान को 51 करोड़ रुपये दिये जाने के कारण गुस्साये लोगों ने यह किया। यह बात जमती नहीं है क्योंकि गांधी जी से गुस्सा होने के पहले वे अंग्रजों पर गुससा होगे क्योकि उन्होने कत्लेआम किया था। जैसे जलियांवाला बाग कांड के लिये उधम सिंह जेनरल डायर को मारने गये थे ना कि पंजाब गंग्रेस को अध्यक्ष को जिनहोंने जलियांवाला बाग में मीटिंग बुलायी थी। उनका गुस्सा अंग्रेजों पब्र होना चाहिये जो देश से हजारों करोड़ ले गये। लेकिन गुस्सा उसपर हुआ जिसने कथित तौर पर 51 करोड़ दिलवाये। गृहमंत्रालय के जिस पत्र के आधार पर यह कहा जा रहा है उसकी प्रमाणिकता भी संदेहास्पद है। 

गांधी जी की हत्या का एफ आई आर उदूं ओर फारसी में लिखा गया। इसका 1999 में किरण बेदी ने अनुवाद किया। गांधी जी की हत्या का इक गवाह थाने में आया और असने बयान दिया कि उनपर रिवाल्वर से तीन गोलियां चलायीं गयीं थीं। गांधी जी की मौत के बाद वहां बारी शोर शराबा हो गया। कोई डाक्टर नहीं था आस पास उनके शव का पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ। यहां सवाल उठता है कि एक अैनिक आदमी दूर से ही कैसे समझ लिया कि गोली रिवाल्वर से चली है और दिल्ली पुलिस ने इसे एफ आई आर में दर्ज भी कर लिया। उस आदमी को बिड़ला हाउस भेज दिया गया ओर बाद में पुलिस बी गयी। पुलिस ने जांच के बदले कुीछ घंटे उस आदमी को गोजने में बिताया। फिर फारसी में एफ आाई आर लिखा गया और उसे पढ़ कर सुनाया गया तथा उसका दस्तखत लेकर पुलिस लौट आयी। यानी, बगैर फोरेंसिक सबूगें का इकट्ठा किये और बिना अपराधी को पकड़े पुलिस ने मान लिया कि रिवाल्वर से तीन गोलियां चलायीं गयीं। लेकन मजे की बात हे कि जिस हथियार से हत्या हुई बताया गया और पेश किया गया वह इटली की बनी बेरेटा पिस्तौल थी , 0.9 मिलीमीटर की पिस्तौल। यही नहीं तीन पिस्तौले पेश की गयीं और गांधी जी के शरीर में जो घाव थे वे उन पिस्तौलों की गोलियों के नहीं पाये गये। यहां सवाल है कि उनकी हत्या किससे हुई- पिस्तौल से या रिवाल्वर से। अगर दोनों से हुई तो दूसरा कौन था? 

  चूंकि पिछले हमले में मदनलाल नाकामयाब हो गया था अतएव जिसने भी योजना बनायी होगी उसने दोहरी व्यवस्था की होगी ताकि अगर पहला कामयाब नहीं होता है तो दूसरा एक्शन में आा जायेगा। एफ आई आर तो हुई लेकिन पंचनामा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहां गयी जिसके आधार पर उन्हें मृत माना गया। पिछले 64 वर्षो तक वह कहा था। 2009 में पहली बार उसे खोजा गया वह भी एक आर टी आई के जरिये। सरकार ने इसे तब खोजा जब प्रधानतमंत्री पर 26 हजार रुपये जुर्माने की बात आयी। यह पूरी कथा एक जासूसी उपन्यास की तरह काल्पनिक ओर सनसनीखेज लग रही है। अब मामला जब अदालत में खुलेगा तो देखना है कि इसपर से कितने पर्दे हटेंगे।     

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