हर घंटे एक किसान खुदकुशी करता है
कहा जाता है , भारत माता ग्रामवासिनी। सरकार किसानों को राहत देने के लिए, उनके जीवन स्तर सुधारने के लिए और उनमें खुशहाली लाने के लिए कई योजनाएं बनाती है। अभी हाल में बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया कि किसानों की आय दुगनी हो गई है। पता नहीं आसमानी दावे कहां से आए । हकीकत तो यह है कि देश में हर घंटे एक किसान आत्महत्या करता है और उसका मुख्य कारण उस पर चढ़ा कर्ज और बदहाली है। यह कहना उचित नहीं होगा कि अपनी गरीबी के कारण वह आत्महत्या करता है, बल्कि बेहद बदहाली के कारण उसे अपनी जान देनी पड़ती है । संसद के दोनों सदनों में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और उप कृषि मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला द्वारा इस संबंध में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो( एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में देश में 11,370 किसानों ने आत्महत्या की , जबकि 2015 में यह आंकड़ा 12,602 था । इन मंत्रियों ने अपने उत्तर ने 2016 के एन सी आर बी के आंकड़ों का इस्तेमाल किया। चूंकि, एनसीआरबी भारत सरकार के गृह विभाग के अंतर्गत है और यह भी अभी खुदकुशी तथा दुर्घटनाओं के कारण वर्गीकृत कर इस साल के आंकड़े नहीं तैयार कर सका है । आंकड़े बताते हैं 2014 और 2013 में क्रमशः 12,360 और 11,772 किसानों ने खुदकुशी की ,2016 में जिन 11,370 किसानों ने आत्महत्या की थी उनमें 6,351 कृषक और 5,019 कृषि मजदूर थे, 2015 में 8,007 किसानों और 4595 कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की। 2014 में यह आंकड़ा क्रमशः 5650 और 6710 था। 2013 के आंकड़ों में यह विश्लेषण नहीं मौज़ूद लगता । इन मौतों का मुख्य कारण दिवालियापन या कर्ज में डूब जाना या कृषि के मारे जाने के बाद की पीड़ा थी । कृषि उप मंत्री रुपाला ने गत 20 मार्च को लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में जानकारी देते हैं । यह आंकड़े बताते हैं की किसानों की हालत में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हो सका है। गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2095 से 2013 के बीच 296438 किसानों ने आत्महत्या की इस देश के विभिन्न भागों किसानों और कृषि से जुड़े लोगों ने लगातार आंदोलन किए हैं। मसलन, हरियाणा में जाटों ने ,आंध्र प्रदेश में कापुस ने, गुजरात में पाटीदारों ने ,मध्यप्रदेश के मंदसौर के किसानों ने और तमिलनाडु के किसानों ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया है । इसके बावजूद कुछ नहीं हो सका। हालात यह हैं कि किसान घर बार छोड़कर पलायन कर रहे हैं। हाल में बुंदेलखंड के किसानों ने सूखे और गरीबी से ऊब कर अपना इलाका छोड़ दिया। पाटीदार समुदाय गुजरात चुनाव में अपना गुस्सा जाहिर कर चुका है। महाराष्ट्र के किसानों ने अभी हाल में मुंबई जाम किया था। यहां 2016 में 3,661 किसानों ने खुदकुशी की थी। किसानों की आत्महत्या और उनका प्रदर्शन इस देश के लिए कोई नया नहीं है। उनकी पीड़ा कितनी गंभीर है इन आंकड़ों से पता चल जाएगा। 2015 में 4,291 ,2014 में 4,004 और 2013 में 3,143 प्रदर्शन हुए। केवल कर्नाटक इसके पीछे रहा। यहां किसानों का प्रदर्शन थोड़ा कम हुआ। 2016 में 2,079 इसके बाद प्रदर्शन थोड़े कम हुए 2015 में 1,569, 2014 में 768 ,2013 में 1,403। मध्य प्रदेश में किसानों की खुदकुशी के मामले ज्यादा ही हुए। इस मामले में यह देश में तीसरा है। आंकड़े बताते हैं कि 2016 में 1,321 ,2015 में 1,290, 2014 में 1,198 और 2013 में 1,090 किसानों ने आत्महत्या की । आंध्र प्रदेश का स्थान इसके बाद है यहां 2016 में 804, 2015 में 916 और 2014 में 632 किसानों ने आत्महत्या की। अगर इसमें तेलंगाना को भी जोड़ दिया जाए तो दृश्य और कारुणिक हो जाएगा। अन्य राज्यों में छत्तीसगढ़ में 2016 में 682 ,गुजरात में 408, तमिलनाडु में 381, पंजाब में 271, हरियाणा में 250 ,उत्तर प्रदेश में 84 ,उड़ीसा में 121, असम में 70 किसानों ने खुदखुशी की। बड़े राज्यों में पश्चिम बंगाल और बिहार में यह संख्या शून्य रही। बंगाल में 2014 में 230 किसानों ने आत्महत्या की थी। उसके बाद वहां से कोई खबर नहीं है। यह एक नया सवाल उठाता है। छत्तीसगढ़ में पहले लगातार तीन साल तक किसी तरह की कोई खबर नहीं थी लेकिन इसके बाद यह सूची में शामिल हो गया। यहां सवाल उठता है इन राज्यों में कैसे मौत के आंकडों को तैयार किया जाता है? हालांकि, लगातार सूखा किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या है ,लेकिन कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि 2016 के नवंबर में सरकार द्वारा घोषित नोटबंदी ने इस क्षेत्र को बिल्कुल पंगु बना दिया। अगर सचमुच ऐसा है तो 2017 आंकड़े अच्छे नहीं कहे जाएंगे।
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