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Friday, April 13, 2018

गैरजिम्मेदाराना हरकत  

 गैरजिम्मेदाराना हरकत

 अगर देश में रोजाना हो रही है हरकतों  को एक साथ रखकर देखें तो अजीब लगेगा आपके मुंह से सहसा एक सवाल आ  जाएगा क्या हो गया हमारे देश को। कहीं 5 बरस की बच्चे से बलात्कार हो जाता है और उसकी हत्या देश  चुप रहता है।  कहीं विधायक एक किशोरी के साथ मुंह काला करता है और शिकायत दर्ज कराने गए  उसके बाप को   झूठे मुकदमे में  फंसा दिया जाता है।  उसे इतना उत्पीड़ित किया जाता है कि  वह हवालात  मैं ही आत्महत्या कर बैठता है। देश और वक्त की सरकार चुप रहती है । कहीं दंगे होते हैं,  बैंक का घोटाला हो जाता है और घोटालेबाज देश से बाहर ऐश करता है।  देश चुप रहता है।  क्या हो गया है हमारे मानस को?  पिछले दिनों कांग्रेस ने दिनभर की भूख हड़ताल की।  खाए , पिए और अघाए लोगों का एक समूह दिन भर कुछ नहीं खाया।  देश चुप रहा।  जिस देश में कम से कम आधी जनता और लाखों दुधमुंहे बच्चे दिन भर बिना खाए बिलबिलाते रहते हैं उस देश में कुछ लोगों का एक समूह सरकार की नीतियों के विरोध में नहीं खाया और हम चुप रहे।  यही नहीं जिसे इस देश को चलाने की जिम्मेदारी हम ने सौंपी है वह भी  गुरुवार को भूख हड़ताल पर बैठे।  प्रधानमंत्री भी शामिल थे।  कितना हास्यास्पद लगता है कि जब सरकार  हड़ताल पर चली जाती है।  यह तो हद हो गई।  सोमवार को कांग्रेस अनशन पर बैठे थे उनका कहना था की भाजपा की  दमनकारी नीतियों के विरोध में उन्होंने कदम उठाया है। घटिया कॉमेडी नाटक की तरह  वह लोग दिन भर बैठे  रहे।  अलबत्ता, यह तो जरूर हुआ कि  उन्होंने ए सी और अन्य आराइशों    को छोड़कर इस गर्मी में  बैठे रहे,  वाह रे दुखी लोग।  अब इसके बाद उसी नाटक का दूसरा दृश्य सामने आता है और सत्तारूढ़ दल  के लोग भी यहां तक की हमारे प्रधानमंत्री भी दिन भर के  अनशन पर बैठ गए ।  उनका कहना था कि वे लोग विरोधी दलों के टोकाटाकी  यह सलाह अनशन पर बैठे हैं।  अब सवाल उठता है हर आदमी विरोध कर रहा है  तो उत्तरदाई कौन है ? भाजपा का यह नाटक  बहुत सुंदर ढंग से गढ़ा गया था। जहां कांग्रेस के अनशन पर छोले भटूरे की महक  छाई हुई थी वही भाजपा के इस अनशन पर अनशन स्थल से खाने पीने के स्टॉल्स हटवा दिए गए थे,  ताकि कार्यकर्ता  ललचाए नहीं।  देशभर में भाजपा के नेता अपने अपने इंसानों की तस्वीर  ट्विट  करते रहे। प्रधानमंत्री  अपने अनशन रत कार्यकर्ताओं के साथ यह प्रदर्शित करते रहे देश का आम आदमी बिना   खाए पिए  भी काम  काम करता रहता है । जब सारी कवायद चाहे  कांग्रेस की हो  या  भाजपा की देख कर ही लग रहा था तमाशा हो रहा है सब  सब दिखाऊ  है। भाजपा सत्तारूढ़ दल है और संसद से लेकर देश के राज्यों तक में उसका बहुमत है कई राज्य छोड़कर सभी राज्यों में उसकी सरकारें हैं। सरकार का कर्तव्य है कि वह दूसरों की शिकायतों को सुने और उसे दूर करने की कोशिश करे।  अगर  अगर प्रधान सेवक  ही हड़ताल पर चला जाता है तो जनता की कौन  सुनेगा।

     भूख हड़ताल  या  अनशन  एक नैतिक शस्त्र है  ना कि  उत्तर मांगने का जरिया।  जरा अपने भीतर झांक कर सरकार  देखें कि संसद में व्यवधान में  वह निर्दोष नहीं है। बजट सत्र में संसद में व्यवधान और कार्यस्थगन के कारण बहुत तुम कहां हो सका ।  गुरुवार के पहले तक प्रधानमंत्री यह कहते चलते थे कि जो लोग 2014 में सत्ता नहीं पा सके वह नहीं चाहते कि सरकार जनता का काम करें और देश आगे बढ़े । इसलिए उन्होंने संसद को नहीं चलने दिया।  विपक्ष ने लोकतंत्र की हत्या कर दी  और हम इस अपराध को जनता के सामने लाने के लिए अनशन पर बैठे हैं ।   लेकिन क्या यह दावा सही लगता है?

 इस बार संसद में व्यवस्था नहीं रही।  भारत के लोकतंत्र के इतिहास में यह पहली घटना है जब सदन में व्यवस्था हीनता के चलते अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता।  यह खुद के खिलाफ  ही अविश्वास प्रस्ताव है।  संसद के इसी सत्र में सरकार ने यह भी दिखाया है कि वह चाहे तो काम काज चल सकता है। सदन में भारी अव्यवस्था के बीच 1घंटे के भीतर बजट पारित हो गया, कैसे?  भाजपा का  संसद में प्रचंड बहुमत  है और यह उसकी जिम्मेदारी है कि  वह  विपक्ष के साथ बैठकर इस मामले को सुलझाए और  सदन के चलने की व्यवस्था करे। भाजपा,  ऐसा लगता है,   कि सदन इस कारोबार को चलाने के बारे में दो ही ढंग से सोचती है।  पहला जबरदस्ती विधेयकों को पास करा दिया जाए या फिर  सदन को ही पंगु बना दिया  जाए।  वैसे अगर सदन को पंगु बना देना इतिहास को देखा जाए तो यूपीए -दो  के सरकार  के काल में आखिरी  कई सत्रों  को नहीं चलने देने का रिकॉर्ड भाजपा के पक्ष में  जाएगा।  संसद के दोनों सदनों में अरुण जेटली तथा सुषमा स्वराज ने इतना शोर मचाया एक तरह से लोकतंत्र को ही काम नहीं करने दिया गया।  इसके पक्ष में सुषमा जी का यह तर्क था संसद को नहीं चलने देना  भी संसदीय लोकतंत्र का एक तरीका है।  अरुण जेटली ने कहा था कि अगर संसदीय जवाबदेही को नजरअंदाज किया जाता है तो यह विपक्ष का कर्तव्य है संसद नेता होने से  रोके।  आज भाजपा शासन में है और देश में जो हो रहा है,  सामाजिक सांप्रदायिक स्तर पर,  वह देश की जनता देख रही है।  मोदी जी से लोग समाधान मांगते हैं प्रदर्शन नहीं।   मोदी जी ने क्यों किया वाह लोकतंत्र  मैं गैरजिम्मेदाराना हरकत है।

 

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