नौकरियां नहीं है केवल वादे ही हैं
चार साल पहले जब नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार शुरू किया था तो सीना ठोक ठोक कर वादा किया था कि हम देश में बेरोजगारी मिटाएंगे और खुशहाली लाएंगे। उनकी बातों में उम्मीद की इतनी झलक थी के लोगों ने भरोसा किया और उन्हें जिताया लेकिन 4 साल बीत गए, वादे वादे ही रह गए। अब नौकरी के वादे के चारों तरफ जनता के टैक्स के पैसे से सरकार चुनाव का माहौल बना रही है । बेशक राजनीति विज्ञान में यह तरीका लोकप्रिय हो सकता है पर बेरोजगारी से लड़ने के लिए कारगर नहीं। नौजवानों में थोड़ी देर के लिए उम्मीद तो बनेगी और ऐसा लगेगा कि सरकार कुछ कर रही है। इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। देखिए उम्मीदों के बाद कितना बड़ा धोखा है। सरकार ने पिछले 15 फरवरी को भारतीय रेल में दुनिया की सबसे बड़ी भर्ती मुहिम शुरू की। लगभग 90 हजार नौकरियां थीं । इसके लिए 2 करोड़ 80 लाख लोगों ने आवेदन किया था। यानी एक पद के लिए 300 से ज्यादा अर्जियां थीं । सरकार इस ऐलान का जश्न मना रही है । लेकिन सच में तो यह राजनीतिक असफलता है। बात यहीं हो तो गनीमत है। सभी तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। एक पखवाड़े पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक लाख सरकारी नौकरियों की घोषणा की। इसमें शिक्षक सहायक शिक्षक और प्रोफेसर के पद थे। यह अब सवाल उठता है कि क्या सरकारी नौकरियों से बेरोजगारी की समस्या हल हो जाएगी ।जहां करोड़ों नौजवान बेकार हैं वहां लाख दो लाख नौकरियों से क्या बनता बिगड़ता है ? यहां जो बात महत्वपूर्ण है वह है कि सरकार क्या वह माहौल बना सकी जिससे रोजगारों को बढ़ावा मिले। लोग ज्यादा से ज्यादा निवेश कर सकें इससे नौकरियां पैदा होगी। सरकारी नौकरी जिसे मिल भी जाएगी तो उसे कई सुविधाओं की गारंटी तो हो जाएगी लेकिन क्या सरकार को व क्वालिटी मिल सकेगी? इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती। सरकारी नौकरियों से बेरोजगारी समाप्त होगी और हालात बदलेंगे यह सोचना भी बेकार है। अगर सत्ता में 4 वर्ष रहने के बाद भी यही हाल है तो फिर चुनावी वादों और ठोस कामकाज में तालमेल कहां है। सरकार कुछ हजार या लाख दो लाख नौकरियां घोषित कर आखिर क्या बताना चाहती है? एक ऐसे समय में जब हर नीति , प्रत्येक परियोजना, हर ठेके और नौकरी की गंभीर समीक्षा होनी चाहिए वैसे समय में सरकार परात में नौकरियां परोसकर पेश कर रही है बिल्कुल सड़े-गले ढर्रे की तरह। बेशक, सरकार ने बहुत कुछ किया भी है और इसी की बदौलत कारोबार में आसानी के मामले में भारत का स्थान ऊपर गया है। भारत अब सौ ऐसे देशों में शामिल हो चुका है। लेकिन भारत का लक्ष्य है ऐसे 50 देशों में शामिल होना लेकिन थोड़ा कठिन है । सरकार का कहना है कि निजी क्षेत्रों में रोजगार बढ़े हैं तो ऐसे में दिखाई क्यों नहीं पड़ते? इसका कारण है आंकड़ों का अभाव। रोजगार और बेरोजगारी के सर्वे के श्रमिक वर्ग के आंकड़े 2015 -16 के हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 15 साल से ऊपर के लोगों में बेरोजगारी की दर 3.7 प्रतिशत है।लेकिन राज्यवार यह आंकड़े चिंतित करने वाले हैं। अंडमान और निकोबार में 15 वर्ष से ऊपर के के लोगों में बेरोजगारी 12% है , केरल में 10.6 प्रतिशत और हिमाचल में 10.2% है। सबसे कम दमन और दीव में है। यहां यह 0.3 प्रतिशत है जबकि गुजरात में 0.6 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 1.2% है। राष्ट्रीय स्तर पर 2015 -16 के आंकड़े पिछले साल के आंकड़े थोड़े अच्छे हैं। 2013 14 मैं 3.4 प्रतिशत था। लेकिन 2012- 13 में हालात और अच्छे थे। इस अवधि में यह 4 प्रतिशत था। रोजगार पर 2015 - 16 के बाद के आंकड़े नहीं हैं । सबसे ज्यादा चिंताजनक तथ्य यह है कि सरकार के अनुसार अब इसकी जरूरत ही नहीं है। सरकार अपनी पीठ थपथपाना चाहती है। रोजगार के मामले पर टास्क फोर्स गठित की गई थीऔर उसी के सुझाव पर सर्वे का काम बंद कर दिया गया। काम नहीं मिल रहे हैं यह तो एक बात है दूसरी तरफ काम बहुत तेजी से समाप्त हो रहे हैं। अर्नस्ट एंड यंग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अगले 4 साल देश में हर 10 नौकरियों में खत्म हो जाएगी। इसका कारण है ग्लोबलाइजेशन, डेमोग्राफिक बदलाव, नए जमाने की तकनीक ।सबसे ज्यादा प्रभाव अाई टी क्षेत्र पर पड़ेगा यहां से 35% कर्मचारी बेकार हो जाएंगे ।देश में बेरोजगारी और बढ़ जाएगी क्योंकि टेक्निकल सेक्टर में 38 लाख लोग काम कर रहे हैं और लगभग 13 लाख परोक्ष रूप से उससे जुड़े हुए हैं। यह भी बेकार हो जाएंगे क्योंकि कंपनियां स्वचालित उपकरण से इनका काम लेंगे। नई नौकरियों के लिए रोजगार के लिए सरकार के पास कोई नई नीति नहीं है और अगले 4 साल में रोजगार के दायरे सिकुड़ते जाएंगे।
आर्थिक सर्वे के मुताबिक देश में फिलहाल 6 करोड़ औपचारिक कर्मचारी हैं। इनके अलावा लगभग 1.5 करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं। दोनों संख्या को मिलाने पर देश में कर्मचारियों की संख्या 7:50 करोड़ हो जाती है। टैक्स के नजरिया से देखा जाए तो देश में बिना पेरोल वाले कर्मचारियों की संख्या 12.7 करोड़ है इनमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं। इस संख्या में 53 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनका संबंध कृषि क्षेत्र के कार्य बल से नहीं है। लेकिन जैसा की रिपोर्ट में कहा गया है छोटे-मोटे रोजगार वाले सभी लोगों को औपचारिक कर्मचारी नहीं मारा जा सकता क्योंकि इनके पास आय का कोई पक्का साधन नहीं है।
बड़े बड़े दावे करने वाली सरकार की हकीकत यह है कि उसके पास रोजगार के विश्वसनीय आंकड़े नहीं और गलत सलत आंकड़ों पर वह दावे करती है और देश की जनता को अंधेरे में रखती है। आज मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों के चाहे जितना ढोल पीट ले पर रोजगार के मोर्चे पर वह नाकामयाब ही साबित हो रहे हैं और इससे देश के युवा वर्ग में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
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