भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ
अभी हाल में एक सर्वे के जो ढांचागत सुधार किये हैं आज उसका परिणाम मिलने लगा है। सरकार ने सर्वे के इस नतीजे को खूब प्रचारित किया गया। यहां तक कि प्रधानमंत्री जी नीं इसी दम पर विदेशी निवेशकों को भारत बुलाया। लेकिन हाल में एक संस्था के सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा लोग भुखमरी के शिकार हैं और आज भी लोग भूखे पेट सोते हैं। 119 देशों में भारत 100वें पायदान पर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्कोर 31.4 है, जो कि ‘गंभीर श्रेणी’ में आता है।रिपोर्ट के मुताबिक चीन 29वीं , नेपाल 72वीं , म्यांमार 77वीं, श्रीलंका 84वीं और बांग्लादेश 88वीं रैंक पर है। साल 2014 की रैकिंग में भारत 55वें पायदान पर था। कोई बी देश अपब्नी मर्जी से किसी रिपोर्ट का चयन नहीं कर सकता है। वह यह नहीं कह सकता कि उसके बारें में सकारात्मक रिपोटं सही है और नकारात्मक रपट गलत। अभी कुछ दिन पहले पिउ रिसर्च सेंटर ने लिखा था कि भारत के स्कूयों का स्तर दुनिया में सबसे खराब है। अब अमरीकी संस्था " इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आई एफ पी आर आई ) " ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स तैयार किया है। इसमें 119 देशों को शामिल किया गया है और उन 119 देशों में से 100 वां है जबकि 2016 के इंडेक्स में इसका स्थान 100 वां था। यह इक ऐसी खबर है जिसपर चर्चा होनी ही चाहिये। कुछ अफसरों ने इस रिपोर्ट की खिल्ली भी उड़ायी है, इसे अर्द्ध सतय कहा गया है और कई लोगों ने उस संस्था की साख पर भी उंगली उठायी है। कुछ लोगों का कहना है कि यह कुपोषण और विकास की कमी के बारे में बताता है, भूख नहीं। 2017 की भूख सूची में भारत का स्थान युद्ध से दग्ध ईरान और दुनिया भर में कुजात छंटे उत्तर कोरिया से पीछे है। एशिया के महज दो देश अफगानिस्तान और पाकिस्तान का रैंक भारत से नीचे हे। भारत अब खाद्य के मामले में सियेरा लियोन, मेडागस्कर , चाड, और यमन आगे है। सभी देशों में एक दलीय लोकतंत्र है या कह सकते हैं कि वहां परोक्ष तानाशाही है। हाल के महीनों में कई देसी और विदेशी शोधों ने जी एच आई की रिपोर्ट की प्रमाणिकता को सिद्ध करते हैं। भारत में अशिक्षा के मामले में विश्व बैंक की एक रपट में थॉमस पिकेरी ने लिखा है कि भारत की कुल आबदी का शीर्ष 0.1 प्रतिशत भाग की विकास में वही हिस्सेदारी है जो निम्न 50 प्रतिशत की। ए एस ई आर ने तो लगातार भारत में प्राइमरी शिक्षा की खस्ता हाली पर चर्चा की है और बताया है कि इन मामलों में भारत की स्थिति कितनी नाजुक है। यही नहीं आम आदमी की दुरावस्था के बारे में सरकार से तकाजा करने वाली रपटों का अभाव नहीं है। यह संयोग नहीं है कि दुनिया के जो भी देश शीर्ष आर्थिक और सामाजिक स्तर पर दर्ज हैं उन देशों में ऊंची क्वालिटी की शिक्षा , सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण भी प्रचुर है। हमें मुगालते में नहीं रहना चाहिये या कहें कि खुद को बेवकूफ नहीं बनाना चाहिये। यह मुगालता कि हम विश्व शक्ति बनने की होड़ में शामिल हैं बिल्कुल उसी तरह है जैसे कोई खच्चर खुद को रेस का घोड़ा समझने लगे। मौजूदा खतरनाक सामाजिक और इंसानी दुर्दशा एक दिन में नहीं हुई है। यह भ्रष्ट उस भ्रष्ट राजनीतिक सिस्टम का परिणाम है जो कुछ निर्वाचित लोग चला रहे हैं। जिन लोगों को देश की सत्ता पांच दशकों से सौंपी गयी है वे लोग जानबूझ कर ए ेसी नीतियों को लागू कर रहे हैं जो शासक वर्ग को मुफीद हो। मानवीय मामलों में खासकर शिक्षा के ढांचे या सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे मामले एक दिन या कुछ हफ्ते या दो चार सालों में ना सुधरते हैं ना बिगड़ते हें। अभी देश में जो हालात हैं शिक्षा, स्वास्थ्य पर्यावरण, शिशु पालन और कृषि के उनहें देखते हुये कहा जा सकता है कि इससे सम्बंधित मंत्रालयों को यदि कुछ महीनों के लिये बंद भी कर दिया जाय तो कोई असर नहीं पड़ने वाला। यकीनन, इस खराब स्थिति के लिये वर्तमान सरकार को दोषी बताना बहुत जल्दीबाजी कही जायेगी, पर अकर्मण्यता की जो स्थिति है उससे जाहिर होता है कि अगले चुनाव के बाद 2024 तक यह सरकार खुदबखुद सारे दोष अपने ऊपर ले लेगी किसी को दोष लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हाल के दिनों में बड़ी आर्थिक नीतियां अपनायीं गयीं। जैसे नोट बंदी। नोट बंदी के बार में कुछ कहने से पहले यह तो मानना होगा कि सरकार ने स्वीकार किया कि देश में कालाधन है। दुनिया की कोई अर्थव्यवस्था समानांतर अर्थव्यवस्था को नहीं झेल सकती। जी एस टी अगले पांच वर्षो में बदलाव ला सकता है और डिजीटल इंडिया कार्यक्रम प्रशासन को सक्षमता से चला सकता है पर निहित स्वार्थी ततवों से इसे बचाये रखना होगा। सामाजिक क्षेत्रो में सुधार लाने होंगे और जैसे यह सब हुआ सरकार पर जन का भरोसा कायम हो जायेगा। सभी मानते हैं कि लोकतंत्र में आम आदमी की जरूरतों को प्राथमिकता मिलनी चाहिये। जब तक ऐसा नहीं होगा बदलाव नहीं आने वाला।
0 comments:
Post a Comment