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Sunday, December 24, 2017

2 जी : फायदा किसे हुआ

2 जी : फायदा किसे हुआ

किसी भी प्रकरण के सुखांत की कई कहानियां देश में प्रचलित हैं। यही नहीं, हमारी जांच एजेंसियां लोगों को फंसाने और फंसे लोगों को निकालने के हुनर में महारत हासिल कर ली है। 2 जी घोटाले में जज की प्रतिकूल और बिल्कुल स्पष्ट टिप्पणी के बावजूद यह भारतीय विकास के इतिहास में अकेली कहानी है। बोफोर्स ओर अन्य घोटालों से यह बिल्कुल अलग है। यह हेनरिक गोयबल्स की उस अक्ति को एक बार फिर साबित कर दे रही है कि " एक झूठ को अगर सौ बार बोला जाय तो वह सच लगने लगता है। " 2जी घोटाले के जज ने भी इसी का प्रकारांेतर से समर्थन किया। उनहोंने कहा कि " सब लोग पब्लिक परसेप्शन " से चल रहे थे। आखिर ऐसा क्यों? हम अक्सर किसी टिप्पणी या दलील को महज इसलिए स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि वे हमारी परंपरागत मान्यताओं के अनुरूप होती हैं। ऐसा करते वक़्त हम न तो इनके पीछे के तर्कों की परवाह करते हैं, न दावों की प्रामाणिकता जांचने की ज़हमत उठाते हैं। दर असल बहस करने में कुशल लोग ‘सत्य की तरफ़ नहीं होते’ बल्कि साधारण तौर पर सिर्फ़ उन दलीलों के पक्ष में होते हैं, जो उन्हें सच लगती हैं या जिसे वे सत्य के तौर पर मनवाना चाहते हैं। आज का वातावरण कुछ ही होता जा रहा है और यही कारण है कि इस घोटाले ने न केवल देश के नीति के वातावरण में आलोड़न पैदा कर दिया बल्कि व्यवसाय के मेट्रिक्स में परिवर्तन कर भारतीय दूर संचार के बाजार को ही पलट दिया। कुछ लोगों ने चालाकी​ से चुनिंदा तथ्यों  का इंतजाम किया और ााोटाला पैदा कर दिया। जबकि कुछ हुआ ही नहीं था।

दूसरा अपवाद यह है कि " पिंजड़े में बंद तोते " सरकार के सीधे नियंत्रण में हैं और मंत्रालयों के साथ उनका तालमेल है। अतएव सरकार का यह जो बार- बार ढोल पीटना कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जायेगा बिल्कुल बेकार है, निरर्थक है, एक ढकोसला है। यह संभवत: पहला राजनीतिक घोटाला है जिसमें जज ने अपनी टिप्पणी को बिना घुमाये फिराये सााफ कह दिया कि " अभियोजक पक्ष को यह मालूम ही नहीं था कि वह क्या साबित करना चाहता है। वह एकदम क्षीण हो चुका है और दिशाहीन भी। " सोचने वाली बात है कि यह एक ऐसा मामला था जिसने देश में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया और साथ ही दूरसंचार क्रांति की दिशा भी बदल दी। यह शायद पहला मामला था जब सब कोई यहां तक कि सी बी आई भी गप्प और अटकलबाजियों पर चल रही थी। दिलचस्प यह है कि  सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामले में  122 टेलीकम लाइसेंस रद्द कर दिये जिसमें अभियोजन पक्ष को मालूम ही नहीं कि साबित क्या करना है। पांच साल तक सी बी आई के ये लोग मामूली सुराग भी नहीं जुटा पाये। अब यहां जो सबसे बड़ा प्रश्न है जिसे कोई पुछने की हिमाकत नहीं कर रहा कि ऐसे मामले में देश का दूरसंचार परिदृश्य दहल उठा ओर इस उद्योग के पांच महत्वपूर्ण साल बर्बाद हो गये। कौन दोषी है इस हानि का ? यही नहीं, इस नीलामी में बोली लगाने वाले या या इसमें पूंजी लगाने वाले जिनका लाइसेंस 2012 में रद्द कर दिया गया , उसके लिये जवाबदेह कौन है? नेता ओर अफसर तो छूट गये पर इसमें जिनकी पूंजी डूबी या जिनका रोजगार गया उसके लिये जिममेदार कौन है? इस घोटाले के कारण भारत में निवेश की साख डूब गयी और हालत यह हो गयी कि उसके बाद से देश में कोई भी बड़ी विदेशी टेलीकम कम्पनी नहीं आयी। जिनका लाइसेंस रद्द हो गया वे अपनी जमा पूंजी यहां दूसरी देसी कम्पनियों को बेच कर बिस्तर बांदा लिये। नीलामी के पहले देश में तीन चार देसी कमपनियां थीं और 2012 के बाद भी यही कुछ रहा। नतीजा यह हुआ कि स्पेक्ट्रम की उपलब्धता के बावजूद टेलिकम सेवा और बिगड़ती गयी। टेलिकम भारत मी शानदार सफलता और गंदे घोटालों की कहानी है। अगर 2जी घोटाला नहीं था तो जांच एजेंसियां , राजनीतिज्ञ और न्यायपालिका ने क्यों देश के विकास के पांच बेशकीमती साल बर्बाद किये? ... और सबसे बड़ा सवाल जिसे पूच जाना जरूरी है कि इस सारे मामले के कारण लाभ किसे हुआ, यही नहीं कि इससे किसको लाभ हुआ। 

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