लालू का जाना जेल
बिहार के विख्यात चारा घोटाला मामले के दूसरे प्रकरण में भी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ओर राजद के तेज तर्रार नेता लालू प्रसाद यादव को अदालत ने दोषी करार दिया है ओर उन्हे इस मामले सजा की पेशकश की है। सजा की मियाद क्या होगी यह 3 जनवरी 2018 को घोषित होगा। 1991 से 1994 के बीच चारा खरीदे जाने के नाम पर देवघर ट्रेजरी से 89.27 लाख रुपये गलत ढंग से निकाले गये थे। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को भी शामिल किया गया था पर अदालत ने उन्हें निर्दोष करार दिया। इस सजा के साथ यू पी ए दलों के नेताओं के बरी होने का मौसम खत्म हो गया। इसके पूर्व 2जी घोटाले में कांग्रेस और डी एम के के बरी होने और फिर कांग्रेस के आदर्श कांड में बरी होने की घटना ने देश भर में सनसनी फैला दी थी। लालू की सजा का बिहार की सियासत पर भारी असर पड़ेगा। खास कर इस बात पर के 2018- 2019 के चुनावों में गटबंधन के समीकरण में राजद खुद को कैसे शामिल करता है। जैसा कि अदालत ने बताया है कि लालू जब मुख्यमंत्री थे उस समय देवघर ट्रेजरी से 89.27 लाख रुपया नाजायज तरीके से निकाला गया। यह रकम कई करोड़ रुपये के चारा घोटाले की रकम का हिस्सा है। लालू प्रसाद यादव की यह दूसरी सजा है। सजा सुनाये जाने के बाद सिलसिलेवार ट्वीट कर लालू यादव ने कहा कि " पूर्वाग्रही दुष्प्रचार के लिये सच को झूठा, संदिग्ध या अद्धसत्य के रूप में पेश किया जा सकता है, लेकिन पूर्वग्रह और नफरत की यह परत एकदिन जरूर हटेगी और अंत में सत्य ही जीतेगा।" लालू यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुये कहा कि " धूर्त भाजपा अपनी जुमलेबाजी ओर कारगुजारी को छुपाने के लिये विपक्ष का पब्लिक पसेंप्शन बिगाड़ने के अनैतिक और द्वेष की भावना से ग्रस्त गंदा खेल खेलती है।" पहली सजा 2013 में सुनायी गयी थी। यह मामला चाईबासा ट्रेजरी से रुपया निकाले जाने का था। दिलचस्प बात यह है कि इनदिनों संदेहास्पद एजेंसी सी एजी ने ही इस घोटाले को पकड़ा था। उस समय महा लेखा परीक्षक थे टी एन चतुर्वेदी। यह धोखाधड़ी का यह प्रकरण 1985 में शुरू हुआा और लगभग 10 साल तक चला। इसमें खर्चे की फर्जी रिपोर्ट जमा कर सरकारी खजाने से लगभग 900 करोड़ रुपये उड़ा लिये गये। 2013 में जब लालू यादव को सजा सुनायी गयी उस समय के बाद से ही वे सक्रिय राजनीति से बाहर हो गये। उनके चुनाव लड़ने से रोक लग गयी। हालांकि बिहार विधानसबा चुनाव में राजद को भारी विजय मिली थी। इसके फलस्वरूप उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया। वह कठपुतली मुख्यमंत्री थीं और लालू परदे के पीछे से डोर खींचते थे।यह सब 2005 तक चला। इसके बाद नौजवान राजनीतिज्ञों का युग आरंब हुआ। लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव और राहुल गांधी सामने आ गये। दोनों दलों में समझौते भी हुये। पर अब जबकि दूसरी बार भी उन्हें सजा मिल गयी तो मामला गड़बड़ हो गया। एक लांछित राजनीतिज्ञ से हाथ मिलाना राहुल के लिये कठिन हो गया। खास कर ऐसे मौके पर जब 2जी घोटाले से कांग्रेस बेदाग निकल आयी है तो वह राजद के साथ कैसे हाथ मिला सकती है। हालांकि, लालू यादव के खिलफ सजा का ऐलान भारतीय व्यवस्था में भरोसा पैदा करता है , क्योंकि विगत कई मामलों में बरी होने के कारण भारतीय संस्थाऔं की साख पर से आस्था घटने लगी थी। लालू यादव को भी बरोसा था कि फैसला उनके प2ा में आयेगा इसीलिये वे रांची गये थे। जब सी बी आई की अदालत ने फैसला सुनाया तो उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने कहा कि यह गरीबों के मसीहा और धर्मनिरपेक्षता के कट्टर रहनुमा के खिलाफ गया है। हालांकि फैसले की मियाद की घोषणा जनवरी में होगी पर नये साल में उनके जेल में रहने से यू पी ए का नैतिक बल घटेगा ओर उसके शिविर में खलबली रहेगी।
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