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Monday, November 20, 2017

जितनी जल्दी सरकार चेते वह अच्छा 

जितनी जल्दी सरकार चेते वह अच्छा 

नोटबंदी फेल हो गयी, जी एस टी भी सफल नहीं हो सका इस लिये इसमें बार बार संशोधन करना पड़ा क्योंकि इससे कारोबार में व्यापक हानि हो रही थी। इसके बाद कीमतें कितनी गिरीं इसका कोई साफ पता नहीं चला। यही नहीं पेट्रोल जी एस टी के तहत नहीं आता पर उसकी कीमतें नहीं गिरीं, उल्टे लगातार चड़ रहीं हैं। जून में नीति बनी थी कि हर महीने दाम में संशोधन किया जायेगा तबसे कीमतें चड़ती ही जा रहीं हैं। अभी हाल में कच्चे तेल की कीमत दुनिया भर में बढ़ी और चूंकि भारत तेल का आयातक देश है इस लिये इस वृद्धि ने नरेंद्र मोदी सरकार के सब्सीडी के गणित के सारे आकलन को उलट पुलट कर  दिया। 

आयात की कीमत बढ़ने से व्यापार घाटा बढ़ गया। तेल के आयात पर सितम्बर में 9 अरब डालर था जो अक्टूबर में बड़ कर 14 अरब डालर हो गया। यही नहीं अक्टूबर में खुदरा दर में विगत सात महीने से ज्यादा वृद्धि हुई और औद्योगिक उत्पादन सितम्बर के मुकाबले धीमा पड़ गया। आठ कोर उद्योगों का विकास सितम्बर 2016 में 5.3 प्रतिशत घट कर सितमबर 2017 में 5.2 प्रतिशत हों गया। जिससे उर्वरक का अतपादन घट गया। 

लेकिन यहां बात यह नहीं ीक सिर्फ अथंवयलस्था में ही सुधार नहीं हो रहा है बल्कि और भी गंभीर मसायल सामने आ रहे हैं। ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान से लेकर  सुनीता नारायण के विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र तक सभी पर्यावरणविद् यह समझाने में लगे हें कि आनेवाले दिन पारि​िस्थतिकी विध्वंस के दिन हैं। दिलली के आसपास के राज्यों में रबी की कटाई के बाद डंठल को जला देने से उत्पन्न प्रदूषण को राकने के लिये कोशिशें हुईं हैं लेकिन केंद्र ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे किसान फसल के बाकी हिस्सों को कम्पोस्ट की तरह इस्तेमाल कर सकें। ना सरकार ने इसके लिये कोई सब्सीडी दी ना किसानों पर दबाव डाला। इसके अलावा उन्होंने इसे निपटाने के लिये को ऐसा विकल्प भी नहीं सुझाया जिससे प्रदूषण को रोका जाय। राजनीतिज्ञ आमतौर पर परितृप्त होते हैं वे किसी भी समस्या को समस्या मानते ही नहीं। या तो विपक्ष की चाल मानते हैं या कोई साजिश। अब हमार पब्र्यावरण मंत्री जी हैं श्री हर्षवर्द्धन जी उनका कहना है कि ये सब पारि​िस्थकी की बात केवल शिगूफा हे, डराने के लिये कही गयी है। यह राजनीतिक वर्ग की पुरानी आदत है। अब कोई पूछे कि यातायत प्रदूषण के बारे में क्या कहते हैं? मोटरगड़ियों के इंजन के लिये तय बी एस 6 का पैमाना क्या हुआ? उसे अबतक लागू नहीं किया गया क्यों? कहा जा रहा है कि इसमें इक साल लग जायेगा। आखिर इतना लम्बा समय क्यों लग रहा है गाड़ियों द्वारा छोड़े गये धुएं के लिये स्टैंडर्ड लागू करने में? सड़कों पर ऐसे भी वाहन हें जिनके इंजन हाईब्रिड हें वे तेल वे तेल से कम और बिजली से ज्यादा चलते हैं। दशकों से पर्यावरणविद " क्लीन " पेट्रोल और डीजल की बात कर रहे हैं ताकि वाहनों से होने वाले प्रदूषण में कमी आ सके। अन्य देशों में " क्लीन " वाहन खरीदने के लिये सब्सीडी दी जाती है। भारत में इेसी कोई नीति नहीं है। 10 साल या पुरानी कारों को हटाने की बजाय किसी अन्य राज्य में बेच दिया जा रहा। इसका मतलब है कि प्रदूषण स्थांनतरित हो जाता है समाप्त नहीं होता। 

यहां तक कि सिंगपुर जैसे छोटे देश में भी प्रदूशण को लेकर शिकंजा कसा हुआ है। कमर्शियल 

वाहनों पर पर्यावरण टैक्स है और वाहन के धयें पर जबरदसत निगरानी है। शहर के व्यस्त क्षेत्रों में जाने वाले ड्राइवरों को अलग से टैक्स चुकाना पड़ता है। खुले में आग जलाना सख्त मना है। यहां तक प्रदूषण को और कम करने के लिये नीतियां बनायी जा रहीं हैं। यह देख कर लगता है कि हमारे देश में प्रदूषण को लेकर प्रतिबद्धता की भारी कमी है। कई राजनीतिज्ञ तो यह मानते हैं कि प्रदूशण का यह जो मामला है वह अस्थाई और बिल्कुल गंभीर नहीं है। एन जी टी ने बहुत कोशिश की है क्योंकि इसके पास व्यापक अधिकार नहीं हैं। राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में एन जी टी की पीठ बनाये जाने की जरूरत हे। पर्यावरण कानूनों को और कठोर बनाया जाना चाहिये। इसके लिये भारी जुर्माने की जरूरत है। दिल्ली राजधानी क्षेत्र में जो वर्तमान समस्या है वह गंभीर चेतावनी है। भारतीय मेडिकल एसोसियेशन ने चेतावनी दी हे कि यह बहुत खराब ​िस्थति है। डाक्टरों ने बच्चों को स्कूल जाने से मना किया है। लेकिन इसपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यहां यह जरूरी है कि देश का समाज इसमें हस्तक्षेप करे। मुहलले के लोग , कल्याण संगटन और अन्य नागरिक संनों को कि वे प्रदूशण कम करने के उपायों को लेकर सक्रिय हों। एक व्यापक आपदा को रोकने के लिये तत्काल कार्रवाई जरूरी है। इसके पहले डेंगू ओर सेरेब्रल मलेरिया जैसे मच्छड़ जनित रोगों के बारे में सब जगह विस्तृत चेतावनी दी गयी है। हमारे देश में सबसे कमी है कि यह मौसम गुजर जायेग्ग तो समस्या को भी लोग भूल जायेगे। एक कहावत है कि जो लोग इतिहास से नहीं सीखते वे दुबारा उससे गुजरते हैं।

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