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Sunday, April 29, 2018

आधार के मामले में सरकार  की गलतबयानी

आधार के मामले में सरकार  की गलतबयानी

 कुछ कारणों से सभी सरकारों ने आधार परियोजना को लेकर बार बार जनता को गुमराह किया। यूपीए की सरकार ने इसे  जन्म दिया  और एनडीए की सरकार  पाल  रही है। इसके क्या कारण है यह तो समझ में नहीं आया  ले​​किन सरकार इसकी लगातार कर  रही है। सभी राज्यों की सरकारों ने  आधार से बड़े-बड़े लाभ  ​गिनाये हलां​कि, वे  लाभ किसको मिले यह कोई नहीं जानता। अब जबकि आधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा है तो एक-एक कर सारे  झूठ  खुल रहे हैं। वैसे भी मोदी जी की  सरकार को एक ही चीज के बारे में बार-बार कई तरह से गलतबयानी करने की आदत है। आधार के मामले में सरकार  ने इसकी उपयोगिता, लाभ और जाखिम के बारे में लोगों को कई बार गुमराह किया है।  इन  दावों में जो सबसे  बड़ा दावा  है और वह सबसे बड़ा झूठ है मोबाइल को  आधार से जोड़ने की बाध्यता । अब तक यही कहा जाता है कि सरकारी आदेश के अनुसार सिम को  आधार कार्ड से जोड़ना होगा। सरकार सफाई देती है ​कि ऐसा सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। जब भी जनता ने फोन को  आधार से जोड़ने की व्यवस्था  पर उंगली उठाई है तो कहा जाता है, यहां तक कि मंत्री भी कहते  सुने गए हैं , ​कि यह सुप्रीम कोर्ट का हुक्म है। सरकार ने यह झूठ को इतनी गंभीरता से फैलाया कि दूरसंचार विभाग  ने भी जब मोबाइल ऑपरेटरों को निर्देश दिए  कि मोबाइल नंबर को आधार कार्ड से जोड़ना  अनिवार्य  है , तो कहा कि ऐसा  सरकार का आदेश है। बात तो तब होगी जब आधार मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी । मामला था आधार परियोजना लोकनीति फाउंडेशन  के बीच।  उस दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट  कहा कि  " न्यायपीठ ने केवल आधार का नाम नहीं लिया था बल्कि यह कहा था ​कि पहचान के प्रमाण के लिए जिन  दस्तावेजों की जरूरत है उनमें आधार भी एक है।" अब  यहां सरकार  की झूठ पकड़ी गई। लेकिन, एक बात हो तब न।  कई बार  सरकार ने  लोगों को गुमराह करने की कोशिश की है। इनमें सबसे ज्यादा मशहूर है सरकार का  वह कथन जिसमें बार-बार कहा गया कि आधार के कारण सरकार को हर साल 11 अरब डॉलर की बचत होती है। सरकार के अनुसार विश्व बैंक की रिपोर्ट में ऐसा  कहा गया है। परंतु यह अपूर्ण है और बार-बार  गलत बताया  गया है।  आई आई टी दिल्ली की  अर्थशास्त्री और प्रोफेसर रीतिका खेड़ा ने इसे कई बार गलत बताया।  प्रोफेसर खेड़ा ने अपने शोध प्रबंध​ में  कहा है कि सरकार का ऐससा कहना गलत है कि देश में  जितने  नगदी  ट्रांसफर कार्यक्रम है उनमें 70  हजार करोड़ रुपए यानी 11 अरब डालर से ज्यादा की बचत होती है। सरकार ने इस धन को  बचत में शामिल कर  ​लिया। तथ्य यह है कि  गुमराह करने के चक्कर में  सरकार ने उपरोक्त मदों में शामिल सारे  खर्च को बचत में शामिल कर ​लिया। यह जानते हुए भी कि यह आंकड़ा गलत है सरकार के अधिकारी और मंत्री लगातार इस  दोहरा रहे हैं और भक्तजन इसका जाप कर रहे हैं। लेकिन, कुछ हफ्ते पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित रूप से दिया है कि आधार से कितनी बचत हो रही है, यह मालूम नहीं , बचत हो रही है या नहीं यह भी संदेहजनक है। उदाहरण के लिए  अभी हाल में दावा किया गया की रसोई गैस वितरण में आधार के चलते करोड़ों रुपयों की बचत हुई है। लेकिन एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन " इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट" ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि आधार से बचत कितनी हो रही है यह मालूम नहीं किंतु बचत बहुत कम हो रही है । आधार कार्ड योजना लगती है गलत है। यही नहीं आधार नंबर की चोरी और उसके दुरुपयोग को भ्रामक बताते हुए बार-बार सरकार को बताया गया है लेकिन सरकार की ओर से हर बार  कहा गया है यह गलत है । आधार कार्ड से पहचान की  पुष्टि नहीं हो पाने के कारण कई लोगों को उसके लाभ से वंचित होना पड़ा है। लेकिन, सरकार इसे मानती नहीं।  जबकि ऐसे कई उदाहरण है की बूढ़े श्रमिकों का बायोमेट्रिक का आधार से मिलान नहीं हो पाया है और उन्हें राशन नहीं दिया गया है। नहीं खा पाने का झारखंड में कई लोग मरे  भी हैं ।

   आधार का मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है और आशा है इस पर  जल्दी ही फैसला हो जाएगा। फैसला क्या होगा यह मालूम नहीं  है पर आधार तरफदारी करने वाले यह समझ लें कि इसके आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके बारे में सरकार के पक्ष से बड़ी-बड़ी बातें होती है सबके सब गुमराह करने वाली है। 

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