भाजपा अब अपराजेय नहीं रही
गुजरात ओर हिमाचल प्रदेश विधान सभाओं के परिणाम आ चुके हैं। लेकिन इस बार की जीत उतनी बड़ी नहीं है जितनी वह 2012 में थी। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को 115 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार पार्टी 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई। गुजरात में सरकार बनाने के लिए 92 सीटें चाहिए और इस नाते भाजपा को पर्याप्त सीटें मिल गईं।लेकिन इन परिणामों में भाजपा को आगाह करने वाले कुछ संकेत भी छिपे हैं। ये परिणाम बताते हैं कि भाजपा की ओर से जो भी किया जा रहा है, वह सब ठीक नहीं है और लोगों में भाजपा की अगुवाई में चलने वाली सरकारों की नीतियों के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है। ऐसे साथ ही इन परिणामों ने यह प्रमाणित कर दिया कि भाजपा अब अपराजेय नहीं रही ओर कांग्रेस के लिये अम्मीदें कायम हैं ही नहीं हैं बल्कि बढ़ी हैं। यही नहीं इन दोनों चुनावों के परिणाम 2019 के लोकसभा चुनाव की दिशा की ओर भी इशारे कर रहे हैं। इन दोनों चुनावों में एक खासबात यह दिखी कि हिमाचल में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार चुनाव हार गये और गुजरात में नरेंद्र मोदी के गृह चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस चुनाव जीत गयी। यहां यह जानना जरूरी है कि गुजरात चुनाव के परिणाम क्या कहते हैं? संदर्भ के लिये यह बोदा थोड़ा जटिल है। गुजरात मॉडल की बड़ी चर्चा थी कि यह कृषि और सवौंगीण विकास की दर दो अंकों में ले जायेगा। अलबत्ता यह मानव विकास ओर स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। अब विश्व बैंक की इक रप/ बताती है कि गुजरात में गरीबी उन्मूलन की दर कई और विकसित राज्यों की तुलना में कम है लेकिन राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। राज्य में 42 प्रतिशत शहरी क्षेत्र पूंजी औंर श्रम के नजरिये से उद्योगीकृत हैं। राज्य में प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 38 हजार 23 रुपये बताये जाते हैं। लेकिन गुजरात में गुस्सा ओर चिंता साफ साफ दिख रही है। मतदाताओं की उम्मीदें आवश्यक और पर्याप्त स्थिति यानी क्या है और क्या होना चाहिये के मध्य में टिकी है।गुजरात में शहरी सीटों पर भाजपा को बेहद मजबूत माना जाता था। इस बार कांग्रेस ने भाजपा के इस किले में सेंध लगाई है। इसके बावजूद इस बार भी अधिकांश शहरी सीटें भाजपा को ही गई हैं। लेकिन भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में पहले के मुकाबले और कमजोर हुई है। गुजरात में भाजपा को आदिवासी समाज का वोट पूरी तरह से मिला है और आदिवासी क्षेत्रों से आई सीटों ने ही गुजरात में भाजपा की सत्ता बरकरार रखने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और खास तौर पर सौराष्ट्र-कच्छ के ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस की सीटें इस बार बढ़ी हैं।यह भी साफ जाहिर है कि जो मसले या मुद्दे चुनाव के दौरान बताये गये थे वही मसायल कमोबेश मुल्क के सामने भी कायम है।लघु ही विराट के रुप में परिलक्षित है। गुजरात में पाटीदारों के आंदोलन और इसका प्रभाव राष्ट्रीय संकट की ओर इशारा कर रहा है। गुजरात में पटेलों के आरक्षण के आंदोलन का सुर मराठों, जाटों और कापासों के आरक्षण आंदोलनों से मिलता है।यह सही है कि कभी के सामाजिक और राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली ये समुदाय नवीन राजनीतिक समीकरण के बाद हाशिये पर ठेल दिये गये से महसूस कर रहे हैं। यह इस बात का संकेत है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य की विजय रुपाणी सरकार की नीतियों को लेकर गुजरात के गांवों में बहुत उत्साहजनक माहौल नहीं है। जिस गुजरात में पिछले 22 साल से भाजपा की सरकार है, अगर वहां यह स्थिति है तो फिर दूसरे राज्यों के गांवों में भी ऐसी स्थिति की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा को आने वाले दिनों के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए गांवों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए काम करना होगा। यह भी सही है कि किसान समुदाय की जातियां आरक्षण की मांग कर रहीं हैं क्योंकि कृषि अब दिनोदिन अव्यवहारिक होती जा रही है। सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का घटता अनुपात साफ साफ दिख रहा है। यह कहना ही पर्याप्त होगा कि 10 में से 6 भारतीय इस 15 प्रतिशत राष्ट्रीय आय पर निर्भर है। अब इसका तो असर होगा ही। गुजरात का रूदन देश के हर भाग से प्रतिध्वनित होगा। कृषि संकट आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक स्थायीत्व के लिये संकट है। कृषि आय में कमी ग्रामीण ओर शहरी आय श्रोतों में विविधताओं में स्पष्ट दिखता है। उदारीकरण के लगभग 25साल के बाद भी कृषि क्षेत्र मनमाने लाइसेंस राज में पड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि 2016-17 के रोजगार क्षेत्र के आंकड़े अपूर्ण हैं। यकीनन 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में मार्च 2012 के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। यह तो सर्वविदित है कि 2014 के चुनाव में मोदी जी की विजय में नौजवानों की भूमिका प्रमुख रही है।रोजगार का मामला गुजरात में एक मुद्दा है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने अपना पूरा अभियान नरेंद्र मोदी के विकास के गुजरात मॉडल पर हमला करने के आसपास केंद्रित रखा। लेकिन आखिरी दौर आते-आते भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धार्मिक मुद्दों को बेहद प्रमुखता से चुनावी सभाओं में उठाना शुरू किया। इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर व्यक्तिगत हमले किए गए। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर व्यक्तिगत हमले खुद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किए। लेकिन इसके बावजूद गुजरात में भाजपा को बड़ी जीत नहीं हासिल हो पाई। आम लोगों के मुद्दों पर जिस तरह से कांग्रेस ने भाजपा को घेरा उससे यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा को आने वाले दिनों में होने वाले चुनावों में कांग्रेस और उसकी अगुवाई में पूरा विपक्ष कड़ी टक्कर देने की स्थिति में आ रहा है।
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