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Saturday, November 18, 2017

धर्म का  कारोबार ‘ और  नकली शंकराचार्यों का उत्पादन

धर्म का  कारोबार ‘ और  नकली शंकराचार्यों का उत्पादन

हरिराम पाण्डेय

सनातन धर्म , जिसे निहित स्वार्थ के कारण हिन्दू धर्म कहा जाने लगा है , के लिए शंकराचार्य का वही महत्त्व है जो इसाईयत में पोप के लिए है. भारतीय संस्कृति  के विकास एवं संरक्षण में आद्य शंकराचार्य का विशेष योगदान रहा है. आचार्य शंकर का जन्म पश्चिम के इतिहासकार समुदाय के द्वारा वैशाख शुक्ल पंचमी तिथि ई.सन् 788 को तथा मोक्ष ई. सन् 820 स्वीकार किया जाता है, परंतु महाराज सुधन्वा चौहान, जो कि शंकर के समकालीन थे, उनके ताम्रपत्र अभिलेख में शंकर का जन्म युधिष्ठिराब्द 2631 शक् (507 ई०पू०) तथा शिवलोक गमन युधिष्ठिराब्द 2663 शक् ( 475 ई०पू०) सर्वमान्य है। इसके प्रमाण सभी शांकर मठों में मिलते हैं. इन्हें आदि शंकराचार्य कहते हैं और इन्होने ही देश कि चारो दिशाओं में चार शंकर पीठों कि स्थापना की  और व्यवस्था दी  कि  ये चारों संत शंकराचार्य कहे जायेंगे और सनातन धर्म के विकास और उसमें समय – समय पर उठने वाले विवादों को चारों कुम्भ में एकत्र होकर  दार्शनिक ढंग से मिटाने की  व्यवस्था करेंगे. ये चार पीठ थे उत्तर में बदरीनाथ, दक्षिण के कर्णाटक के चिकमंगलूर जिले में श्रृंगेरी, पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में शारदा पीठ और पूर्व में पूरी में गोवर्धन पीठ. बाद में दो और उपपीठ बने काशी जहां शंकराचार्य रहते थे और तमिलनाडु के कांची जहां वे पैदा हुए थे. इन पीठों में अत्यंत संगठित पदानुक्रम हैं जो पुजारी से आरम्भ होकर शंकराचार्य तक है. बीच में होते हैं क्रमशः महंत, आचार्य और महामंडलेश्वर.

कौन हो सकता है शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य द्वारा रचित “ महानुशासन “ के अनुसार शंकराचार्य वही हो सकता है जो ब्राह्मण हो, विद्वान् हो, वेदों - शास्त्रों का ज्ञाता हो , दंडीस्वामी हो और शंकराचार्य का शिष्य हो. मठमान्य उपनिषद में शंकराचार्यों के चयन की  अचूक विधि का उल्लेख है. परम्परा  के अनुसार शंकराचार्य अपने जीवन काल में ही अपना वारिस घोषित कर देंगे जिसे बाद में काशी विद्वत परिषद् और अखिल भारत धर्म महामंडल स्वीकृति दे देता है. अगर कभी शंकराचार्य  अपने जीवन काल में अपना वारिस नहीं घोषित कर पाए तो काशी विद्वत परिषद् के महा साचिव बटुक प्रसाद शास्त्री के अनुसार परिषद्  पहले वाले शंकराचार्य के शिष्यों में से किसी एक  का चयन कर उसे शंकराचार्य नियुक्त कर देता है. कशी विद्वत परिषद् 150 वर्ष पुरानी संस्था है और फिलहाल उसके 35 सदस्य जीवित हैं. किसी भी विवाद के समय परिषद् का निर्णय अंतिम होता है और दोनों पक्षों को मान्य होता है.

शंकारचार्य को प्राप्त प्रतिष्ठा  और उनके प्रति घोरतम श्रधा को देखते हुए कई लोगों का मन ललचाने लगा. आपराधिक वृत्ति वाले धूर्त लोगों ने भारत में धर्म के प्रति आस्था का लाभ उठाकर खुद को भी शंकराचार्य घोषित करवाने कि दुरभिसंधि आरम्भ की. आस्ठ कि बाढ़ और सत्य कि जानकारी के अभाव में यह समझना कठिन हो गया कि कौन असली शंकराचार्या है और कौन नकली. 6 पीठ से दनादन कई पीठ घोषित हो गए. यहाँ तक कि पकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी एक पीठ घोषित कर दिया गया. नतीजा यह हुआ कि कुल 46 शंकराचार्य देश में दिखने लगे.  गुरमीत राम रहीम के बवाल के बाद अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरी  ने अधिकृत तौर पर 14 नकली शंकराचार्यों कि सूची जारी की थी. इस सूची में सुखविंदर उर्फ़ राधे माँ और बियर बार के मालिक सचिन दत्ता के भी नाम थे. मजे कि बात है कि इन्हें नरेंद्र गिरी ने ही महा मंडलेश्वर बनाया था. इस सूची में रामपाल , निर्मलप्रीत सिंह उर्फ़ निर्मल बाबा , आशुमल श्रीमलानी उर्फ़ आशाराम  बापू और उनके पुत्र नारायण साईं , असीमा नन्द , शिवमूर्ति द्विवेदी उर्फ़ इच्छाधारी बाबा, भीमानंद, विवेकानंद झा उर्फ़ ओम जी, वृहस्पति गिरी , कुश मुनि , ओम नमः शिवाय बाबा और मलकान गिरी. इनमें से कई गिरफ्तार भी हो चुके हैं.

