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Wednesday, December 20, 2017

फिर धीरे धीरे यहां का मौसम  बदलने लगा है

फिर धीरे धीरे यहां का मौसम  बदलने लगा है

पप्पू से लेकर विधर्मी तक का सफर करता हुआ गुजरात चुनाव मुकममल हो गया। अब चुनाव परिणामों पर सीधी बातचीत हो सकती है और बातें चल भी पड़ीं हैं। हर कोण से लोग बतिया रहे हैं। भारतीय चुनाव की सबसे बड़ी खूबी है कि चुनाव चाहे जहां हो देश का लगभग हर नागरिक इसमें शरीक हो जाता है। करोड़ों लोग तो फकत मानसिक तौर पर। लेकन यहां बिल्कुल सीधी बात है। इस चुनाव को देखकर इकबाल का वह शेर भ्रामक लगने लगा हे जिसमें उन्होंने कहा है कि, 

जम्हूरियत एक तर्जे हुकूमत है कि जिसमें  

बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते

इसबार के गुजरात चुनाव में न केवल बंदे गिने गये पर बंदों ने अपने नेताओं को तौला भी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पहली परीक्षा में अच्छे नम्बरों से पास होगये। गुजरात में छठी बार भी सत्ता में आने में कामयाब भाजपा का रिकार्ड कुछ वैसा ही है जैसा कि पश्चिम बंगाल में कभी सी पी​ एम का हुआ करता था और हिमाचल प्रदेश में भाजपा का आना ठीक वैसे ही है जैसे केरल में हुआ करता है। वहां हर दूसरे चुनाव में सत्तारूढ़ दल बदल  बदल जाया करते हैं। इस चुनाव के नतीजों से एक ही संदेश जाता हे कि प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी को सोचना होगा और  राहुल गांधी के मुस्कुराने का सबब पूरा है। राहुल हार कर भी जीत गये हैं तथा मोदी जीत कर भी हार गये हैं। गुजरात चुनाव प्रचार में कई जन सभाओं में मोदी के प्रमुख सिपहसालार अमित शाह ने खम ठोंकर कहा था कि उनकी पार्टी को 180 सीट वाली गुजरात विधान सभा में 150 से ज्यादा सीटें आयेंगीं। वे 2019 के लिये टोन सेट कर रहे थे। लेकिन भाजपाा को मिली महज 99 सीटें। क्या विडम्बना है कि वह तीन आंकों की पहली पायदान पर पहुंचते - पहुंचते अटक गयी। अब नरेंद्र मोदी को 2018 के कर्नाटक , मध्यप्रदेश , छत्तीस गड़ ओर राजस्थान के विधान सभा चुनावों के बारे में सोचना होगा। भाजपा के हिमाचल प्रदेश में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस देश के केवल चार राज्यों में रह गयी है ओर इसलिये 2018 के चुनाव में भाजपा का दांव बड़ा है। 

उधर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी धीमी गति से ही सही रफ्तार पकड़ रहे हैं। गुजरात चुनाव के मध्य में ही कांग्रेस अध्यक्ष का ताज पहन कर राहुल गांधी ने बहुत बड़ा जोखिम उठाया। गुजरात में कांग्रेस 22 वर्षों से सत्ता से बाहर थी और चुनाव में पार्टी का कोई बड़ा नेता साथ नहीं था। जो कुछ भी हुआ उसका श्रेय अकेले राहुल गांधी को ही जाता है। इसबार कांग्रेस की सीटों की संख्या ही नहीं बड़ी है बल्कि वोट का प्रतिशत भी बढ़ गया है। गुजरात चुनाव से यह साफ पता चलता हे कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा का वोट घट रहा है और कांग्रेस का बढ़ रहा है। 2012 के विधान सभा  चुनाव में कांग्रेस को 39 प्रशित वोट मिले थे , 2014 के आम चुनाव में इसे राज्य में महज 33 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि इस बार उसे 41.4 प्रतिशत वोट मिले। यही नहीं भाजपा की भक्त मंडली ने सोशल मीडिया पर जो उन्हें " पप्पू " की तरह अपमानजनक नाम रखा था, राहुल ने उन लोगों के चहरे पर कालिख पोत दी। साथ ही चुनाव में " गब्बर सिंह टैक्स " जैसी आकर्षक और जनता से जुड़ने वाली शब्दावलि उछालकर उन्हें जवाब भी दिया। यही नहीं बहु प्रचारित गुजरात मॉडल की हवा निकाल देने का श्रेय भी राहुल गांदाी को ही जाता है। जो लोग हंस हंस कर कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते थे वही लोग कांग्रेस पर लगातार हमले करते रहे और हमले का स्तर इतना गिर गया कि बाद में पाकिस्तान से मिलकर साजिश की बात भी होने लगी। यह एक पराजित मानसिकता की पहचान है। राहुल ने गुजरात मॉडल की ऐसी हवा निकाली कि वह राज्य में ही नहीं चल पाया तो देश भर में उसे कैसे भुनायेंगे भाजपा वाले। 

यही नहीं इस चुनाव से भाजपा की कमजोर नस का भी पता चल गया। पजपा आमने सामने के मुकाबले में पिछड़ रही है। उत्तर प्रदेश में या और कहीं उसकी सफलता का रहस्य था बहुकोणीय संघर्ष। गुजरात में आमने सामने की लड़ाई थी और इसमें उसके दम फूल गये। आने वाले दिनों में चार राज्यों में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं और उसमें इस समीकरण की निष्पत्ति देखने को मिलेगी। क्योंकि इन चार राज्यों में भी भाजपा और कांग्रेस आमने सामने है।  इसके साथ ही बड़े- बड़े चैनलों द्वारा किये एग्जिट पोल जैसे बवंडर की विश्वसनीयता भी जाती रही। धर्म के नाम पर पत्ते फेंके गये लेकिन वेबी निष्फल साबित हुये। इस चुनाव से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि बारत बदल रहा है और इस बदलाव में नरेंद्र मोदी को भारत के ह्रदय से निकाल फेंकना असंभव नहीं दिखता।

फिर धीरे धीरे यहां का मौसम  बदलने लगा है

वतावरण सो रहा था अब आंख मलने लगा है

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