इसकी क्या जरूरत है?
तवायफ की तरह अपनी गलतकारी के चेहरे पर,
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का पर्दा डाल देती है।
कैसा जमाना आ गया है , जो लोग देश को विकसित करने का जिम्मा उठाये हुये हैं या जो आम जनता को यह विश्वास दिलाने में लगे हैं कि वे जाति पांति के भेद से उपर उठे हुये इंसान हैं वही आज मुल्क में जातियों का झंडा बड़ी चालाकी से उठाये फिर रहे हैं। अभी गुजरात में चुनाव प्रचार चल रहा है ओर वक्त के हाकिम हमारे प्रधानमंत्री जी की पार्टी राहुल गांधी से पूछ रही है कि वे किस जाति के हैं- हिंदू हैं, पारसी हैं या कैथोलिक इसाई? राहुल भी नर्वस नजर आ रहे हैं। वे भूल रहे हैं और उनका भूलना आश्चर्यजनक है कि कांग्रेस की बुनियाद धर्म निरपक्षिता है। क्या कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के मायने भूल गयी? हाल के दिनों मेंजितने भी चुनाव प्रचार हुये उनमें गुजरात का चुनाव प्रचार सबसे ज्यादा उत्तेजक है। गुजरात के राजनीतिक आचरण का विश्लेषण करें तो एक बात सामने आयेगी कि साधारणतया गुजरात के राजनैतिक नेता एक ही तरह के हैं और वैचारिक रूप में भी मोटा- मोटी समान हैं। अब वे किस पार्टी में शामिल होते हैं वह इस बात पर मुन्हसर करता है कि उनके अनुमान में कौन सी पार्टी जीत रही हे। अब जबसे कांग्रेस ने 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के लिये नरेंद्र मोदी को घेरना शुरू किया तो एक नयी तस्वीर उभरने लगी। हवालांकि बहुतों को होगा कि कांग्रेस ने 2007 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ र्मौत का सौदागर जुमला उछाला था लेकिन वह कारगर नहीं हो सका। इसके बाद मोदी जी कि पार्टी 2012 का भी चुनाव जीत गयी। अतएव इस बार कांग्रेस हिंदुत्व का बड़ा ही नरम दांव चल रही है। राहुल गांधी हर मंदिर में जाते हैं बड़ी धूम धाम से पूजा करते हैं ऐसा किसी नेता ने अबतक नहीं किया। केवल उस समय को छोड़ कर जब यू पी ए के चार कैबिनेट मंत्री बाबा रामदेव को बधायी देने दिल्ली एयरपोर्ट गये थे। लेकिन गुजरात में हिंदू वोट के लिये बुरी तरह जंग छिड़ चुकी है। यही कारण है कि राहुल हिंदु हैं क्या , इस तरह का नकली विवाद के बगूले उठने लगे हैं।यहां एक वित्तम ण्है कि वे मंदिरों के रजिस्टरों में हिंदू या गैर हिंदू की तरह हस्ताक्षर करते हैं। हमें तो यह मालूम नहीं कि हम मुदरों में घुसने समय किसी भी रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं या नहीं। यहां बात है कि कांग्रेस राहुल गांधी के गैर हिुदू के तौर पर हस्ताक्ष्रर को लेकर इतना परेशान क्यों है? कांग्रेस तो जाति निरपेक्ष और धर्म निरपेक्ष पार्टी है। धर्म या पार्टी का उसके लिये अर्थ नहीं रखती। यहां कांग्रेस एक साधारण ट्रिक भूल रही है। उसे बहुत ही फख्र से एलान करना चाहिये कि वह घेषणा कर दे कि का राहुल बहुजातयिता का प्रतिनिधी है और भारत की विविधता की पहचान है। इसके खानदान को देखें, इसके दादा पारसी थे और पिता आधा हिंदू और आधा पारसी। उनकी शादी सोनिया जी से हुई थी जो ईसाई थीं। अतएव राहुल एक हिंदू है., पारसी हैं और ईसाई हैं। देश मेंं शायद ही कोई पार्टी है जिसमें इतनी विविदाता है। यही नहीं धर्मनिरपेक्षता कांग्रेस की नीति का आधार रही है तब उसका नर्वस होना समझ में नहीं आया। यहां एक और महत्वूर्ण बात है कि हर धर्म का उपासनास्थल लोगों को अपनी ओरकिर्षित करते हैं। देश के कई चर्च , कई गुरूद्वारे और कई मजार में सभी धर्म कें लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। जकिसी भी जगह कोई रजिस्टर नहीं रखा है। किसी भी गुरूद्वारे, चर्च , मस्जिद या मंदिर में जाने के लिये किस ऐसे रजिस्टर की जरूरत नहीं है। यह प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि वह घोषणा करें कि धर्म का उल्लेख जरूरी नहीं है।
बस तू मिरी आवाज़ में आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता
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