गड़बड़ कैसे हुई

अब धर्म का धंधा करने वाले निहित स्वार्थी तत्वों ने पहले तो काशी विद्वत परिषद् से मिलते  जुलते नाम वाली तीन संस्थाएं खोल ली. ये संस्थाएं हैं वाराणसी विद्वत परिषद् , वाराणसेय विद्वत परिषद और अखिल भारतीय विद्वत परिषद्.कुछ लोगों प्रयाग विद्वत परिषद् भी बना लिया. अब शंकराचार्य के चयन के लिए इतनी अचूक विधि है तो गौरीशंकर शुक्ल और सुधाकर द्विवेदी जैसे धूर्त लोगों ने कैसे इसमें चोर दरवाज़ा  खोज लिया? बटुक शास्त्री बताते हैं कि काशी विद्वत परिषद् के उपाध्यक्ष रामजतन शुक्ला  और परिषद् के प्रवक्ता शिवजी उपाध्याय ने उनसे ( बटुक शास्त्री से ) भेट की. उनके साथ राजेश पचौरी भी थे. उन्होंने अनुरोध किया कि सुधाकर द्विवेदी उर्फ़ स्वामी अमृतानंद  को जम्मू पीठ का  शंकराचार्य घोषित करने के लिए परिषद् की  बैठक बुलाएं. उनका दावा था कि परिषद् के आधे सदस्यों का उन्हें समर्थान प्राप्त है.  परन्तु शास्त्री जी ने इनकार कर दिया क्योंकि जम्मू में कोई पीठ ही नहीं है और दूसरे कि द्विवेदी की दो पत्नियां हैं और उनका इस सम्बन्ध में मामला भी कोर्ट में चल रहा है. शास्त्री जी के इनकार पर इन लोगों ने वाराणसेय विद्वत परिषद् के नाम से एक समानांतर परिषद् का गठन कर लिया और द्विवेदी को जम्मू पीठ का शंकराचार्य घोषित कर दिया. बबाद में मालेगांव बम विस्फोट काण्ड में आतंकवाद विरोधी दस्ते ने सुधाकर द्विवेदी उर्फ़ अमृतानंद को गिरफता कर लिया तबसे उसका दोस्त राजेश पचौरी फरार है और राम जतन  शुक्ला का कहना है कि उसने इस तरह कि कोई बैठक नहीं बुलाई थी और शिवजी उपाध्याय का कहना है कि वे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति कि हसियत से उस बैठक में आये थे और इसके लिए कोई शुल्क भी नहीं लिया था.   

            सभी पीठों के शंकराचार्य के पद को लेकर कोई ना कोई झगडा चल रहा है. गोवर्धन पीठ , पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद अधोक्षानंद के  पुरी में प्रवेश पर रोक लगाई. अब भी  अधोक्षा नन्द घूम घूम कर खुद को गोवर्धन पीठ का असली शंकराचार्य कहता चल रहा है. यही नहीं ज्योतिष्पीठ को लेकर भी विवाद उठा था . वासुदेवा नन्द सरस्वती ने इस पीठ का शंकराचार्य होने का दवा किया था और लम्बी अदालती लड़ाई के बाद इलाहाबाद सिविल कोर्ट के न्यायाधीश गोपाल उपाध्याय ने उनके दावे को खारिज करते हुए उन्हें नकली साधु बताते हुए  स्वामी स्वरूपा नन्द सरस्वती को उसका अधिकारी घोषित किया. उप पीठों के लिए कोई झगडा नहीं है.

इससे कैसे मुक्ति मिले

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद का कहना है कि नकली साधुओं कि पोल खोलने के लिए देश भर में अभियान चलाया जाना चाहिए. उनके सहायक स्वामी गोपलानंद का कहना है कि वे इस बारे में सभी आचार्यों से बातचीत करेंगे कि ऐसे नकली साधुओं पर रोक लगाएं . इनके विरुद्ध कानूनी करवाई कि संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि वे इस मामले में सभी माधवाचार्य , निम्बर्काचार्य , रामानुजाचार्य और रामानान्दाचार्यों को भी साथ ले सकते हैं. इस विवाद में एक महिला संत साध्वी त्रिकाल भावंता सरस्वती ने नया अध्याय जोड़ दिया. उन्होंने दावा किया कि उन्हें गायत्री त्रिवेणी पीठ का शंकराचार्य बनाया जाय.

   इससे स्पष्ट होजाता है कि मठों की  दौलत पर कब्जा करने के लिए पापी प्रवृति के लोग सक्रिय हैं और खुद सनातन धर्म के भीतर की  हालत  भी दिनोंदिन  ख़राब होती जा रही है. नकली संतों कि भरमार और उनपर  खून , ह्त्या , बलात्कार के मामले तो बस दिख रहे हैं, छिपे हुए ना जाने कितने हैं, कहा नहीं जा सकता है.   

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